कोण्डागांव (वीएनएस)। छत्तीसगढ़ एक जनजातीय बाहुल्य राज्य है जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए जानी जाती है। यहां की जनजातीय समाज में गोदना प्रथा का विशेष महत्व है। यह प्रथा न केवल उनकी सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा भी है। छत्तीसगढ़ की इस परंपरा को सहेजने और उसे नए आयाम देने के लिए जिला प्रशासन द्वारा एक अभिनव पहल की गई है। कलेक्टर कुणाल दुदावत के मार्गदर्शन में गोदना कला को प्रोत्साहित करने और इसे रोजगार का साधन बनाने के उद्देश्य से युवाओं को आधुनिक टैटू प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
जनजातीय संस्कृति को सहेजने की ओर कदम :
जिला प्रशासन द्वारा कौशल उन्नयन कार्यक्रम के अंतर्गत प्री-मैट्रिक छात्रावास, गांधी वार्ड में 1 दिसंबर से पारंपरिक गोदना प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कुल 10 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रशिक्षकों ने प्रतिभागियों को बस्तर की पारंपरिक गोदना कलाकृतियों की विस्तृत जानकारी दी। साथ ही उन्हें आधुनिक टैटू मशीनों के उपयोग और सुरक्षा तकनीकों के बारे में भी प्रशिक्षित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जनजातीय समाज की महिलाएं सहित कुल 10 प्रशिक्षार्थी शामिल थे। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने न केवल तकनीकी ज्ञान अर्जित किया बल्कि टैटू बनाकर आय भी अर्जित की। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोगों में गायत्री मरकाम, भारती मरकाम, राधा उईके, सीमा मरकाम, यामिनी सोनवानी, देविका उईके, रोहित मरकाम, अक्षय कोड़ोपी, नविता देवांगन, और नमन विश्वकर्मा शामिल हैं।
टैटू आर्ट में रोजगार की संभावनाएं :
इस दौरान प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके डोंगरीगुड़ा कोण्डागांव के युवा नमन विश्वकर्मा ने बताया कि वे सामान्य परिवार से हैं और आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। उनके पिता भागीराम विश्वकर्मा बेलमेटल का कार्य करते हैं जो परिवार का आय का एकमात्र जरिया है। साथ ही उन्हें ऑर्डर मिलने पर ही आय प्राप्त होती है। नमन ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा आयोजित कौशल उन्नयन कार्यक्रम में आधुनिक टैटू (गोदना) बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इससे उन्हें रोजगार के नए अवसर मिला है, जिससे उन्हें अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षकों द्वारा टैटू बनाने के सभी बारीकियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई और सभी आवश्यक किट भी प्रदाय की गई। प्रशिक्षण के दौरान ही उन्होंने लगभग 30 हजार की आय प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि कोंडागांव जिले के लिए यह आर्ट नया है और इस क्षेत्र रोजगार के संभावनाएं हैं, जिसका लाभ प्रशिक्षणार्थियों को मिलेगा। नमन ने जिला प्रशासन की इस अनूठी पहल के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया।
यामिनी को मिला रोजगार का माध्यम :
कोंडागांव के बाजारपारा की निवासी यामिनी सोनवानी ने भी इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त की है और कंप्यूटर कोर्स किया है। यामिनी को गोदना प्रशिक्षण के बारे में अखबार के माध्यम से जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने कलेक्टर कार्यालय जाकर फॉर्म भरा। यामिनी ने बताया “शुरुआत में मुझे गोदना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और मेरी खास रुचि भी नहीं थी। लेकिन प्रशिक्षण के तीसरे दिन मेरी दिलचस्पी बढ़ी। प्रशिक्षकों ने टैटू बनाने की बारीकियों को विस्तार से समझाया। प्रशासन की ओर से हमें टैटू किट भी प्रदान की गई, जिसमें सभी आवश्यक उपकरण उपलब्ध हैं।”
यामिनी का कहना है कि यह प्रशिक्षण उनके लिए एक नया अवसर लेकर आया है। वह अब इस कला को अपनी आय का साधन बनाना चाहती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रतिभागी कोंडागांव में मिलकर एक टैटू स्टूडियो खोलने की योजना बना रहे हैं। यामिनी ने युवाओं को प्रेरणा देते हुए कहा, “आज के समय में आगे बढ़ने के लिए कई क्षेत्र उपलब्ध हैं। हमें अपनी रुचि के अनुसार क्षेत्र चुनकर उसमें मुकाम हासिल करना चाहिए। खासकर लड़कियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयास करना चाहिए। शासन की कई योजनाएं हैं, जिनसे जुड़कर लड़कियां आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त हो सकती हैं।”
गांधी वार्ड के रहने वाले अमित सिंह और पारुल सिंह पति-पत्नी ने अपने हाथों पर जिला प्रशासन द्वारा दी जा रही टैटू प्रशिक्षणार्थियों से टैटू बनवाये हैं। उन्होंने बताया हम काफी समय से टैटू करवाने की सोच रहे थे, और यह संभव हुआ जिला प्रशासन द्वारा दी जा रही टैटू प्रशिक्षण के कारण। हमें इसके लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी। कोंडागांव में ही किफायती दरों पर यह टैटू बनवाया। जिन प्रशिक्षुओं ने हमारा टैटू बनाया उन्होंने बहुत ही बारीकी और निपुणता से इसे तैयार किया। जिला प्रशासन के इस कदम ने न केवल युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्रदान किए हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर प्रतिभाओं को पहचानने और निखारने का मौका भी दिया है।
जिला प्रशासन की इस पहल ने न केवल पारंपरिक गोदना कला को नया आयाम दिया है, बल्कि युवाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए इस कला को एक रोजगार का माध्यम भी बनाया है। परंपरा और आधुनिकता के संगम से एक नए रूप में गोदना कला को न केवल जनजातीय समाज के सांस्कृतिक धरोहर सहेजी जा सकती है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए जा सकते हैं।
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