छापे में पैसा मिला तो क्या होता है....

Posted On:- 2025-03-11




सुनील दास

राजनीति में किसी को सरकार में बड़ी या सबसे बड़ी पोस्ट मिल जाती है और वह चाहे कि उसके पास पैसा आना चाहिए तो उसके पास बाढ़ के पानी की तरह पैसा आता है।चारों तरफ से पैसा आता है। परिवार के लिए अलग पैसा आता है,पार्टी के लिए अलग पैसा आता है। अधिकारियों के जरिए आता है, अपने समर्थक नेताओं के जरिए आता है, किसी को लगा दिए तुमको आबकारी से पैसा देना है, किसी को लगा दिए कि तुमको कोयले से पैसा देना है, किसी तो लगा दिए आप सट्टा वालों से पैसा लाकर दो। बड़ी और सबसे बड़ी पोस्ट हो तो पैसा कमाने वाले समर्थक ढूंढने नहीं पड़ते, पद के साथ ही वह अपने आप मिलते जाते हैं।

पार्टी के लोग तो बड़ी व सबसे बड़ी पोस्ट का फायदा उठाते ही है,घर के लोग भी पद घर के किसी को मिल जाए तो वह भी फायदा उठाना सीख जाते हैं, नहीं सीखते हैं तो बाहर के लोग जो उनके आसपास रहते है्,वह सिखा देते हैं कि पद का फायदा कैसे उठाया जा सकता है। पिता एक जगह कार्यालय लगाकर लोगों का दुख दूर करता है, पुत्र घर में कार्यालय लगाकर लोगों के दुख दूर करने का प्रयास करता है। बेटी और दामाद और अन्य रिश्तेदार होते हैं तो दुखी लोग उनके पास जाते हैं और उनसे कहते हैं कि पिता,पुत्र ही क्योंआप लोग भी तो दुख दूर कर सकते हो।

सबसे बड़ा पद या बड़ा पद मिल जाने पर घर परिवार के जितने लोग होते हैंं, सब लोगों को दुख दूर करने लग जाते हैं। लोगों का दुख दूर हो जाता है तो वह बहुत प्रसन्न होते हैं और कुछ न कुछ तो देते ही हैं। जो कुछ भी लोग देते हैं,जो कुछ भी समर्थक लाकर देते हैं, जो कुछ भी अधिकारी लाकर देते हैं, सब घर में लाकर देते हैं, जो घर आ जाता है,वह तो घर का हो जाता है। पांच साल में घर में कितना आया इसका किसी के पास कोई हिसाब नहीं हो सकता। बाढ़ के पानी की तरह पैसा आता है तो उसका एक बड़ा हिस्सा तो पार्टी को जाता है,उसके बाद भी बहुत सारा पैसा बचता है तो वह पैसा भी उसके लिए समस्या बन जाता है,जिसे पैसा खपाना नहीं आता है, जिसे ब्लैक मनी को व्हाइट मनी बनाना नहीं आता। जिन्हें दो चार करोड़ तक खपाना नहीं आता, छापा पडने पर उनके यहां जमा पैसा मिलता है।

आजकल पैसा कमाने वाले होशियार हो गए हैं। उनको मालूम है कि शराब से दो हजार करोड़ कमाना है तो उसे खपाना भी है,इसलिए पैसा कमाने के साथ लोग अपने आसपास ऐसे लोगों को रखते हैं जो बाढ़ के पानी की तरह आने वाले पैसे को खपाते रहते हैं। सीधी भाषा में कहा जाए कि काले पैसे को सफेद करते रहते हैॆ। अगर घर परिवार के सौ दो एकड़ खेती की जमीन है तो काला पैसा को सफेद करना और आसान होता है, वैसे तो बहुत कमाने वालों के यहां छापा पड़ जाए तो पैसा नहीं मिलता है और वह ईडी का यह कहकर अक्सर मजाक उड़ाते हुए मिल जाएंगे कि देखो ईडी ने मेरे यहां छापा मारा उसे एक रुपए नहीं मिला।घर में छापा मारा और घर में नगद पैसा नहीं मिला तो वह उसे ही अपने ईमानदार होने के सबूत के तौर पर पेश करते हैं और चाहते हैं कि जनता मान ले कि वह ईमानदार हैं क्योंकि उसके घर पैसा नहीं मिला। 

जनता जानती है कि जिसके घर बहुत पैसा आता है, वह पैसा अब अपने घर में नहीं रखता है,उसका निवेश कर देता है। कहीं लगा देता है,किसी बिल्डर को खपाने के लिए दे देता है, किसी ज्वेलर को खपाने के लिए दे देता है, किसी फायनेंसर को देता है, किसी शेयर का काम करने वाले को दे देता है। यही वजह है ईडी किसी के यहां छापा मारती है तो खबर आती है कि उसने किसी एक आदमी के घर में छापा नहीं मारा है, उसने तो एक साथ १५ ठिकानों पर छापा मारा। इसमें एक आदमी पैसा कमाने वाला होता है, बाकी सब पैसा खपाने वाले होते हैं। यही वजह है कि अब घाेटालों की जांंच होती है तो ज्यादा छापे पड़ते है, ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी होती है। हजार दो हजार करोड का घोटाला करना है तो अब यह कोई आदमी तो नहीं कर सकता। इसके लिए तो पूरे गिरोह की जरूरत होती है, बड़े गिरोह की जरूरत होती है।इसे आजकल सिंडीकेट कहते हैं।

इस सिंडीकेट का जाहिर तौर पर एक मुखिया होता है, और उस मुखिया का भी कोई मुखिया होता है। होता यह है कि नीचे का मुखिया तो पकड़ा जाता है,जेल जाता है,लेकिन मुखिया का मुखिया बड़ा होशियार होता है, उसके लिए काम करने वाले पकड़े जाते हैं वह पकड़ा नहीं जाता है।तब तक पकड़ा नहीं जाता है जब तक बड़ी या सबसे बड़ी पोस्ट पर रहता है, लेकिन वह भी तो हमेशा पोस्ट पर नहीं रह सकता एक दिन आता कि चुनाव होता है और चुनाव वह हार जाता है तो उसकी पाेस्ट चली जाती है। उसकी ताकत चली जाती है और अब उसके घर भी छापा पड़ता है,छापे में पैसा भी मिलता है तो वह डरता नहीं है वह खुद ही बताता है कि उसके यहां छापे में  कितना पैसा मिला है।

वह यह भी शान से बताता है कि यह पैसा तो उसके परिवार का है, वह इसका हिसाब दे सकता है।सीधी सी बात है कि घर में जो पैसा मिले वह तो घर का पैसा होता है।जो आदमी घर में मिले पैसे का हिसाब दे सकता है, उसको ईडी से डरने की क्या जरूरत है।वह ईडी से तो नहीं डरता है लेकिन इस बात से जरूर डरता है अब ईडी के छापे तो पड़ते रहेंगे। किसी पैसा खपाने वाले के यहां यह सबूत न मिल जाए कि पैसा किसका है। देश में दिल्ली में ऐसा भी तो हुआ है कि ई़डी के छापों में पैसा नहीं मिला लेकिन नेताओं को जेल जाना पड़ा। महीनों जेल जाना पड़ा, अदालत के चक्कर लगाने पड़े और अंत मे सीएम की कुर्सी भी चली गई और चुनाव में हार का सामना भी करना पड़ा. फिर से जेल जाने की आशंका बनी हुई है। हजार दो हजार करोड़ का घपला करने वाले सोचते हैं कि उन्हें कोई पकड़ नहीं सकता, लेकिन पोल खुल जाती है और सिंडीकेट की गिरफ्तारी शुरू होती है छापे पड़ते हैं तो उनको सबसे ज्यादा डर जेल जाने से लगता है।ऊपरी तौर पर भले ही कहें की छापे से क्या होता है, छापे में पैसा मिलने से क्या होता है।



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