कथनी व करनी में अंतर का उदाहरण है ये

Posted On:- 2025-03-17




सुनील दास

राजनीति में वही राजनीतिक दल ज्यादा सफल होता है जिसकी नीति आईने की तरफ साफ होती है। जैसी है वैसी दिखाई भी देती है।राजनीति में जिस राजनीतिक दल की नीति अलग होती है और नीयत अलग होती है तो उस दल काे राजनीति में ज्यादा सफलता नहीं मिलती है।कांग्रेस ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी नीतियों व योजनाओं से ही पता चलता है कि इसकी प्राथमिकता क्या है।यह सबसे ज्यादा महत्व किस बात को देती है। कई बार उसकी राज्य विशेष की नीति अलग होती है और देश की राजनीति के लिए उसकी अलग नीति होती है।निरंतर चुनाव मे हार के कारण उसको समझ नहीं आता है कि उसके लिए सही क्या है, उसकी राष्ट्रूीय राजनीति के लिए क्या नीति होनी  चाहिए और राज्यों की राजनीति के लिए क्या नीति होनी चाहिए।

इसी वजह से वह राष्ट्रीय राजनीति में निरंतर फेल हो रही है। तीन लोकसभा चुनाव में वह हार चुकी है, इसके बाद वह अपनी हार से कोई सबक नहीं लेती है।वह सोचती नहीं है कि लोकसभा चुनाव वह क्यों निरंतर हार रही है। उसका एक कारण तो मुस्लिम तुष्टिकरण है। वह भाजपा पर आरोप लगाती है कि वह हिंदू-मुसलमान की राजनीति करती है। देश को बांटने का काम करती है, देश में नफरत फैलाने का काम करती है। इससे वोटों का धुव्रीकरण होता है और भाजपा हिंदुओं के वाेट एकमुश्त मिलने के कारण जीत जाती है। हकीकत यह है कि कांग्रेस आजादी के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती रही है, मुसलमान जैसा कहते रहे वह वैसा करती रही।आज भी वह राज्यों में वैसा ही कर रही है। 

कर्नाटक में उसने सरकारी ठेकों में मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है।इसमें एक करोड़ रुपए तक की खरीद में कई विभागों,निगमों और संस्थाओं के अंतर्गत वस्तुओं ओर सेवाओं की एक करोड़ रुपए तक की खरीद में मुस्लिम आपूर्तिकर्ताओं को चार प्रतिशत आरक्षण दि्या जाएगा। कर्नाटक सरकार के इस फैसले का विरोध तो होना ही था क्योंकि यह तो संविधान विरोधी है, संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की बात तो कहीं भी नहीं है।भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।इसके संविधान में समानता, न्याय,अवसरों की निष्पक्षता की बात की गई है।सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों मुख्यधारा में लाने के लिए आर्थिक या शैक्षिक पिछड़ापन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था है लेकिन धर्म के आधार पर कोई आरक्षण अब तक दिया नहीं गया है। क्योंकि यह संविधान विरोधी है।

कर्नाटक में सरकार ने यह फैसला किया है ताकि लोगों का ध्यान भटकाया जा सके।हाल ही में कर्नाटक खबरों में ज्यादा इसलिए था कि वहां सीएम सिध्दारमैया व शिवकुमार के बीच सीएम पद को लेकर तनातनी चल रही है। शिवकुमार का कहना है कि सिध्दारमैया को ढाई साल के लिए सीएम बनाया गया है, इसलिए उनको ढाई साल होते ही इस्तीफा देना चाहिए। सिध्दारमैया को ढाई साल शायद सितंबर में पूरा हो रहा है, शिवकुमार अभी से उन पर इस्तीफे के लिए दवाब बना रहे हैं। लोगों का ध्यान इस मुद्दे से भटकाने के लिये सिध्दारमैया ने ठेकों में मुस्लिम आरक्षण का दांव चल दिया है। अभी तो इस फैसले को कैबिनेट ने मंजूरी दी है।बजट सत्र में इसे पेश किया जाएगा।

इसके बाद यह कानून बनेगा तो इसे अदालत में चुनौती दी जाएगी और जैसा कि हमेशा होता आया है कि धर्म के आधार पर या किसी तरह से पचास प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण अदालत में खारिज हो जाएगा। कई राज्यों में चुनाव में फायदे के लिए या मुसलमानों को यह बताने के लिए हम तो तुम्हारे लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन अदालत के कारण हम कर नहीं पाते हैं। हरियाणा,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़ आदि कई राज्यो में आरक्षण बढ़ाया गया लेकिन कोर्ट ने उसे सही नही माना। राजनीतिक दल हमेशा अपने राजनीतिक फायदे के लिए आरक्षण बढ़ाने की बात करते हैं लेकिन वह सफल नहीं होते हैं।क्योंकि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ होता है।

कर्नाटक सरकार का यह कदम राहुल गांधी के विचारों के खिलाफ भी है क्योंंकि राहुल गांधी तो कांग्रेस और खुद को संविधान के रक्षक के तौर पर पेश करते हैं। वह हर बात में भाजपा को संविधान विरोधी व लोकतंत्र विरोधी बताते हैं और कर्नाटक सरकार ठेकों में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला करती है तो राहुल गांधी चुप है। कर्नाटक सरकार के इस कदम से तो कांग्रेस संविधान विरोधी साबित होती है। क्योंकि संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की बात ही नहीं है। इससे तो कांग्रेस की नीति को लेकर ही लोगों में भ्रम फैल सकता है कि कांग्रेस किसके साथ मुसलमानों के या संविधान के। 

यदि कांग्रेस मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देने के पक्ष में है तो वह संविधान विरोधी है। यदि वह संविधान रक्षक  है तो धर्म के आधार पर आरक्षण कैसे दे सकती है।कांग्रेस राज्य व राष्ट्रीय राजनीति में एक नीति नहीं बनाती है, इस कारण वह कई बार राज्य का चुनाव तो जीत जाती है लेकिन लोकसभा चुनाव हार जाती है क्योंकि देश के लोग संविधान विरोधी पार्टी को पसंद नहीं करते हैं।राहुल गांधी कितना भी संविधान की प्रति लेकर घूमे और भाजपा को संविधान विरोधी बताएं जनता उनकी बात पर भरोसा नहीं करेगी क्योंकि कांग्रेस कहती कुछ है और करती कुछ है।



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