हौसले बुलंद हो तो ऐसा हो पाता है...

Posted On:- 2025-03-21




सुनील दास

कोई भी अभियान तब सफल होता है जब उसके नेतृ्त्व करने वाले को पूरा भरोसा होता है कि हम ऐसा कर सकते हैं।नेतृत्व को टीम पर भरोसा होता है कि तय समय पर टीम ऐसा करके दिखा सकती है तो टीम का हौसला बुलंद रहता है कि नेतृत्व हम पर भरोसा कर रहा है,रिजल्ट के लिए पूरी छूट दे रहा है तो वह लक्ष्य को पूरा करने जी जान से जुट जाती है। टीम को नेतृत्व पर भरोसा होता है कि हम लक्ष्य को पूरा करने के लिए जो भी सुविधा, संसाधन चाहेंगे वह मिल जाएगा तो नेतृत्व की भी जिम्मेदारी होती है कि वह टीम उससे जो अपेक्षा करती है,वह भी पूरा करके दिखाए।

सीएम साय के समय नक्सली सफाए का अभियान इसलिए सफल है कि नेतृ्त्व ने अपनी टीम को निराश नहीं किया है और टीम ने भी अपने नेता को निराश नहीं किया है। जब नेता को टीम पर पूरा भरोसा होता है और टीम को अपने नेता पर पूरा भरोसा होता है तो सुनियोजित आपरेशन में बड़ी संख्या में नक्सली घेर कर मारे जाते हैं। नक्सलियों के सफाए में लगे जवावों ने बस्तर संभाग में गुरुवार २० मार्च को दो अलग अलग जगह ३० नक्सलियों का मार गिराया है। जवानों व नक्सलियों के बीच पहली मुठभेड़ बीजापुर दंतेवाड़ा सीमा पर और दूसरी मुठभे़ड़ कांकेर नारायणपुर सीमा पर हुई। जवानों को खबर मिली कि बीजापुर जिल के अंडरी व गमपुर के बीच जंगल में बड़ी संख्या में नक्सली मौजूद है, ६०० जवानों ने रात भर चल कर मौके पर पहुंची और रात को ही नक्सलियों की घेराबंदी कर सुबह नक्सलियों का सफाया शुरू किया। 

नक्सलियों को जब तक पता चलता कि उनको जवानों ने घेर लिया है  तब तक जवानों ने २६ नक्सलियों का मार गिराया।इस दौरान एक डीआरजी का जवान शहीद हुआ। जवानों की इस साल की एक और बड़ी सफलता है।इसी तरह नारायणपुर कांकेर सीमा पर हुई मुठभेड़ में जवानों चार नक्सलियों को मार गिराया।बताया गया है कि इस दौरान नक्सली नेता पापा राव व लिंगू भी थे लेकिन वह भाग निकलने में सफल रहे। भाग निकले नक्सलियों को पकड़ने के लिए अलग टीम रवाना की गई है।माना जा रहा है कि जवानों के हमले में घायल नक्सली जंगल मे छिपे है, उनकी तलाश भी की जा रही है।जवानों के हौसले बुलंद है इसलिए वह नक्सलियों को घेर कर मारने में सफल हो रहे हैं, इसकी वजह यह है कि अब नक्सलियों के कहीं भी मौजूद होने की पक्की सूचना जवानों तक पहुंच रही है। पक्की सूचना पर बड़ी संख्या में जवान भी हमेशा बस्तर में मौजूद रहते हैं। 

पक्की सूचना व हमेशा बड़ी संख्या में जवान अभियान के लिए मौजूद रहने पर ही नक्सलियों का सफाया आसान हो गया है। पहले न तो नक्सलियों के कहीं होने की पक्की सूचना जवानों को मिल पाती थी और न ही बड़े आपरेशन के लिए तत्काल हजार पंद्रह सौ जवान उपलब्ध रहते थे। अभियान पर निकले जवानों को बैकअप चाहिए तो और जवानों के तत्काल भेजा जा सकता है। नक्सलियों के सफाए के लिए जरूरी है कि बस्तर में जितने नक्सली हैं, हमेशा उससे ज्यादा जवान मौजूद रहें। इससे नक्सली जवानों से डरते हैं सीधा मनोविज्ञान है कि जो संख्या में ज्यादा होता है, वह हमला करता है और जो संख्या में कम होता है वह जान बचाने की फिक्र करता है। 

अमितशाह ने जब तय किया कि नक्सलियों का सफाया ३१मार्च २०२६ तक करना है तो उन्होंने यूं ही नही कह दिया था इसके लिए जो भी जरूरी तैयारी थी,वह सब की गई। जवानों की संख्या बढ़ाई गई, पूरे बस्तर में नए नए कैंप खोले गए। कहीं भी पहुंचने के लिए सड़के बनाई गईं।यह तैयारी तो पहले की सरकारें भी कर सकती थी,पहले के गृहमंत्री भी कर सकते थे लेकिन उनमें और अमित शाह में एक बड़ा फर्क यह है कि दूसरी सरकारें व गृहमंत्री सोच ही नहीं पाते थे कि नक्सलियों का सफाया बस्तर से किया जा सकता है। इसलिए जवान भी कर नहीं पाते थे, जिस काम को नेता ही संभव नहीं मानता हो उस काम को उसकी टीम कैसे कर सकती है। अमित शाह ने सोचा नक्सलियों का सफाया करना है तो उन्होंने यह भी सोचा कि सफाया कैसे किया जा सकता है।

सीधा सा उपाय था कि बस्तर में जवानों की संख्या नक्सलियों से ज्यादा होगी तो नक्सली जवानों से डरेंगे और जवान उनको आसानी से मार सकेंगे। पहले अक्सर होता यह था कि नक्सली संख्या में ज्यादा होते थे, वह योजना बनाकर हमला करते थे और जवान मारे जाते थे। इससे जवानों में मारे जाने का डर होता था।अमित शाह ने जवानों की संख्या नक्सलियों से ज्यादा कर जवानों के डर को खत्म कर दिया है। अब मारे जाने का डर नक्सलियों में है।बस्तर में ऐसी कोई जगह नहीं है आज जहां जवान जाकर हमला नहीं कर सकते।पहले कई ऐसी जगहें थी जहां जवानों को भेजा नहीं जाता था कि नक्सली उनको घेर कर मार देंगे। अमित शाह की बडी़ सफलता यह है कि आज जवान नक्सलियों से नहीं डरते हैं, आज नक्सली जवानों से डरते हैं। 

यही वजह है कि इस साल मात्र ८० दिन में जवानों ने ९३ नक्सली मार गिराए हैं।४ जनवरी को मुठभेड़ में ५ नक्सली मारे गए थे और एक जवान शहीद हुआ था।९ जनवरी को सुकमा बीजापुर सीमा पर ३नक्सली मारे गए थे,१२ जनवरी को मद्देड़ इलाके में ५ नक्सली मारे गए थे,१६ जनवरी को पुजारी कांकेर में १८ नक्सली मारे गए थे,२०-२१ जनवरी को ओडिशा सीमा पर २७ नक्सली मारे गए थे. २ फरवरी को गंगालूर में ८ नक्सली मारे गए थे,९ फरवरी को मद्देड़ फरसेगढ़ सीमा पर ३१ नक्सली मारे गए थे।इन आंकड़ों को देखा जाए तो पता चलता है कि हमारे जवानों के हौसले कितने बुलंद हैं, वह जनवरी व फरवरी मेें तो हर तीन से पांच दिन में नक्सलियों को घेर कर मारने में सफल रहे हैं। हर सप्ताह जवानों ने नक्सलियों पर हमला किया है और उनको मारा है। 

इस दौरान दो ही जवान शहीद हुए है। इस तरह देखा जाए तो जवानों ने कम से कम नुकसान उठाकर नक्सलियों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। जवानों का नक्सलियों पर इतना खौफ है कि वह पहले की तरह योजना बनाकर कोई हमला नहींं कर पा रहे हैं वह इन दिनों अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं और बचा नहीं पा रहे हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों में भी भाजपा की सरकार होने के तीनों राज्यों के बीच नक्सलियों के सफाए के लिए सहमति बनी हुई है और वह एक दूसरे को नक्सलियों की सूचना देकर नक्सलियों के सफाए में मदद भी कर रहे हैं। यही वजह है कि नक्सलियों के लिए बस्तर सहित आसपास के राज्यों में भी कोई  सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है। नक्सली जिस इलाके को सुरक्षित समझते है, वहां जवानों ने उन को घेर कर मार कर बता दिया है कि बस्तर में अब कोई ऐसी कोई जगह नहीं है जहां वह पहुंच कर नक्सलियों का मार नहींं सकते।



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