मित्रता तो नंगु पंगु काल से प्रारंभ होकर लंगोट धारी अवस्था से गुजरते हुये किशोर , युवावस्था और फिर बुढ़ापे तक पहुँचते पहुँचते कई रंग देख व दिखा जाती है , परन्तु जब बच्चा किशोर और फिर जवानी की दहलीज पर होता है , उस वक्त परिवार के अलावा भी जीवन में बहुत से लोग जुड़ते है । जिसमे दो सबसे खतरनाक प्रकार के जीव होते है जिन्हें दोस्त , बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रैंड के नाम से जाना पहचाना जाता है । ये जीव ही ऐसे जीव है जो इस वक्त परिवार के पर्याय बन जाते है , जो ये कहते है वही सच व अकाट्य होता है । इनके आगे माँ-बाप , भाई-बहन व परिजनों की सलाह बेमानी और आजादी में बाधक लगने लगती है । इन दो खतरनाक जीवों से जब आप असीमित प्रेम करने लगते है तो यही सबसे खतरनाक बीमारी बन जाती है । किशोर और युवावस्था के दौर में जो किताबे और बाते प्रेम सिखाती है उससे दूरी बनाए । जीवन सहज सरल है इसे जटिल ना बनाये वरना मेरा बाबू ,मेरा सोना में उलझ कर आजादी से घूमना फिरना, दारू पीना पिलाना, लाइटर जलाना बुझाना ,गीत गजल सुनना , खेलना कूदना ,माँ के हाथों का खाना-पीना , पिता की फटकार सब दूर हो जाएगी ।
आज काफी दिनों बाद गोबरहींन टुरी से मुलाकात हुई तो उसे मित्रता दिवस की बधाई दे पड़ा तो गुसियते कहने लगी तै अपन आंय बायं वाले दिन ल धरे रह महराज । ए मित्रता फ्रेंडशिप के बहाना ले टुरा टुरी मेछरावत घुमत रहिथे । हम छत्तीसगढ़िया मन के मित्रता दिवस तो भोजली तिहार है । गोबरहींन टुरी का कहना भी सही है छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति में भोजली' अथवा 'गींया' (मित्र) बदने की प्राचीन परंपरा भी है। जिससे मन मिलता हो, जिससे अचार-विचार मिलते हो, जिससे प्रेम हो ऐसे साथी के कान में भोजली (गेंहू का पौधा या जंवारा) खोंचकर मित्रता की शपथ ली जाती है और भोजली बदा जाता है। यह बदना लोगों को जीवन पर्यन्त के लिए मित्रता के सूत्र में बांध जाता है , फिर उन्हें भोजली , गींया , गुइंया और आज कल मितान संबोधित करके ही पुकारते है ।
भाई मेरे संघर्षो में जो काम आए वही सच्चा मित्र है ऐसे मित्र की बराबरी कोई नही कर सकता । कृष्ण सुदामा , दुर्योधन कर्ण जैसे निष्कपट मित्र के देश में एयरटेल का एक विज्ञापन बताता है कि हर एक दोस्त कमीना होता है । ये भारतीय राजनीति की राजनैतिक दोस्ती पर सटीक बैठती है नेताओ की दोस्ती का मतलब मतलबपरस्ती होता है जहां सब मतलब के यार होते है । वैसे राजनीति में राजनीति में ना कोई स्थायी दोस्त होता है ना ही स्थाई दुश्मन , समय और राजनीतिक लाभ हानि के हिसाब से गुना भाग चलता है । सुबह की दोस्ती दोपहर आते तक दुश्मनी में बदल जाती है और शाम ढलते ढलते तक मतलब के हिसाब से पुनः दोस्ती भी हो जाती है । ये राजनीति है भाई साहब यंहा सब कुछ चलता रहता है किन्तु दुनियादारी और जीवन में तो परिवार से पहले ही दोस्त नज़र आता है फिर वो कितना ही कमीना क्यों न हो ।
पुनः मित्रता दिवस और आगामी देशी मित्रता दिवस भोजली की हार्दिक बधाई मंगलकामनाएं ।
और अंत मे :-
सच्चाई बिक रही है इस झूठी दुनिया में ,
सच बोलने के लिए झूठे लोग बिकते हैं ।
कौन सुनता है चीखें मजबूर गरीब लाचारों की ,
जिसके पास ताकत है दौलत की वहीं इंसाफ टिकता है।।
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