मूलभूत सुविधाओं से अब तक वंचित हैं संरक्षित कही जाने वाली जनजातियां...

Posted On:- 2022-08-08




-चंद्र शेखर शर्मा (पत्रकार) 9425522015

आजादी के लगभग सात दशक गुजर चुके है परन्तु आज भी कागजो और भाषणों में  संरक्षित कहे जाने वाले बैगा, कमार, कोरवा, बिंझवार, उँराव जैसी जनजातियां मुलभूत सुविधाओं साफ़ पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवागमन के साधन के लिए तरसती, शासन प्रशासन की योजनाओ और अपने रहनुमाओं के रहमोकरम के इंतज़ार में है। शहरो की किसी एक गली में एक दिन पानी ना आये तो हाहाकार मच जाता है, हॉस्पिटल में किसी की मौत हो जाय तो मीडिया में बड़ी बड़ी खबरे बन बहस का मुद्दा बन डिबेट प्रारंभ हो जाती है। कोई गरीब आदिवासी सुविधाओ के आभाव में दम तोड़ देता है तो किसी के कानों में जूं तक नही रेंगती, हाँ ये जरूर होता है कि इनकी मौत पर नेता राजनीती की दुकानदारी सजा लेते है और सत्ताधारी दल पर विपक्षी दल चढ़ बैठते है और घपले घोटालो के आरोपो की बौछार हो जाती है। सत्ता में बैठते ही विपक्षी भी सत्ता के अवगुण से बच नही पाते है। देश का दुर्भाग्य है कि इनके उत्थान की योजनाएं एसी कमरो में बैठ बिसलरी की बोतल और फाइव स्टार होटलो में बने पकवानों के बीच बनाई जाती है। सरकार किसी की भी हो वनांचल के आदिवासियों के उत्थान और विकास के लिए योजनाओ की फाइलों की कछुआ चाल, भ्रष्टाचार आजादी के सात दशक बाद भी सड़क विहीन होने का अभिशाप अँधेरे में जीवन गुजारने की पीड़ा, अदद ईलाज दवा और साफ पीने के पानी को तरसती आबादी को बैगा गुनिया, झोला छाप डॉक्टर व झिरिया का पानी पीने को मजबूर करती है। ऐसे हालात तब है जब आदिवासियों के उत्थान के लिए शासन प्रशासन के पास दर्जनो योजनाएं है। आजादी के बाद इन योजनाओ के जरिये इनके उत्थान और विकास के लिए अब तक अरबो रूपये पानी की तरह बहाए जा चुके है और बहाए भी जा रहे है । गिने चुने कामो को छोड़ दे तो अधिकाँश काम काज भ्रष्टाचार का निवाला बन रहे है । इन योजनाओं से आदिवासियों का कितना विकास हुआ ये तो नही पता पर इन क्षेत्रो में काम करने वाले अधिकांश एनजीओ , अफसरों , ठेकेदारों और जनप्रतिनिधियो की किस्मत बदली हुई नजर आती है । जिनकी औकात कभी सायकल की सवारी की नही थी वे एसी लगे चारपहिया वाहनों के मालिक बन बैठे है ।


विश्व आदिवासी दिवस पर भ्रष्टाचार के खेल में छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के आबकारी अमले की रिश्वतखोरी के लालच और काली कमाई की करतूत का उल्लेख भी आवश्यक है अफसरों के  लालच ने कंट्रोल रूम में एक आदिवासी युवा को फांसी के फंदे पर झूलने मजबूर कर दिया था । आज भी बैगा आदिवासियों को साफ पानी , कनकी मिट्टी विहिन गुणवत्ता युक्त राशन , बिना कंकड़ के नमक ,  सड़क , अंधेरे से लड़ने निर्बाध सोलर बिजली , बच्चो को शिक्षा के लिए रोज आने वाले गुरुजी की शिक्षा के लिए भटकना पड़ रहा । इनके उत्थान की आधी से ज्यादा योजनाएं तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है । खैर अब भ्रष्टाचार पर लिखना बेकार बेमानी सा लगता है क्योंकि अब यह शिष्टाचार जो बनता जा रहा है ।

विश्व आदिवासी दिवस पर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के उन बैगा बच्चो को बधाइयाँ जो शिक्षा के प्रति जागरूक हो और मेहनत व ईमानदारी से स्वाथ्य , शिक्षा और कृषि विभाग जैसे कई विभागों में अपनी सेवा के साथ साथ अपने समाज मे जागरूकता ला रहे है ।


राजनेता चुनाव के नज़दीक आते ही जो सक्रियता दिखाते है, जनता जनार्दन के दुःख दर्द के प्रति जो गहन चिंता व्यक्त करते है वो कोरी भाषण बाजी ना हो बल्कि वे समस्याओं के समाधान और संदर्भ में अपना दृष्टिकोण भी स्पष्ट करें। उनके बीच बहस मुलभुत समस्याओ और विकास के मॉडलों पर होनी चाहिए, न कि आरोपों-प्रत्यारोपों की गिरी हुई राजनीति पर।

अंत मे विकास की अंधी दौड़ की भागमभाग के बीच बैगा आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति के संरक्षण ,  इनके उत्थान और विकास कार्यो में कमीशन खोरी में लिप्त महामानवों को जल्द सद्बुद्धि आए इन्ही कामनाओ के साथ पुनः विश्व आदिवासी दिवस की हार्दिक बधाई मंगलकामनाएं।

और अंत में :
उनके देखने से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक,
वो समझते हैं कि गरीब का हाल अच्छा है।



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