रायपुर (वीएनएस)। रक्षा शब्द से बना है राखी, शास्त्रों में इसका मतलब कर्तव्यों का पालन करना है। भाई मतलब सिर्फ खून का रिश्ता नहीं होता। भाई वह होता है जो सुहाता है, जो हम को भाता है। भाई अगर बहन को एक बार साड़ी भेज दे तो सालभर पहनने के बाद उस साड़ी को भी बहन भूल जाती है। भाई-बहन अपने जीवन में एक दूसरे से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं और अक्सर बहन ही भाई से मांगती है और भाई भी बहन की सभी मांगों को पूरा करता है। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में चल रहे भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशा ने रक्षाबंधन के दिन गुरुवार को कही।
साध्वी कहती है कि सिर्फ भाई के हाथ में ही नहीं, हमें सब जगह राखी बांधनी चाहिए। दरवाजे की कुंडी से लेकर अलमारी, सोफा, कुर्सी-टेबल हर जगह पर आपको राखी बांधनी चाहिए। दरवाजे में राखी इसीलिए बांधी जाती है क्योंकि कोई भी असदाचारी, विकार या गंदगी घर के अंदर प्रवेश न करें। बनिए भी अपने कलम को राखी बांधते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी कलम के जरिए कोई अनीति ना लिखा जाए, कोई ऐसी दुर्बुद्धि ना दें ताकि कोई गलत वाक्य लिखा जाए। दुकानदार भी अपनी तराजू को राखी बांधता है, क्योंकि वह कभी गलत तौल ना कर दे। क्षत्रिय भी अपनी तलवार में राखी बांधते हैं, जबकि तलवार तो गर्दन उड़ाते हैं लेकिन वह तलवार में राखी बांधकर क्षत्रिय धर्म का पालन करते हैं। दोषियों को सजा देने वाला तलवार किसी निर्दोष पर ना उठ जाए इस वचन के साथ वे संकल्प लेते हैं और अपने राज्य की रक्षा करते हैं।
जात-पात और भेदभाव से ऊपर उठो
साध्वी कहती है कि इतिहास की बात है, कर्णावती में एक मुसलमान शासक हमला करता हैं। कर्णावती की रानी उस मुसलमान शासक से लड़ने में असक्षम हो जाती है और वह उसके साम्राज्य में हमला करने लगता है। जब वह कर्णावती की रानी शहंशाह ए हिंदुस्तान राजा हुमायूं को एक सूत का धागा और एक पत्र भेजती है। जब वह पत्र राजा हुमायूं को मिलता है, तब वह एक युद्ध में होता है। वह पत्र को पढ़ता है जिसमें लिखा होता है कि भाई मुझे आपकी जरूरत है। आप मेरी रक्षा कीजिए एक शासक मेरे साम्राज्य में हमला कर रहा है मुझे बचा लीजिए। इतना पढ़कर हुमायूं युद्ध को विराम देता है। पहली बार किसी ने भाई कहकर राखी भेजी इसके लिए वह राजस्थान के कर्णावती राज्य की सीमा पर पहुंचता है और मुसलमान शासक पर आक्रमण करता है। ऐसा करके वह कर्णावती साम्राज्य को बचा लेता है। इससे यह संदेश मिलता है कि राखी सिर्फ खून के रिश्ते में नहीं, जात-पात को देखे बिना मनाई जाती है। रक्षाबंधन व्यवहार मात्र के लिए नहीं है कि भाई के घर जाना है या बहन के घर जाना है और राखी बांधना है लेना-देना है और वापस आ जाना है।
भाई से जो मांगाे, वह मिलता है
साध्वी कहती है कि एक बार की बात है कोयल जैसी वह मधुर कंठ पाने वाली लता मंगेश्कर बहुत साल के बाद रक्षाबंधन के दिन अपने भाई के घर जाती है। भाई इंतजार कर रहा होता है। वह अपने भाई के घर पहुंचती है। वह देखती है कि घर के बाहर में एक टोकरी में बहुत सारे कोयल को बांधकर रखा गया है। इसे देखकर ही वह अंदर नहीं जाती अपने भाई को बाहर बुलाती है और उससे पूछती है कि यह सब क्या है। इन पक्षियों को ऐसे बांधकर क्यों रखा गया है। भाई कहता है कि तुम अंदर चलो फिर मैं तुम्हें बताता हूं। लता मंगेशकर कहती है कि नहीं पहले मुझे बताओ और इन्हें रिहा भी करो क्योंकि यह पंछी खुले आसमान में घूमेंगे तभी यह अपनी मधुर आवाज निकाल सकेंगे। भाई कहता है कि ठीक है, मैं इन्हें छोड़ दूंगा लेकिन तुम अंदर आ जाओ मैंने बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया है। वह खालो उसके बाद मैं इन्हें छोड़ दूंगा। लता मंगेशकर कहती है कि नहीं पहले जब तुम्हें छोड़ोगे तभी मैं अंदर आऊंगी और जब तुम मुझे बताओगे तभी मैं मानूंगी नहीं तो मैं यहीं से वापस चले जाऊंगी। इस पर भाई बताते हैं कि मैंने इन मधुर बोली वाले कोयलों को इसीलिए ला कर रखा है ताकि इन सभी की जीभ काट कर इनकी चटनी बनाकर तुम्हें खिलाऊंगा, इससे तुम्हारी आवाज में और मधुरता आ जाएगी। लता मंगेशकर कहती है कि नहीं, मैं कभी ऐसा भोजन नहीं करूंगी, जिसमें किसी पशु-पक्षी की जान चली जाए और इन कोयलों को तो कदापि नहीं। क्योंकि आज दुनिया में मेरी पहचान है तो इन्हीं से है। मुझे लोग कोयल जैसे सुमधुर कंठ की मालकिन कहते हैं। मैं कभी ऐसा नहीं कर सकती। इसके बाद लता मंगेशकर के भाई उन सभी को वालों को आजाद कर देते हैं। यह भाई का बहन के प्रति प्यार था। हालांकि यह करना गलत।
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