बात बेबाक : सहीं मायने में आजादी भ्रष्ट सिस्टम से मुक्त विकास की धारा, गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने पर दिखेगी

Posted On:- 2022-08-14




चन्द्रशेखर शर्मा, 9425522015

हमारा स्वाधीनता दिवस अपने तय समय पर 15 अगस्त को ही फिर आ रहा है। इस बार हम भारतीयों के लिए खास खुशी का माहौल है कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव के नाम पर मना रहे हैं। दुरंगी और तिरंगी सरकार ने तिरंगा यात्रा के बहाने देशभक्ति भी दुरंगी तिरंगी बना डाली। देश सात दशक पहले ही आजाद हो गया था परन्तु शिन मायने में आजादी के मायने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति नही अपितु भ्रष्ट सिस्टम से मुक्ति विकास की धारा के गांव के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने पर दिखेगी।

13 अगस्त को आजादी के अमृत महोत्सव के जश्न में डूबे शहर में दूरस्थ अंचलो से जन समूह का अथाह सागर उमड़ पड़ा था कारण आजादी के जश्न तो बहाना था नेता जी को चेहरा दिखा सर (मुंडी) गिना नम्बर बढ़ा राजनीति चमकाने के अवसर का था । मंत्री से सन्तरी तक आजादी का अमृत महोत्सव के रंग में डूब देश भक्ति में डूबे थे ।हांथो में आजादी के जश्न का तिरंगा था तो दूसरी ओर जिला मुख्यालय में लगभग 90 किलोमीटर दूर वनांचल क्षेत्र रेंगाखर में बुजुर्ग महिला के परिजन सिस्टम की खाट पर शुगन बाई की लाश पोष्ट मार्टम के लिए ढो रहे थे । आजादी के 75 साल बाद भी खाट पर लाश ढोने की मजबूरी ऊपर से पीएम के लिए मर्च्युरी तक अपने बंगले से आने जाने के लिए कारों के शौकीन डाक्टर का आने जाने के लिए बेबस गरीबो से कार की मांग आजाद भारत मे गरीबो गुरबों को गुलाम समझने की मानसिकता को बता रहा । क्या सच मे हम आजाद भारत के स्वतंत्र नागरिक है या सिस्टम के मारे गुलाम। खैर लाश को खाट और डॉक्टर को कार में बैठाने वाले सिस्टम मे डाक्टर के खिलाफ  कई शिकायत के बाद कभी कोई कार्यवाही नही हो पाई है तो अब कौन सा हो जाना है।

मैं भी कहा कि बात लेकर बैठ गया बात आजादी के जश्न को लेकर हो रही थी आजादी के अमृत महोत्सव में मंत्री के आगे पीछे एक दूसरे को धकियाते मंत्री के अगलबगल दौड़ने वाले 14 अगस्त सद्भावना दौड़ से लापता दिखे सहज रूप से हर कार्यक्रम में पहुंचने वाले नगरपालिका अध्यक्ष की उपस्थिति जरूर रही । स्कूल के बच्चे और फोर्स अकेडमी के बच्चे ना हो तो सद्भावना दौड़ में उंगलियों में गिनने गिनाने वाले लोग ही दिखे। 

सद्भावना की बात को सुनती गोबरहींन टुरी भी बिन कहे नही रह पाई कहने लगी महाराज तहु जानबूझ कर येड़ा बंथस का नेता मन असन , नेता मन मे कमीशन खोरी बस में सद्भावना रहिथे फेर अगुवा भगुआ डंडा अउ झन्डा के बहाना ले कुर्सी पाय के भावना बस रहिथे। 

वैसे गोबरहींन की बात सोलह आने ठीक है इन दिनों देश की राजनीति राष्ट्रवाद और भगवा के झंझावतों से जूझ रही है । देश भक्ति भी दुरंगे और तिरंगे में बंट गई है। राजनीति के खेल में सब जायज है परंतु राजनीतिज्ञों को यह भी याद रखना होगा कि राष्ट्र से ऊपर ना कोई नेता है ना पार्टी। 

राष्ट्रवाद देशभक्ति का जज़्बा आने वाली पीढ़ियों में भी जगाये रखना है ताकि वो 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाये, नेशनल हॉलिडे के रूप में नहीं। आज डिजिटलाईजेशन के दौर और टीवी चैनलों के चिल्लपों के बीच फ़ेसबुकिया देशभक्ति के दौर में अब आजादी का वो जोश और जुनून महज दिखावे, सेल्फी और लाइक्स तक ही सिमट कर रह गया है । स्कूल के दौर का स्वाधीनता दिवस बस अब यादे बन कर रह गया है। उस दौर में स्वतंत्रता दिवस वाकई में त्यौहार जैसे ही मनाया जाता था । एक दिन पहले तोरण बना कर स्कूल को सजाना साफ सफाई ,लिपाई पोताई करना फिर भाषण कविता की तैयारी करना कपड़े प्रेस करना और फिर अगली सुबह सारे चौक चौराहो पे बजते हुए देशभक्ति गाने सुनते और ध्वजारोहण की तैयारियां देखते हुए स्कूल जाने का मज़ा ही कुछ और था, स्कूल पहुँच के लाइन में लग के ध्वजारोहण के बाद एक सुर में राष्ट्रगान गाना, और कभी भाषण देने या कविता पाठ और वादविवाद का मौका मिले तो डरते हकलाते भागीदारी कर बूंदी के लड्डू खाते खाते घर जाना पर घर जाने के पहले मास्साब का समझना कि, इस आज़ादी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है हमने इसे सम्हाल कर रखना देश का, माता-पिता का नाम रोशन करना की सीख आज भी याद आती है ,जो अब भागमभाग की जिंदगी और फ़ेसबुकिया दुनिया मे खो सी रही है।

खैर विकास की अंधी दौड़ में भागते मेरे प्यारे देश वासियों के साथ साथ स्वतंत्रता दिवस समारोह के सभी अतिथियों ,जुगाड़ से सम्मान हासिल करने वाले जुगाड़ बाजों , वी आई पी पास लेकर वी आई पी गैलरी मे बैठे गणमान्य होने का वहम पाले महामानवों , बड़ी तोंद वाले नेता , अफसर , व्यापारी, कार्यक्रम के आयोजन की आड़ में भी कमाई की तलाश करते तथाकथित ईमानदार बेईमानो को भी स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं…

भारत माता की जय
वंदे मातरम
जय हिंद…

और अंत मे :
मेरे जैसे इस बस्ती में और भी पागल रहते हैं,
सब ने आँखें गिरवी रख ,कर आधे ख़्वाब ख़रीदे हैं ।
बातें यादें रातें आँखें , बाँहें आहें फ़रियादें,
सूने घर के इक कोने में, अक्सर मिल कर रोते हैं ।



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