देश में आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इन सालों में देश में बहुत बदलाव हुए हैं। राजनीतिक बदलाव, सामाजिक बदलाव, आर्थिक वदलाव, वैचारिक बदलाव हुऐ हैं। देश सशक्त हुआ है, देश की बहुसंख्यक जनता जागरूक हो रही है। वह अपनी ताकत को पहचान रही है। वह समझ रही है कि कौन उनके साथ नहीं है तथा कौन उनके साथ है। देश की बहुसंख्यक जनता को बरसों तक यह पता नहीं था कि उसकी ताकत क्या है। इस देश में चाहे तो क्या कर सकती है। इसलिए कहा जाता है कि बहुसंख्यक जनता हनुमान की तरह है, उसे पता नहीं रहता कि उसकी अथाह ताकत है, उसे उसकी अथाह ताकत के बारे में जब कोई बताता है तो वह समझती है। वह अपनी ताकत का इस्तेमाल करती है। वह चुपचाप करती है जिसकी कल्पना तक बहुत से लोग नहीं कर पाते हैं। सुपर स्टार आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्डा इसका एक अच्छा उदाहरण है कि इस देश के चुप रहने वाली, कुछ नहीं करने वाली जनता जब करने पर आती है तो वह क्या कर सकती है। सुपर स्टार आमिर खान को इस बात का गुरुर था कि उसकी फिल्म इतनी अच्छी होती है कि उसे सुपर हिट से होने से कोई रोक नहीं सकता। वह बहुसंख्यक समाज के बारे में कुछ भी बोलकर इस देश में सुपर स्टार बने रह सकते हैं। उनकी बनाई हर फिल्म बहुसंख्यक समाज के खिलाफ कुछ भी बोलकर सुपर हिट हो सकती है। बहुसंख्यक समाज ने उनके गुरुर को तोड़़ दिया है। बहुसंख्यक जनता ने बता दिया है कि तुम सुपरस्टार हो तो हमारी बदौलत हो, तुम्हारी मूवी करोड़ो रुपए कमाती है तो हमारी बदौलत। हम तुम्हारी पिक्चर देखने जाते हैं, इसलिए तुम्हारी पिक्चर अच्छी है। हम नही देखने जाऐगे तो तुम सुपरस्टार नहीं रह सकते, हम देखने नहीं जाएंगे तो तुम्हारी पिक्चर सुपर हिट नहीं हो सकती। हम पिक्चर नहीं देखने जाएंगे तो तुम करोड़ो रुपए कमा नहीं सकते, तुम अरबपति नहीं बन सकते। आमिर खान के साथ ही बालीवुड के उन तमाम लोगों के लिए भी लालसिंह चड्डा का पहले दो दिन खास बिजनेस नही करना सबक है जो सोचते हैं कि बहुसंख्यक समाज का मजाक उड़ाकर अब बिजनेस कर सकते हैं। बहुत सालों से यही हो रहा था बहुसंख्यक समाज का मजाक उड़ाया जा रहा था, उसकी सभ्यता संस्कृति बुरा बताया जा रहा था, इस देश के लोग पैसा देखर देखने जाते थे। कही किसी को गुस्सा नहीं आता था, अब वक्त बदल गया है। अब बहुसंख्यक समाज जाग गया है, उसे अपनी ताकत का पता चल गया है कि वह उनके साथ जो उसके साथ नहीं है,क्या कर सकता है। वह दूसरे समाजों की तरह न तो नमाज के बाद पत्थर लेकर निकलता है, न ही ही कही सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है। न ही किसी गाली देता है, न ही किसी को मारती पीटता है, न ही किसी सरकार या पुलिस की उसे जरूरत है। वह किसी की मदद नहीं लेता है। वह कोई आंदोलन नहीं करता है , वह किसी तो डराता नहीं है। वह घर से ही नहीं निकलता है। यह पहली बार इस देश में हुआ है कि बहुसंख्यक समाज ने किसी पिक्चर को देखने के लिए घर से नहीं निकलने का फैसला किया। पहले दिन सौ करोड़ कमान वाले की पिक्चर सौ करोड़ का बिजनेस नहीं कर सकी। अब ऐसी कोई पिक्चर इस देश में सौ करोड़ का बिजनेस नहीं कर सकेगी जिसमेें यह कहा जाए कि पूजा पाठ करने से दंगा होता है। बहुसंख्यक समाज को जागने में 75 जरूर लग गए लेकिन वह आग गया है तो वह सब अब नहीं होगा जो अब तक उसके साथ होता आ रहा था। उसे सबक सिखाना आता है, शांति से सबक सिखाना आता है, वह सभी को शांति से सबक सिखा रहा है। इसे असहिष्णु कहा गया तो उसने असहिष्णु कहने वाला को सबक सिखाया। उसे आतंकवादी बताने की कोशिश की गई तो वह उनको शांति से सबक सिखाया। अब पिक्चर हो, साहित्य हो ऐसा कुछ नही ंचल सकता जिसमें बहुसख्यका को बुरा बताया गया हो। वह जमाना गया, अब जमाना बदल गया है तथा इसे बहुसंख्यकक समाज ही बदल रहा है।अब जमाना बहुसंख्यक समाज का है, आप उसे नाराज करके घाटे में ही रहेंगे। उसे नाराज करके आप कोई बिजनेस नहीं कर सकते। उसे नाराज करके आप कोई चुनाव नहीं जीत सकते। आप बहुसंख्यक समाज के हैं या नहीं है, लेकिन आप उसकी परवाह नही करेंगे तो वह भी आपकी परवाह नहीं करेगा। लाल सिंह चड्डा का फ्लाप होना उन सभी के लिए सबक है,जो बहुसंख्यक समाज के साथ नहीं है।
देश में बहुत से राज्य हैं। हर पांच साल में चुनाव होते हैं और राज्यों के सीएम बदल जाते हैं। आजादी के बाद से सैकड़ों सीएम अब तक बदल गए हैं
..एक हार से नेता व पार्टी कितनी निराश हो जाती है। इसका उदाहरण राज्य के लोगों को दो बार देखने को मिला है।
हर बार जब भी विधानसभा चुानव हो या चुनाव हो, एक दल से दूसरे दल में नेताओं व कार्यकर्ताओं को आना जाना लगा रहता है, यह स्वाभाविक माना जाता है।
.राजनीति में कई बार कहा कुछ नही जाता है लेकिन घटनाओं के जरिए संकेत किया जाता है कि किसका राजनीतिक कद बढ़ा है तथा किस का राजनीतिक कद घटा है।
पुरानी सरकार जाती है और नई सरकार आती है तो पुराना बहुत कुछ बदलता है, बरसो से जो चला आ रहा है, वह चलना धीरे धीरे बंद होता है। धीरे-धीरे नया क्या है,...
परिवार हो या पार्टी हो उसके सामने चढाव व उताव तो आते रहते हैं। मुश्किलों का दौर भी आता है। उसका मुकाबला करना पड़ता है।