खेती-किसानी की बात निकलते ही हम सबको गांवों मे हल-बैल लेकर फसल उगाते किसान नज़र आते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि नन्हीं चींटियों ने खेती करना करीब पौने तीन करोड़ साल पहले शुरू कर दिया था।
आजकल सैकड़ों चींटी प्रजातियां फफूंद की खेती करती हैं। ये चींटियां पौधों की पत्तियां कुतरती हैं और उन्हें अपनी बांबी में ले जाती हैं और ताज़ी हरी पत्तियां फफूंदों को खिलाती हैं। जहां इन फफूंदों को रखा जाता है, उन प्रकोष्ठों के वातावरण को भलीभांति नियंत्रित रखा जाता है। चींटियां फिर इन फफूंदों का भक्षण करती हैं।
चींटियों के उद्विकास के अध्ययन से संकेत मिलता है कि चींटी-फफूंद का यह सम्बंध करोड़ों वर्ष पुराना है। अब साइन्स में प्रकाशित एक अध्ययन में फफूंद के साथ चींटियों के इस सम्बंध की शुरुआत का समय अधिक सटीकता से निर्धारित किया गया है। यह अनुकूलन लगभग 6.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ था जब एक उल्का की टक्कर ने पृथ्वी से डायनासौर समेत कई प्राणियों का सफाया कर दिया था।
चींटियों के फफूंद बागानों का सर्वप्रथम विवरण डेढ़ सौ साल पहले दिया गया था। तब से वैज्ञानिकों ने 247 ऐसी चींटी प्रजातियां खोजी हैं जो फफूंदों को पालती हैं और भोजन के लिए उन पर निर्भर हैं। शोधकर्ताओं का मत रहा है कि ऐसी सारी किसान चींटियां एक साझा पूर्वज से विकसित हुई हैं और धीरे-धीरे प्रत्येक प्रजाति ने अलग-अलग फफूंद को पालतू बना लिया और इस तरह वे अलग-अलग प्रजातियां बन गईं।
लेकिन इस फफूंद-चींटी कृषि सम्बंध में शामिल फफूंदों का वंशवृक्ष तैयार करना एक चुनौती रही है। इस वजह से यह कहना मुश्किल रहा था कि यह सम्बंध कब शुरू हुआ था। अब फफूंद जीनोम के विश्लेषण की नई तकनीकें विकसित होने के बाद 475 फफूंद प्रजातियों के जीनोम का निर्धारण संभव हो पाया है। इनमें से लगभग सभी की खेती चींटियों द्वारा की जाती है। स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के टेड शूल्ज़ और उनके साथियों ने इस जानकारी को 276 चींटी प्रजातियों के जीनोम आंकड़ों के साथ रखकर देखा। इन वंशवृक्षों को जब चींटी व फफूंद के जीवाश्म रिकॉर्ड के साथ रखकर अध्ययन किया तो वे प्रत्येक जोड़ी के आरंभ की तारीख का अंदाज़ लगा पाए।
इस विश्लेषण के आधार पर शूल्ज़ का निष्कर्ष है कि किसानी में शामिल चींटी और फफूंद दोनों का उद्भव करीब 6.6 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। उस समय उल्का की टक्कर के कारण मलबे का ऐसा गुबार फैला कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कई महीनों के लिए ठप हो गई। वनस्पतियों और उन पर निर्भर जीवों का सफाया हो गया। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया वनस्पतियों के लिए तो ज़रूरी है ही, समस्त जंतु भी भोजन के लिए इसी के भरोसे हैं।
लेकिन फफूंदों की तो बन आई। फफूंद आम तौर पर वनस्पति अवशेषों का विघटन करके काम चलाती हैं। शोधकर्ताओं का मत है कि इस समय जो चींटियां फफूंदों के साथ ढीला-ढाला सम्बंध बना चुकी थीं, उन्होंने इसे और मज़बूत कर लिया। यही आगे चलकर फफूंदों के पालतूकरण के रूप में सामने आया, जिसमें फफूंद पूरी तरह चींटियों की परवरिश के भरोसे हो गईं। पहले कुछ लाख वर्षों तक तो चींटियां जंगली फफूंदों को पालती रहीं। फिर लगभग 2.7 करोड़ वर्ष पूर्व कुछ चींटियों ने फफूंद की किस्मों को पूरी तरह पालतू बना लिया जो आज अपने जंगली सम्बंधियों से पूरी तरह कट चुकी हैं।
यहां एक दिलचस्प बात बताई जा सकती है कि चींटियां सिर्फ खेती नहीं करती, बल्कि मनुष्यों के समान पशुपालन भी करती हैं। (स्रोत फीचर्स)
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय की ऊंचाइयों में हिमनद झीलें तेज़ी से फैल रही हैं, जिससे नीचे के इलाकों में विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
परस्पर जुड़ी इस दुनिया में अक्सर हमारे भोजन को थाली तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ती है।
प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या को थामने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के प्रयास करीब-करीब विफल ही रहे हैं।
व्हाट्सएप, दुनिया का सबसे पॉपुलर इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप, अपने यूजर्स को बेहतर अनुभव देने के लिए लगातार नए फीचर्स पेश कर रहा है। हाल ही में, कंपनी ने ...
हाल ही में साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन का निष्कर्ष है कि दुनिया भर के लगभग 4.4 अरब लोग असुरक्षित पानी पीते हैं।