बिलासपुर (वीएनएस)। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सख्त नाराजगी के बाद राज्य पुलिस मुख्यालय ने एक 9 साल पुराने आपराधिक मामले में अभूतपूर्व तेजी दिखाई है। हाईकोर्ट से फटकार लगने के 24 घंटे के भीतर ही पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में केस बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
राज्य के पुलिस महानिदेशक अरुण देव गौतम (DGP) ने खुद अदालत में व्यक्तिगत हलफनामा (Affidavit) दाखिल कर पूरी कार्रवाई की जानकारी दी। साथ ही, जांच में देरी और लापरवाही बरतने के लिए 7 पुलिस अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।
मामला क्या है
यह मामला वर्ष 2016 का है। याचिकाकर्ता लखनलाल वर्मा के खिलाफ अंबिकापुर थाने में धारा 384, 502, 504 और 34 भादवि के तहत अपराध दर्ज किया गया था। लखनलाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उनके दो सह-आरोपी पहले ही बरी हो चुके हैं, लेकिन पुलिस जानबूझकर उनके खिलाफ जांच लंबित रखे हुए है।
हाईकोर्ट का सख्त रुख
हाईकोर्ट ने 6 नवंबर 2025 को DGP को आदेश दिया था कि वह व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें और बताएं कि 9 साल से लंबित जांच में इतनी देरी क्यों हुई, तथा संबंधित अफसरों पर क्या कार्रवाई की गई।
DGP ने सौंपी रिपोर्ट, 7 अधिकारियों पर कार्रवाई
हाईकोर्ट के निर्देश मिलते ही DGP अरुण देव गौतम ने मामले की समीक्षा कर पुलिस मुख्यालय से रिपोर्ट तैयार करवाई। रिपोर्ट में देरी के लिए जिम्मेदार अफसरों पर निम्न कार्रवाई की गई:
6 उपनिरीक्षक (SI) — नरेश चौहान, विनय सिंह, मनीष सिंह परिहार, प्रियेश जॉन, नरेश साहू, वंश नारायण शर्मा की 1 वर्ष की वेतन वृद्धि रोकी गई।
तत्कालीन DSP मणीशंकर चंद्रा को ‘निराशा का दंड (Displeasure)’ दिया गया है।
जांच में नहीं मिले साक्ष्य, केस बंद करने की प्रक्रिया शुरू
अपने हलफनामे में DGP ने कहा कि जांच के दौरान कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला। इसलिए अब मामले में धारा 169 CrPC के तहत अंतिम रिपोर्ट विचारण न्यायालय में प्रस्तुत की जा रही है। उन्होंने अदालत को भरोसा दिलाया कि हाईकोर्ट के सभी निर्देशों का शत-प्रतिशत पालन किया गया है।
9 साल बाद 24 घंटे में खत्म हुआ केस
हाईकोर्ट की सख्त फटकार के बाद यह केस केवल 24 घंटे में बंद करने की प्रक्रिया में पहुंच गया। मामला यह सवाल भी खड़ा करता है कि जब 9 साल की जांच में कोई साक्ष्य नहीं मिला, तो इतने वर्षों तक एक पत्रकार के खिलाफ केस क्यों लटकता रहा?
पुलिस पर प्रशासनिक सुधार का दबाव
यह मामला छत्तीसगढ़ पुलिस तंत्र में लंबित जांचों की स्थिति पर भी गंभीर सवाल उठाता है। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पुलिस विभाग ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में ऐसे मामलों की टाइमलाइन-आधारित निगरानी प्रणाली लागू की जाएगी ताकि अनावश्यक विलंब को रोका जा सके।
यह मामला न्यायिक जवाबदेही और प्रशासनिक दक्षता, दोनों के लिए एक सबक बन गया है।
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