रायपुर (वीएनएस)। पवित्र-निर्मल-उज्जवल बनाने जैसी यदि कोई चीज है तो वह है हमारा मन। सन्मार्ग पर चलने के लिए देश बदला, परिवेश बदला, वेश बदला और सब कुछ बदल दिया पर मन न बदला, मन संसार में ही अटका रहा तो सब कुछ बेकार हो जाता है। मन की दशाएं न बदलीं तो सारे बदलाव व्यर्थ हो जाते हैं। मन की बदलती दशाओं के नियामक हम खुद हैं।
ये प्रेरक उद्गार ललितप्रभ सागर महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत स्वास्थ्य सप्ताह के पंचम दिवस शुक्रवार को ‘मन के दोषों को कैसे करें दूर’ विषय पर व्यक्त किए।
चंद्रप्रभ महाराज द्वारा रचित प्रेरक गीत ‘जिया कब तक उलझेगा संकल्प-विकल्पों में, कब तक यूं भटकेगा तू मन के द्वंद्वों में...’ के बोधगम्य गान से दिव्य सत्संग का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि मन की चंचलता-उसकी बदलती दशाओं के नियामक हम खुद हैं। ये मत कहो कि मुझे गुस्सा आ गया, गुस्से को आपने खुद पैदा किया है। हमारे मन की दशा मंथन के दौरान सृजक बने समुद्र की तरह है, जो अपने में से अमृत देता है तो जहर भी देता है। आदमी का मन भी बड़ा गजब का है, कभी इसमें से अमृत निकलकर आता है और कभी जहर निकलकर आता है। इस दुनिया में जो अमृत पीते हैं वे देव, जो जहर पीते हैं वे महादेव और जो बेचारे अमृत और विष दोनों को पीते हैं वे इंसान कहलाते हैं। मन की भावदशाओं अर्थात् मन की बदलती दशाओं का परिणाम ऐसा घातक भी हो सकता है कि आराधनाएं भी विराधना में बदल सकती हैं। मन की भावदशाएं बदल जाएं तो खुद को जीतने निकला संन्यासी-संत भी संसार की आसक्तियों से हार सकता है। जीवन की अंतिम सांस तक जिसके मन में परम वैराग्य के भाव बने रहते हैं वह संत होता है उसकी साधना सफल हो जाती है।
कोई राम तो कोई रावण, यह मन की दशा का खेल
संत ने कहा कि ये मन की दशा का खेल है- मन सुधरा तो एक इंसान राम बन जाता है, मन बिगड़ा तो एक इंसान रावण बन जाता है। मन सुधरा तो उसी इंसान में से कोई कृष्ण पैदा हो जाता है, मन बिगड़ा तो उसी इंसान में से कंस पैदा हो जाता है। मन सुधरा तो कोई महावीर बन जाते हैं और मन बिगड़ा तो कोई गौशालक बन जाता है।
मन विजय है सबसे बड़ी जीत
संतप्रवर ने कहा कि जैन दर्शन में पर्यूषण पर्व की आराधना करने की पीछे की मूल भावना यही है कि आदमी अपने मन के प्रदूषण को हटा ले। जिसके प्रति मन में राग-द्वेष, कलह हो क्षमा मांगकर उसे दूर कर लेना, यही तो है पर्यूषण पर्व मनाने की असल साधना। युद्ध केे मैदान में हजारों-हजार योद्धाओं पर विजय पाने से भी बड़ी विजय यदि कोई है तो वह है- अपने मन पर विजय पाना। बाजी जीतनी हो या हारनी हो, सारा खेल जब चलता है तो वह आदमी के अपने मन के आधार पर चलता है। लाख कोशिश के बावजूद आदमी का मन टिकता नहीं है और जिंदगीभर इसे भरते रहो, ये भरता नहीं। कहने के लिए तो हमने इसे यूं भोलेपन में कह दिया कि ये मन बंदर जैसा चंचल है, अरे बंदर तो इसके सामने होता ही क्या है। कहने के लिए कह देते हैं कि मन गिरगिट की तरह रंग बदलता है, अरे गिरगिट की भी इसके सामने मजाल ही क्या। आदमी का मन जब बदलना शुरू होता है तो आदमी का मन एक तरफ और हजार बंदर एक तरफ। गिरगिट को रंग बदलने में तो फिर भी दो-चार मिनट लगते हैं पर आदमी का मन बदलते क्षणभर भी नहीं लगता।
संसार की चकाचैंध देख मन की दशाएं न बदलें
विषयान्तर्गत संत ने आगे कहा कि जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी मन में सदा साधुता की भावना रखता है वह धन्य है। संसार की चकाचैंध को देखकर अपने मन की दशाएं न बदलें। जब तक आदमी अपने मन की बदलती दशाओं को स्थिर नहीं रख पाएगा तब तक परम वैराग्य दशा को वह जी नहीं पाएगा। मन की दशा अगर सुधर गई तो समझो जिंदगी पूरी सुधर गई।
आज आदमी दोमुंहे सांप की तरह
संत प्रवर ने विषय को गति प्रदान करते हुए कहा कि आदमी का मन तीन तरह का होता है। एक तमो गुण से जुड़ा मन, दूसरा रजो गुण से और तीसरा सतो गुण से जुड़ा हुआ होता है। तमो गुण से जुड़े हुए मन वाला आदमी क्रोध, मान, माया, लोभ, छल-प्रपंचों से भरा होता है। आजकल आदमी दोमुंहे सांप की तरह हो गया है, पता ही नहीं लगता कि वह बोलता क्या है और करता क्या है। रजो गुण से जुड़े मन वाला आदमी संसार के भोग-विलासों में लिप्त रहता हे। और तमो गुण से जुड़े मन का धनी प्रेम, मैत्री, दया-करूणा और भलाई के सद्गुणों से भरा होता है। उसके मन की प्रवत्ति सदा शुभ होती है। मन के दोषों में पहला है कामुकता, दूसरा लोभी, तीसरा क्रोधी। आदमी का मन बिजली की तरह है, जो यदि सही जुड़ जाए तो उजाला पैदा करती है और यदि गलत जुड़ जाए तो झटके मारती है।
संत ने बताया कि आदमी की मनोदशा के आधार पर ही उसका आभामण्डल बना करता है। आज मैं यह रहस्योद्घाटन करना चाहुंगा कि दुनिया में हर जीवित प्राणी का आभामण्डल होता है। यदि उसके पीछे बनने वाला आभामण्डल खत्म हो गया तो समझो वह इस दुनिया से चला गया। यह आभामण्डल हमारे विचारों के आधार पर बनता है, हमारे शरीर के रंग-रूप के आधार पर नहीं। भगवान महावीर ने हमें एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया था वह है- लेश्या मण्डल। मन की बदलती स्थितियों के आधार पर हमारा लेश्यामण्डल बदलता रहता है। शुभ मन से बनने वाली लेश्याएं शुभ और अशुभ मन से बनने वाली लेश्याएं अशुभ लेश्याएं होती हैं। जब तक आदमी का आभामण्डल नहीं सुधर जाता है, तब तक उसकी सारी धर्मक्रियाएं भी निष्फल ही रह जाती हैं।
परमात्मा से जुड़ने की रामबाण विधि है योगः डॉ. मुनि शांतिप्रियजी
दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर ने कहा कि योग यह जीवन जीने की शैली है। योग व ध्यान साधना यह परमात्मा से जुड़ने की रामबाण विधि भी है। योग करने पर स्वास्थ्य और मन की शांति दोनों मिल जाते हैं। श्वांस को भीतर लेने और बाहर छोड़ने की सही प्रक्रिया नाम प्राणायाम है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे एकाग्रता में वृद्धि, मनोविकारों का क्षय, प्राणशक्ति में बढ़ोतरी और मन के आवरणों का क्षय होता है। प्राणायाम यह प्राणों का रक्षक है, इसे हमें नित्यप्रति करना चाहिए। प्राणायाम के सतत् अभ्यास से ही ध्यान की ओर बढ़ना संभव है। मुनि द्वारा श्रद्धालुओं को पांच मिनट तक उदर, हृदय, कंठ, मस्तिष्क व नाड़ी शुद्धि इन पांच प्राणायामों सहित अनुलोम-विलोम का सरल अभ्यास कराया गया।
इन अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञानदीप
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्र्स्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि शुक्रवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण राजेंद्र वोरा बंगलुरू, डाॅ. अंशुल बरड़िया, धरमचंद चोरड़िया, निकेश बरड़िया, संपतलाल घिया, पदमचंद बाघमार द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के कोषाध्यक्ष अमित मूणोत व श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली ने किया। आज धर्मसभा में संत के दर्शन-आशीर्वचनों का लाभ लेने पूर्व न्यायाधीश नीलमचंद सांखला का आगमन हुआ। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संत के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का प्रभावी संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव प्रशांत तालेड़ा ने किया।
आज प्रवचन ‘सुधारेंगे नेचर, तभी सुधरेगा फ्यूचर’ विषय पर
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि स्वास्थ्य सप्ताह के छठवें दिन शनिवार 30 जुलाई को सुबह 8ः45 बजे से ‘सुधारेंगे नेचर, तभी सुधरेगा फ्यूचर’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।
राज्य शासन के निर्देश पर जिले में अवैध रेत परिवहन के मामलों में तेज़ी से कार्रवाई की जा रही है।
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