कांवड़ियो के उपचार की बेहतर व्यवस्था कराई जा रही

Posted On:- 2022-07-31




दो साल कोविड सकंमण के बाद दो दोगूनी उत्साह और उमंग के साथ कावड़ियों की संख्या में इस बार इजाफा

कवर्धा (वीएनएस )।  पवित्र श्रावण माह का कल तीसरा सोमवार है। बीते इस पूरे माह में छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले से लेकर मध्यप्रदेश की अमरकंटक तक बोल-बम और हर-हर महादेव का गुंजायमान होने लगा है। ऐसी ही नजारा पड़ोंसी जिले बेमेतरा, मुंगेली और राजानांदगांव के सरहदी क्षेत्रों से आने वाले पदयात्रियों और कांवड़ियो में उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है। हालांकि पड़ोंसी जिलों की तुलना में इस बार अमरकंटक से मां नर्मदा की जल लाने वाले कांवड़ियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। कांवड़ियो की बढ़ती संख्या को देखते हुए कबीरधाम जिला प्रशासन द्वारा कांवडियों की मूलभूत सुविधाओं, जैसे उनके ठहरने की व्यवस्था, उनके प्राथमिक स्वास्थ्य की व्यवस्था सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं में भी विस्तार किया जा रहा है।

कलेक्टर जनमेजय महोबे के निर्देशानुसार अमरकंटक से पहाड़ी और पथरिली जंगलों की रास्तों से कबीरधाम जिले में प्रवेश करने वाले सभी कावड़ियों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। कबीरधाम जिले के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले हनुमंतखोल के पास कांवड़ियो के उपचार की बेहतर व्यवस्था कराई जा रही है। यहां चिकित्सक से लेकर स्टॉप नर्स और ड्रेसर्स कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है। इसी प्रकार कांवड़ियो को ठहराने के लिए कुकूदूर विश्राम गृह परिसर में उचित व्यवस्था की गई, यहां भी चिकित्सको की टीम को तैनात की गई है। अमरकंटक से लेकर भोरमदेव पहुंच पहुंच मार्ग पर अलग-अलग 7 से 8 स्थानों पर स्वास्थ्य शिविर लगाकर कांवड़ियों को पांव के छालों में आवश्यकतानुसार पट्टी लगाई जा रही तो वही उनके कांवड़ियों के पैरों में होने वाले मोच व अकड़न को ठीक करने के लिए स्प्रे की व्यवस्था बनाई गई है। स्वास्थ्य टीम द्वारा कॉवडियों का हौसला बढ़ाते हुए यह भी कहा जा रहा है कि आगे बढ़ते जाओं तूम मत देखों अपने पैर के छालों को।

मुख्य चिकित्सा एवं जिला अधिकारी डॉक्टर सुजॉय मुखर्जी ने बताया कि अब तक स्वास्थ्य विभाग द्वारा 300 से अधिक कांविड़यों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई गई है। कांवड़ियो के पैरो में होने वाले छालों के उपचार से लेकर कोविड जांच परीक्षण की सुविधा भी देने में टीम लगी हुई है। इसके अलावा कवर्धा के ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर के सपीम 6 अलग-अलग समाजिक भवन व विशेष वाटर फ्रुप टेंट लगाकर विश्राम शिविर बनाई गई है। श्रद्धालु और कावरियों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए जिला प्रशासन के पूरा अमला, कोटवार से लेकर प्रशासनिक अधिकारी, नगरीय निकायों के अमले और अन्य सुविधाएं सहित पुलिस के जवान सुरक्षा और यातायात व्यवस्था बनाने में लगे हुए है।

 

दो साल कोविड सकंमण के बाद दोगुने उत्साह और उमंग के साथ कावड़ियों की संख्या में इस बाद इजाफा पवित्र श्रावण मास में भोरमदेव मंदिर में जलाभिषेक करने वाले कांवड़ियों के लिए प्रत्येक सोमवार को ज्वाइड हैण्डस् द्वारा मंदिर परिसर के समीप निःशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है। इस भोजन में कांवरियों के लिए दाल-भात-सब्जी से लेकर मीठा जैसे खीर, पुड़ी व हलवा भी निःशुल्क दिया जाता है। कांवड़ियों को निःशुल्क जल-पान करने वाले ज्वाइंड हैण्डस् के सदस्यों ने बताया इस बार कांवड़ियों की संख्या पिछले सालों की तुलना भी बढ़ी है। इसका एक वजह कोविड़ संक्रमण काल के प्रथम सावन मास भी हो सकता है। सदस्यों ने बताया कि मंदिर मंदिर परिसर में आने वाले सभी कांवड़ियों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नही हो इसके लिए समन्वय बना कर पूरा व्यवस्था बनाने में सहयोग भी किया जा रहा है।  

कवर्धा को क्यो कहा जाता है छोटा काशी कहते है कि काशी के कण-कण में भगवान शिव का वास है। मां गंगा पावन तट पर बसे विश्व की धार्मिक राजधानी काशी को शायद इसीलिए मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। ऐसी ही काशी की समतुल्यता की झलक छत्तीसगढ़ की कबीरधाम जिले में दिखाई देती है। कबीरधाम जिले कवर्धा शहर में विश्व का एक मात्र पवित्र-पावन पंचमुखी शिव लिंग बुढ़ा महादेव विराजित है। यह स्वमं-भू शिव लिंग है। ऐसी मान्यता है। कवर्धा से महज 16 किलोमीटर की दूरी पर 11वीं शताब्दी की प्राचिन व ऐतिहासिक बाबा भोरमदेव मंदिर का शिवालय है। प्राचीन भोरमदेव मंदिर पहुंचते तक पूरे 16 किलोमीटर तक कवर्धा की जीवन दायिनी पवित्र सकरी नदी यहां प्रवाहित होती है। वहीं कवर्धा से महज 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम डोंगरिया। डोंगरिया में सकरी नदी की सहायक नदी फोक नदी के तट पर बसा हुआ है। इसी नदी में आदि अनंतकाल से नदी के मध्यम में स्वयं-भू शिव जी का वास है, जिसे जलेश्वर महोदव के नाम से जाना जाता है। आदि अनंत काल से धार्मिक राजधानी काशी सहित अन्य आश्रमों से कवर्धा में दण्डी सन्यासियों का आगमन होता रहा है और कवर्धा के प्राचीन व ऐतिहासिक स्वमं-भू पंचमुखी शिव लिंग में दण्डी सन्यासियों द्वारा विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है। देश के अन्य दिव्य ज्योर्तिलिंगों की भांति दण्डी स्वामियों द्वारा दण्ड सहित इस पंच मुखी शिव लिंग बूढ़ामहादेव को प्रणाम किया जाता है। किवदंती अनुसार इसीलिए भी दण्डी सन्यासियों द्वारा कवर्धा नगरी को छोटा काशी की संज्ञा दी जाती है।

बाबा भोरमदेव मंदिर में 30 हजार अधिक श्रद्धालुओं का आगमन, हजारों कावरियों ने किया जलाभिषेक’

कबीरधाम कवर्धा का नाम जुबां पर आते ही बाबा भोरमदेव मंदिर की प्रतिबिम्ब दिखाई देती है। मैकल पर्वत के तलटली पर पहाड़ियां से घिरा हुआ बाबा भोरमदेव मंदिर का शिवालय वैसे तो पूरे साल भर हर-हर महादेव से गुंजायमान रहता है। लेकिन पवित्र सावन माह का प्रारंभ होते ही यहां पहले सोमवार से हजारों भक्तों और कांवरियों का आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। सावन मास के दो सोमवार से अब तक बाबा भोरमदेव मंदिर में लगभग 25-30 हजार से अधिक श्रद्धालुओं का आगमन हो चुका है। वहीं हजारों कांवरियों द्वारा बाबा भोरमदेव मंदिर के गर्भ गृह में विराजित शिव लिंग का जलाभिषेक किया जा चुका है। कवर्धा के अलग-अलग बोलबम समिति के कांवरियों द्वारा मध्यप्रदेश के अमरकंटक से मां नर्मदा नदी की पवित्र जल कांवर में लेकर 180 किलोमीटर की जंगल-पहाड़ियों और पथरीलि रास्तों से होते हुए पदयात्रा करते हुए कबीरधाम जिले के हनुमंत खोल से गुजरकर जिले के जलेश्वर महोदव में प्रथम आगमन होता है। यहां हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष कावरियों द्वारा जलेश्वर महादेव में जलाभिषेक की जाती है। इसके बाद पदयात्रा करते हुए कवर्धा के प्राचीन पंचमुखी बुढ़ामहोदव पहुंचकर श्रद्धापूर्वक शिव लिंग में जलाभिषेक और पूजा अर्चना की जाती है। बोल-बम पदयात्रियों का अगला पड़ाव कवर्धा से 16 किलोमीटर दूर बाबा भोरमदेव मंदिर तक होती है। यहां हजारों की संख्या में काविरयों द्वारा मां नर्मदा नदी की जल से बाबा भोरमदेव मंदिर में विजारित शिव जी का जलाभिषेक किया जाता है।  




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