रायपुर (वीएनएस)। माता-पिता के दिए हुए संस्कार ही बच्चों में आते है। यह निर्भर करता है कि बच्चों की परवरिश कैसी की गई है। बच्चों की बुद्धि पैनी हाेती है, उनमें आप जो बीज बोयेंगे, वैसा ही फल आपको देखने काे मिलेगा। भविष्य को देखते हुए आप अपने बच्चों काे अच्छे संस्कार दें। यह बातें शनिवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी स्नेहयशा ने कही।
साध्वी स्नेयहशा ने कहा कि बहुत पहले की बात है, एक श्राविका रोज पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिर जाती थी। पानी-बरसात का समय था, उस समय ऐसे सीमेंट और डामर वाले रोड नहीं हुआ करते थे। अब वह फंस गई। घर में पूजा नहीं हो सकती थी, वह पूजन की पुस्तकें मंदिर में ही रखती थीं। तक उसे परेशान होता देख उसने पुत्र ने कहा कि क्या हुआ, इतनी उदास दिख रही हो मां। तक उसने पूरी बात बताई। इस पर पुत्र ने कहा कि तो क्या हुआ, मैं आपको भक्तावन का पाठ पढ़ कर सुना देता हूं। ढ़ाई साल की उम्र का बच्चा अपनी मां से यह कह रहा है। मां ने पूछा तुझे किसने सिखाया, उसने कहा आप रोज बोलते हो और मैं रोज सुनता हूं। मुझे पूरा याद है। आज आप मेरे से सुन लो। मां ने कहा कि चल सुना, उसने बिना रूके, बिना अटके पूरा पाठ सुना दिया। अब आप साेचिए कि उस बच्चे की बुद्धि कितनी पैनी थीं। उसमें जैसा बीज बोया गया था, वैसा ही फल माता-पिता को मिला।
जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि :
‘जैसी नजर वैसा ही नजारा’ वाक्य का अर्थ बताते हुए साध्वीश्री स्नेहयशा ने बताया कि महाभारत काल की बात है। एक बार भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और दुर्याेधन को बुलाया। दोनों को पुस्तिका और कलम देकर कहा कि तुम दोनों नगर में जाओ और दुर्जन और सज्जन व्यक्तियों का नाम लिखकर लाओ। युधिष्ठिर को दुर्जन और दुर्याेधन को सज्जन व्यक्तियों का नाम लिखकर लाने को कहा गया। दोनों नगर में गए और अपना काम शुरु कर दिया। पूरी द्वारिका घूम कर जब वे लौटे तो भगवान कृष्ण ने कहा कि दोनों अपनी सूची दिखाओ। युधिष्ठिर ने जब अपनी पुस्तिका दी तो उसमें एक भी नाम नहीं था। भगवान ने सोचा कि युधिष्ठिर की पुस्तिका भरी होगी, पर उसमें एक भी नाम नहीं था।
उन्होंने पूछा यह कैसे हो सकता है। फिर उन्होंने दुर्याेधन से कहा कि अब तुम्हारी पुस्तिका तो पूरी तरह भर चुकी होगी। दुर्याेधन ने अपनी पुस्तिका दिखाई, पहले से लेकर आखिरी पन्ने तक देखने पर उसमें भी एक नाम नहीं था। उन्होंने देखा कि दोनों ने कोई नाम नहीं लिखा है। तो उन्होंने कहा कि क्या तुम दोनों ने अपना काम नहीं किया, नगर में घूमे नहीं क्या। जवाब में युधिष्ठिर ने बताया कि मुझे जो व्यक्ति दुर्जन लगा मैं उसके पास गया तो उसमें मुझे सज्जनता के दर्शन हो गए। मुझे लगा कि मैं इसका नाम कैसे लिखूं, हो सकता है इसमें 99 दोष होंगे पर उसके एक अच्छाई ने उसके 99 दोषों को ढंक दिया। वैसे ही दुर्याेधन ने कहा कि मैं जिस सज्जन व्यक्ति के पास गया और उसमें मुझे थोड़ी सी दुर्जनता दिखाई दी, तो मैंने उसका नाम नहीं लिखा। भले ही उसने 99 अच्छे काम किए हो, पर उसके एक बुरा काम उसके 99 अच्छाई पर भारी पड़े। साध्वीजी ने कहा कि अब नजर को देखो, जैसी नजर वैसा ही नजारा। यह दृष्टि का दोष है, हमारी दृष्टि को ही पीलिया हो गया। हमें हरा-भरा बगीचा भी दिखाया तो सभी पत्ते पीले ही दिखाई देते हैं।
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