आशीष तिवारी (संपादक)
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मुझे बचा लो साहब, पुरातत्व विभाग की लापरवाही मुझे मार डालेगी : भोरमदेव मन्दिर

Posted On:- 2022-08-12




-चन्द्र शेखर शर्मा कवर्धा (कबीरधाम)

हैल्लो मंत्रीजी, मैं भोरमदेव बोल रहा हूँ, बचा लो साहब मुझे , पुरातत्व वाले मार रहे मुझे...
32.8 लाख रुपये 6 महीने पहले एडवांस लेकर भी इलाज प्रांरभ नही किये।
बचा लो साहब पुरातत्व की लापरवाही से मर जाऊंगा मैं। मेरी मौत के जिम्मेदार होंगे पुरातत्व विभाग के अलाल व कामचोर अफसर। मर जाऊंगा तो फिर किसे कहोगे छत्तीसगढ़ का खजुराहो ,आध्यत्मिक गौरव !!!



आज-कल भोरमदेव मन्दिर पहुंचने पर मन्दिर की टपकती छते , रिसती दीवारे दीवारो पर जमी काई उगे , पेड़ पौधे और जिम्मेदारों की अनदेखी व अलाली के चलते बने हालत मन्दिर के की पीड़ा यदि भोरमदेव मन्दिर बोल सकता , अपनी चींखें सुना सकता तो शायद यही कहता ।

दक्षिण कौसल अर्थात् छत्तीसगढ़ को भारत वर्ष की आर्थिक राजनैतिक साहित्यिक शैक्षणिक , प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक मानचित्र में किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है। पुरातात्विक धरोहरों का गढ़ छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ के आध्यात्मिक धरोहर भोरमदेव को अपेक्षित महत्व प्राप्त नहीं हुआ जबकि आने वाले समय में भोरमदेव एवं उत्खन्न प्रक्रियाधीन पचराही बकेला में मिल रहे प्रमाणों से विश्व स्तर पर सर्वाधिक प्राचीन चर्चित क्षेत्र के रूप में होना तय है ।


दक्षिण कोशल में नागवंशी शासकों का प्रभुत्व अनेक क्षेत्रों में रहा है जैसे बस्तर का छिन्दक नागवंश एवं भोरमदेव का फणि नागवंश उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि भोरमदेव क्षेत्र में छोटे - छोटे जमीदारों को परास्त कर सातवीं आठवीं शताब्दी में अहिराज के द्वारा नागवंशी शासन की स्थापना की गई थी जिसमें 25 राजा हुये छठवें राजा गोपाल देव अत्यंत कुशल एवं निर्माणकारी सोच के राजा थे उन्होंनें ही लगभग 1088 के आस पास भोरमदेव के मुख्यमंदिर का निर्माण करवाया ।

पूरे प्रदेश में एक हजार साल ज्यादा पुराने पुरातत्व महत्व के अनेक स्थान होंगे पर अपने पूर्ण अस्तित्व वाला एक मात्र स्थान भोरमदेव मंदिर ही साबूत बचा है, लेकिन हजार साल पुराने इस शिव मंदिर को पुरातत्व विभाग के अलाल अफसरों कामचोर अधिकारियों कर्मचारियों की नजर लग चुकी है । पुरातत्व विभाग द्वारा पैसे ले कर भी काम मे अलाली व अनेदखी के कारण मंदिर का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है। मंदिर में जगह जगह काई लग चुकी है । मन्दिर की दीवारों पर जगह जगह  बरगद पीपल जैसे पेड़ उग कर मन्दिर को जड़ो के जरिये क्षति पहुंचा रहे है । बारिश के मौसम में मन्दिर की दीवारों और छत से बारिश के पानी का रिसाव हो रहा है जो कि मंदिर के अस्तित्व के लिये खतरा बन गया है। बारिश होने पर स्तिथि और ज्यादा खराब हो जाती है। मंदिर में घुसने से लेकर गर्भगृह तक  जगह जगह पानी टपक रहा है। लगभग तीन साल पहले पुरातत्व विभाग द्वारा बढ़ती समस्या को देखते हुए कई गाइडलाइन जारी किया गया साथ ही मंदिर की उचित रखरखाव के लिए कैमिकल पॉलिस करने, मंदिर के पास बड़े पेड़ को काटने व मंदिर के चारों ओर 5 फीट तक गहरा करके सीमेंट से मजबूती देने का दावा किया गया था साथ ही मंदिर में चावल को विशेष रूप से प्रतिबंधित किया गया था । लगभग छह सात महीने पहले भी पुरातत्व की टीम आई और बड़े बड़े प्लान बता गई । पुरातत्व विभाग के दौरे के बाद जिला प्रशासन ने डीएमएफ फंड से भोरमदेव मन्दिर के प्लिंथ प्रोटेक्शन , मरम्मत , कैमिकल ट्रीटमेंट के लिये पैसठ लाख बैसठ हजार तीन सौ चौरासी (65,62,384)रुपये की स्वीकृति 4 फरवरी 2022 को दे दी गई थी जिसमे से बत्तीस लाख अस्सी हजार (32,80,000) रुपये 11 फरवरी 2022 को पुरातत्व विभाग को ट्रांसफर भी कर दिए गए । पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर को जिला कलेक्ट्रेट द्वारा कई बार पत्राचार मौखिक चर्चा के बावजूद 7 माह में कोई कार्यवाही नही की गई न ही काम प्रारम्भ हो पाया । मन्दिर की हालात को लेकर जिला प्रशासन को कटघरे में लेने वाले पुरातत्व विभाग की खुद ऎतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के मंदिर पर भारी पड़ रही है । वही मंदिर परिसर में जगह जगह चावल न डालने की अपील चश्पा करने के बाद भी लोगो मे भी जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है। भोरमदेव मंदिर की ख्याति आज देश ही नही विदेशों तक फैली हुई है, मंदिर की धार्मिक मान्यता भी लोगो मे खूब है, इसके बाद भी पुरातत्व विभाग द्वारा अनदेखी करना बड़ी लापरवाही साबित हो सकती है। स्थानीय प्रशासन द्वारा कई बार पुरातत्व विभाग को इस इस बारे में जानकारी दे चुका है लेकिन मंदिर के अस्तित्व बचाने कोई पहल नही किया जा रहा है। जिले के कलेक्टर बदलते गए सभी ने अपनी ओर से पुरातत्व विभाग से पत्राचार करते गए लेकिन कोई खास पहल नही की गई। अब जिले के नए कलेक्टर फिर से मामले में काम शुरू करने का दावा कर रहे है।



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