कोई भी खांटी भाजपा नेता नहीं कहेगा...

Posted On:- 2024-09-04




सुनील दास

राजनीतिक दलों मोटे तौर पर दो तरह के ही नेता होते हैं। एक होते हैं पार्टी के खांटी नेता और दूसरे होतें हैं मौकापरस्त नेता।किसी भी पार्टी में खांटी नेता तो उसे ही माना जाता है जो कुछ भी हो जाए अपनी विचारधारा नहीं बदलता, पार्टी सत्ता में रहे या न रहे, उसे पद मिले या न मिले वह विचलित नहीं होता है, पार्टी नहीं छोड़ता है। वह हमेशा पार्टी में रहता है और पार्टी के साथ रहता है। 

ऐसे नेता का पार्टी के लोग तो सम्मान करते हैं, दूसरी पार्टी के लोग भी सम्मान करते हैं कि देखों यह होती है पार्टी के प्रति निष्ठा।पार्टी में पार्टी का काम करने आए थे, पद मिला या नहीं मिला कोई फर्क नहीं पड़ा, पार्टी ने जिंदगी भर जो काम करने को कहा पूरी निष्ठा से किया। खांटी नेता पार्टी से कोई शिकायत नहीं करता है, पार्टी की किसी से कोई शिकायत नहीं करता है। इसलिए सभी उसका सम्मान उसके मरने के बाद करते हैं,याद करते हैं कि ऐसा भी एक खांटी नेता हुआ था जो पार्टी को बरसों सत्ता नहीं मिली तो विचलित नहीं हुआ,पार्टी में ही रहा, सत्ता मिली और उसे सत्ता संगठन मे पद नहीं मिला तो भी विचलित नहीं हुआ, पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी मेें नहीं गया।

खांटी नेता ही राजनीति में उदाहरण बनते हैं,मिसाल माने जाते हैं।उनको याद करके कहा जाता है कि पार्टी के लिए जिया और पार्टी के लिए ही मरा। राजनीतिक दलों का परम लक्ष्य सत्ता होने के कारण, नेताओं का भी परम लक्ष्य सत्ता होने के कारण राजनीतिक दलों में खांटी नेताओं की कमी होती जा रही है। ज्यादातर राजनीतिक दलों के नेता अवसरवादी हो गए हैं वह सत्ता के साथ ही रहना चाहते हैं, कोई पद चाहते हैं, इसलिए जब भी किसी तरह का चुनाव हो राजनीतिक दलों से नेताओं का पलायन शुरू हो जाता है। बहुत सारे नेता एक दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं। ऐसे दल में शामिल होना पसंद करते हैं जिसके सत्ता में आने की संभावना ज्यादा होती है।उस दल के ज्यादा नेता पार्टी छोड़ते हैं जिसके हारने की आशंका ज्यादा होती है।

जो नेता किसी भी वजह से पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में एक बार चला गया तो उसे फिर खांटी नेता नहीं कहा जाता है। भले ही वह पार्टी को कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो। नंद कुमार साय भाजपा के ऐसे ही बड़े आदिवासी नेता हैं।उनको भाजपा का खांटी नेता कहा जाता अगर वह पद व प्रतिष्ठा के मोह में कांग्रेस में नहीं गए होते। एक बार कुछ महीनों के लिए सही कांग्रेस में चले जाने के कारण अब उनको कोई खांटी भाजपा नेता नहीं कहेगा क्योंकि उन पर भाजपा छोड़ने का दाग तो लग चुका है। 

भाजपा से उन्होंने राजनीति शुरू की, भाजपा ने कई पदों पर नियुक्त किया, एक आदिवासी नेता के रूप में किसी को जो कुछ मिल सकता था, वह सब नंद कुमार साय को भाजपा ने दिया। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो वह चाहते थे कि भाजपा उनको सीएम बनाए। उनकी यही इच्छा भाजपा में पूरी नहीं हुई। ऐसा नहीं है कि वह सीएम बनने के योग्य नहीं थे। वह हर तरह से योग्य थे लेकिन उनमें इसके लिए धीरज नहीं था। विष्णु देव साय की तरह उन्होंने धीरज रखा होता तो वह छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी सीएम भाजपा से होते।

भाजपा में जो दावा करता है, उसको नकार दिया जाता है,जो दावा नहीं करता है, चुपचाप पार्टी जो कहे वह करता रहता है तो उसे वह पद भी मिलता है जो कभी सोचा नहीं होता है। आदिवासी नेता नंद कुमार साय सीएम बनना चाहते थे इसलिए नहीं बन सके।आदिवासी नेता विष्णुदेव साय ने कभी कहा नहीं और सीएम बन गए। भाजपा में कम से कम २०१४ के बाद तो ऐसा ही होता है, ऐसा ही हो रहा है। काम करने वाले साधारण कार्यकर्ता तक मंत्री,मुख्यमंत्री बनाए जा रहे है।

भाजपा नेताओं की तीसरी पीढ़ी तैयार की जा रही है। अब भाजपा में पद व प्रतिष्ठा तीसरी पीढ़ी के नेताओं को देने का मौका है। भाजपा सदस्यता अभियान चल रहा है, लोग भाजपा की सदस्यता ले रहे है। नंद कुमार भी फिर से भाजपा सदस्य बन गए हैं और कहा है कि भाजपा का सदस्य बनना गौरव की बात है। अब वह भाजपा में यह सोच कर आए है कि कोई पद या प्रतिष्ठा मिलेगी तो उनको निराशा होगी। क्यंकि अब उनका समय जा चुका है। उनको जो मिलना था मिल चुका है। अब वह मरते तक भी भाजपा मे रहेंगे तो भी कोई उनका खांटी भाजपा नेता नही कहेगा क्योंकि यह याद कर कहा जाएगा कि वह एक बार कुछ समय के लिए कांंग्रेस मे तो गए थे। भाजपा में यह सबसे बुरी बात मानी जाती है कि कोई भाजपा नेता  कांग्रेस मे शामिल हो जाए।



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