बघेल को सिंहदेव की तरह दुखी होने की जरूरत नहीं है...

Posted On:- 2024-09-06




सुनील दास

चुनाव के समय सारे राजनीतिक दल जनता से,युवाओं से,महिलाओं से, किसानों से, मजदूरों से, शासकीय कर्मचारियों से कई तरह के वादे किए जाते हैं।कई वादे तो महज खास वर्ग का वोट लेने के लिए किए जाते हैं। सरकार बनने पर वह पूरे नहीं किए जाते है। कई वादे ऐसे होते हैं जिनको कुछ ही माह के भीतर सरकार पूरा कर देती है। कई वादे ऐसे होते हैं जिनको सरकार पांच साल में अपनी सुविधा के अनुसार पूरा करती है।कोई भी राजनीतिक दल जब चुनाव में वादा करता है तो यह वादा नहीं करता है कि वह कब तक पूरा किया जाएगा। इसलिए चुनाव के बाद हर सरकार को यह सुविधा रहती है कि वह अपना पांच साल में पूरा करे।

कोई इस बात के लिए सरकार को बुरा नहीं कह सकता कि उसने अपना वादा सरकार के बनते ही क्यों नहीं किया। यदि सरकार पांच साल में अपने किए वादे पूरे नहीं करती है तो जरूर इसके लिए उसकी आलोचना की जा सकती है कि उसने पांच साल में अपना वादा पूरा नहीं किया। जैसे भूपेश सरकार आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि उसने चुनाव में राज्य की महिलाओं से वादा किया था कि उसकी सरकार बनने पर वह छत्तीसगढ़ मे पूर्ण शराबबंदी करेगी और पांच साल वह शराबबंदी करने की बात भी करती रही लेकिन पांच साल में उसने अपना वादा पूरा नहीं किया। इस बात के लिए भूपेश सरकार की जितनी आलोचना की जाए कम है।

इसी तरह रमन सरकार ने भी बोनस का वादा किया था और उसे पूरा नहीं किया था तो उसकी भी इस बात के लिए आलोचना की जाती रही है। रमन सिंह का वादा आखिर में साय सरकार को पूरा करना पड़ा। इससे कम से कम राज्य के लोगों में यह धारणा तो बनी है कि भाजपा जो वादा करती है,उसे पूरा जरूर करती है,उसे एक सरकार पूरा नहीं कर पाती है तो भाजपा की दूसरी सरकार जरूर पूरा करती है। ऐसे में भाजपा के दुर्ग के सांसद विजय बघेल को शासकीय कर्मियों को देय तिथि से महंगाई भत्ता,लंबित एरियर समेत अऩ्य वादों को लेकर दुखी होने की जरूरत नहीं है सरकार  इस पर विचार नहीं कर रही है।

उनको जब भाजपा ने चुनाव घोषणापत्र समिति का संयोजक बनाया गया था, तब ही इस बात की ओर ध्यान देना था कि चुनाव घोषणापत्र समिति का संयोजक बनना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि चुनाव के वक्त तो लगता है कि यह तो पार्टी का बड़ा काम है, पार्टी ने मुझको संयोजक बनाया है तो बड़ी जिम्मेदारी दी है, तब बहुत अच्छा लगता है। चुनाव घोषणा पत्र समिति का संयोजक की असली परेशानी तो सरकार बनने के बाद शुरू होती है क्योंकि वह सभी लोगो से सुझाव लेते हैं, बात करते हैं, आश्वस्त करते हैं कि यह वादा तो जरूर पूरा होगा। सरकार बनने पर वादा पूरा नही होता है तो लोग उनके पास तो आएंगे ही कि वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है।

विजय बघेल को टीएस सिंहदेव के साथ जो हुआ उससे सबक लेना था, उन्होंने नहीं लिया इसलिए अब उनको भी टीएस सिंहदेव के समान चुनाव में किए वादे पूरे होने पर लोगों की बातें सुननी पड़ रही है। भूपेश बघेल सरकार में मंत्री, फिर डिप्टी सीएम रहने के बाद भी टीएस सिंहदेव जनता के किए वादे पूरे नहीं करा पाए थे। वह भी जब लोगों के बीच जाते थे. तो लोग उनको वादों की याद दिलाते थे, तो सिंहदेव का लोगों से कहना पड़ता था कि अब मेरे हाथ में कुछ नहीं है, एक बार तो उन्होंने लोगों की बातें सुनकर एक विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 

विजय बघेल को दुखी होने की जरूरत नहीं है।वह तो कह सकते हैं कि अभी तो सरकार बने कुछ महीने हुए हैं, जनता से जो भी वादा भाजपा ने किया है,वह सब पूरा किया जाएगा। विजय बघेल को भूपेश बघेल से ही सीखना चाहिए कि कैसे उन्होंने वादा पूरा नहीं किया लेकिन जनता से कभी नहीं कहा कि वह शराबबंदी का वादा पूरा नहीं करेंगे। साय सरकार ने जो भी वादे जल्द पूरे किए जाने थे,वह पूरे कर दिए है तथा पूरे कर रहे है। कुछ वादे होते हैं जिनको सरकार अपनी सुविधा के अनुसार पूरे करती है। 

हो सकता है कि शासकीय कर्मियों से किया वादा इसी तरह का वादा हो। साय सरकार उसे अभी पूरा नहीं कर रही है तो बाद में पूरा करेगी। दुखी तो तब होना चाहिए जब साय सरकार ने कहा होता कि वह यह वादा पूरा नहीं करने वाली है। विजय बघेल को टीएस सिंहदेव की तरह इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि कोई वादा जल्द पूरा नहीं हो रहा है तो अब यह उनकी जिम्मेदारी नहीं है, सरकार व सीएम की जिम्मेदारी है।भाजपा की जिम्मेदारी है। वह भाजपा के सांसद हैं। इसलिए उनको अपनी सरकार को सवालों के कठघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए।



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