संसद के मकर द्वार पर मचा देश व्यापी हो - हल्ला क्यों और किस दिशा पर ले जाने वाला सिद्ध होगा , यह गंभीर जांच प्रक्रिया का विषय माना जा सकता है । सवाल यह उठता है कि आखिर देश को चलाने वाले राजनीति के कर्णधार वर्तमान पीढ़ी को क्या सीख देना चाहते हैं ? कभी संविधान को लेकर तो कभी संविधान को रचने वाले को लेकर बवाल खड़ा करना कहां तक उचित है ?
कोई संविधान को डायरी का रूप देकर मखौल उड़ाता है तो कोई बार - बार किए गए संशोधन पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ! आखिर देश को विधिमान्य तरीके से चलाने का दिशा - निर्देश समेटे भारतीय संविधान कब तक वोट की राजनीति से सना दिखाई पड़ता रहेगा ? इन सारे मुद्दों पर शायद संसद में बैठे हुए
लोग चिंतन करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं ! देश की जागरूक जनता को ही यह समझना होगा कि देश हित में क्या होना चाहिए और उसके लिए किस तरह की सरकार चुनी जानी चाहिए । अब तो लोग इंसान को भगवान का दर्जा देने की परंपरा को लेकर विकास की गाथा लिखने का प्रयास करने लगे हैं ! न तो यह पहले संभव था और न ही भविष्य में हो पाएगा !
बड़े - बड़े न्यूज चैनल पर जब पूरा विश्व इस तरह के दृश्यों को देखता है तो यह सोचने विवश हो उठता है - क्या यही वह भारत है जो संस्कृति और परंपरा के साथ भाई - चारे का गुणगान करता फिरता है ? भारतीय राजनीति का एक और काला अध्याय 19 दिसंबर को संसद के द्वार पर राजनीतिकारों ने लिख डाला ! विगत तीन - चार दिनों से गृह मंत्री के उदबोधन के उपरांत संविधान निर्माता के मान - सम्मान को दृष्टिगत कर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने - सामने , तना - तनी की स्थिति में दिखाई पड़ता रहा है । गुरुवार को पूर्वाह्न स्थिति कुछ ऐसी बिगड़ी कि मेरी नजरों के सामने तो बे - वजह पैदा होने वाले विवाद के दृश्य चलचित्र की भांति चलने लगे । कौन किसकी बे - इज्जती करना चाहता है और कौन किसे सिर - आंखों पर बैठाना चाहता है , इसे भी देश की जनता बखूबी समझ रही है । सत्ता पक्ष के लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष के प्रमुख नेता ने मकर द्वार पर महिला जन - प्रतिनिधि के साथ बद - सलूकी की , जबकि दूसरी ओर विपक्ष का वही नेता अपनी सफाई में यह कहता फिर रहा है कि उसके साथ धक्का - मुक्की की गई ! वास्तविकता चाहे जो भी हो पूरे विश्व ने भारतीय संसद की चौखट पर लोकतंत्र को तार - तार होते देखा ! इस प्रकार के अमानवीय दृश्य ने देश की राजनीति के भीतर छिपे स्वार्थ को ही जग - जाहिर किया है । अपने - अपने दावों को पुख्ता बताने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि देश की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति इस तरह की चिल्लम - चिल्ली से किस कदर कराह उठेगी ?
संसद की डेहरी पर मचे बवाल ने देश सहित पूरे विश्व को यह दिखाने से भी परहेज नहीं किया कि बच्चों की तरह लड़ने - झगड़ने से किसका सिर फूटा और किसे अस्पताल की शरण लेनी पड़ी । इतना ही नहीं खुद को दूध का धुला बताते हुए एक - दूसरे पर दोषारोपण भी कम नहीं किए गए । प्रमुख विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी पर हत्या के प्रयास सहित आधा दर्जन आपराधिक धाराओं के तहत मामला भी थाने में दर्ज करा दिया गया ! कौन दोषी है और कौन नहीं ? अब यह देश की जनता नहीं बल्कि कोर्ट में बैठे न्यायाधीश तय करेंगे ! इतना जरूर है कि संसद की चहार - दिवारी पर एक महिला सांसद का अपमान के बाद रुदन स्वर कहीं न कहीं बद - मिजाजी की कहानी जरूर कह रहा है । संविधान की 75 वर्षीय गौरवशाली यात्रा पर संसद में बोल रहे गृह मंत्री अमित शाह के कथन संविधान रचयिता को किस तरह से अपमानित करने वाले लगे इसे भी कोर्ट में सिद्ध करने की जरूरत होगी । जहां तक विवाद को राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो एक जागरूक नागरिक और मतदाता इसे वोट की राजनीति से कम नहीं मानता है । आज संविधान और संविधान निर्माता को लेकर हो - हल्ला मचाने वालों को अपने पूर्ववर्ती बर्ताव पर भी नजर घुमाने की जरूरत महसूस करनी होगी । पानी पर लकीर खींचने की असफल कोशिश कहीं बे - वजह के विवाद के कारण अस्तित्वहीन ही न कर दे , इस पर भी विचार किया जाना चाहिए ।
मेरी नजरों से देखूं तो मुझे कहीं भी विवादित तथ्य दिखाई नहीं पड़ रहा है । फिर भी यदि किसी के वक्तव्य से किसी को दर्द हुआ हो तो उसके मरहमी इलाज को ढूंढा जाना चाहिए था । यह नहीं कि समाधान के बजाए नया दर्द परोसने की कोशिश की जाए ! बात तो यह भी कही जा रही है कि गृह मंत्री के वक्तव्य से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए यह मुद्दा खड़ा किया गया है ! शायद यह ऐसे स्थान में सटीक होता जहां लोग पढ़े - लिखे न हों अथवा गंभीरता को न समझते हों ! जिस स्थान पर दोनों विवाद पैदा हुए हैं वहां पर उपस्थित लोग देश की जनता के सजग प्रहरी माने जा सकते हैं , तब यह कहना कि मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए नया विवाद पैदा किया जा रहा है , कहीं न कहीं बचकानी हरकत से कम नहीं है । आंखों पर पॉवर वाला चश्मा पहनने के बाद जब मैने कुछ समझने का प्रयास किया तो मुझे एक अलग ही दृश्य दिखाई पड़ा । राजनीति की शतरंज पर मोहरों की जगह 52 पत्ती ताश के नजारों ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया । मैं बड़ी आसानी के साथ देख पा रहा था कि एक ओर ताश के पत्तों के एक्का, बादशाह दिखाई पड़ रहे थे तो दूसरी ओर बेगम और जोकर के साथ गुलामों की पूरी फौज तैयार खड़ी थी ! एक बुजुर्ग को वजीर की तरह पेश कर ऐसी तस्वीर बनाई जा रही है जो बार - बार सह और मात से जूझता दिखाई पड़ रहा है । अंत उसी तरह सामने दिखाई पड़ रहा है जिस तरह हमने सुन रखा है - " बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी ... "
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