वीर बाल दिवस’ शहादत की स्‍मृति

Posted On:- 2024-12-25




(हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार व लेखक, बालाघाट, मप्र)

9 जनवरी 2022 को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह घोषणा की थी कि, 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्‍मृति और सम्मान में राष्ट्रीय ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जाएगा। उल्लेखनीय रहे मुगल शासनकाल के दौरान पंजाब में सिखों के 10 वें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे थे। गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की। धार्मिक उत्पीड़न से लोगों की रक्षा करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह चार बेटे: अजीत, जुझार, जोरावर और फतेह, सभी खालसा का हिस्सा थे। उन चारों को 19 वर्ष की आयु से पहले मुगल सेना द्वारा मार डाला गया था। गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने हिंदु धर्म और अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। बलिदान हिंदु धर्म के लिए सदा-सर्वदा स्मरणीय रहेगा।

स्तुत्य, यह उनके शौर्य, साहस और बलिदान की गाथा को याद करने का भी ‘वीर बाल दिवस’ यह जानने का भी अवसर है। कि कैसे उनकी निर्मम शहीदी हुई और धर्म रक्षा, त्याग, समर्पण कैसा रहा? साहिबजादे जोरावर सिंह (9) और फतेह सिंह (7) सिख धर्म के सबसे सम्मानित शहीदों में से हैं। सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर मुगल सैनिकों द्वारा आनंदपुर साहिब को घेर लिया गया। इस घटना में श्री गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्रों को पकड़ लिया गया। मुसलमान बनने पर उन्हें यातना और मारने की पेशकश की गई थी। इस पेशकश को उन दोनों ने ठुकरा दिया जिस कारण उन्हें मौत की सज़ा दी गई और उन्हें जिंदा ईंटों की दीवार में चुनवा दिया गया। बाबा अजीत सिंह (17 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह ( 13 साल) साका चमकौर साहिब में लड़ते, हंसते शहीद हुए थे। इन शहीदों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी। शहीदी से ही धर्म, आस्था का यशोगान है।

प्रार्दुभाव, श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के सबसे छोटे पुत्र, साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जी का जन्म आनंदपुर साहिब में हुआ था। चमकौर की लड़ाई के दिन, बाबा ज़ोरावर सिंह, बाबा फ़तेह सिंह और उनकी दादी को मोरिंडा के अधिकारियों जानी खान और मनी खान रंगहर ने हिरासत में ले लिया। अगले दिन उन्हें सरहिंद भेज दिया गया जहाँ उन्हें किले के ठंडे बुर्ज (ठंडा बुर्ज) में रखा गया। फिर बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह को फ़ौजदार नवाब वज़ीर खान के सामने पेश किया गया। फिर उसने उन्हें मौत की धमकी दी, लेकिन वे बेखौफ़ रहे। अंत में मौत की सज़ा सुनाई गई।

वीरगति, उन्हें दीवार में जिंदा चुनवा देने का आदेश दिया गया। जैसे ही उनके कोमल शरीर के चारों ओर की चिनाई छाती की ऊंचाई तक पहुंची, वह ढह गई। साहिबजादों को रात के लिए फिर से ठंडे टॉवर में भेज दिया गया। 26 दिसंबर 1705 को बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह को दीवार में जिंदा चुनवाकर शहीद कर दिया गया। सरहिंद के पुराने शहर के पास स्थित इस भाग्यशाली घटना स्थल को अब फतेहगढ़ साहिब नाम दिया गया है, जहाँ अब पावन चार सिख तीर्थस्थल हैं। अलौकिक शहीदी, धर्म, न्याय, देश और मानव कल्याण, प्रेरणास्पद और अनुकरणीय है। शत-शत नमन!



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