सत्ता की बैसाखी पर टिके होने से बदल जाते हैं नेताओं के सुर

Posted On:- 2025-01-18




- योगेन्द्र योगी

बिहार में 13 दिसंबर को विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर बीपीएससी की 70वीं पीटी परीक्षा आयोजित की गई थी। परीक्षा के दिन से ही अभ्यर्थी परीक्षा में गड़बड़ी का आरोप लगाकर इसे रद्द करके फिर से कराने की मांग की। बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा को रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलित प्रदेश के युवाओं की मांग पर भारतीय जनता पार्टी की चुप्पी आश्चर्यजनक नहीं है। दरअसल भाजपा न सिर्फ बिहार नीतिश सरकार में शामिल है, बल्कि केंद्र में भी उसी की बैसाखियों पर टिकी है। ऐसे में मुद्दा जनहित का हो या न हो, इससे भाजपा को फर्क नहीं पड़ता। इससे पार्टी के उसूलों पर भी आंच नहीं आती। इसी भाजपा ने राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ पेपर लीक प्रकरणों में विरोध प्रदर्शनों में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। यह दोहरा चरित्र अकेले भाजपा का हो ऐसा नहीं है। जिस प्रदेश या केंद्र में जिस भी दल की सरकार होती है, वहां की सत्तारुढ़ पार्टी का रवैया ऐसा ही होता है। केंद्र में कांग्रेस शासन के दौरान सहयोगी दलों के घपले-घोटाले इसका प्रमाण रहे हैं। सत्ता के लिए गठबंधन की मजबूरी से ऐसा करना देश की राजनीति का चरित्र बन गया है। सत्ता में होने पर पार्टी को कुछ गलत नजर नहीं आता और विपक्ष में आते ही मुद्दे और तरीके बदल जाते हैं।   

बिहार में 13 दिसंबर को विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर बीपीएससी की 70वीं पीटी परीक्षा आयोजित की गई थी। परीक्षा के दिन से ही अभ्यर्थी परीक्षा में गड़बड़ी का आरोप लगाकर इसे रद्द करके फिर से कराने की मांग की। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि पटना के बापू एग्जाम सेंटर पर छात्रों को पेपर देरी से मिला था और पेपर की सील पहले से खुली हुई थी। छात्र प्रदर्शनकारियों के पटना के गांधी मैदान से मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च करने पर पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज और वाटर कैनन का इस्तेमाल ने छात्रों और उनके संगठनों के आक्रोश को और बढ़ा दिया।

बिहार की तरह राजस्थान भी कांग्रेस शासन के दौरान पेपर लीक प्रकरणों के कारण सुर्खियों में रहा है। राजस्थान की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में हुई प्रतियोगिता परीक्षाओं में एक के बाद एक पेपर लीक के मामले सामने आए। सब इंस्पेक्टर भर्ती, सीएचओ भर्ती, लाइब्रेरियन भर्ती और वरिष्ठ अध्यापक भर्ती सहित कई परीक्षाओं के पेपर लीक होने के खुलासे हुए। राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से व्याख्याता भर्ती 2022 की परीक्षा का पेपर लीक होने का मामला सामने आया। पेपर लीक मामले में उलझी सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा 2021 को लेकर प्रदेश के लाखों युवाओं में हर ताजा अपडेट का इंतजार है। पेपर लीक और डमी अभ्यर्थियों के जरिए सैंकड़ों युवाओं ने नौकरी हासिल कर ली थी। इस मामले की जांच करने वाली एसओजी ने भी व्यापक स्तर पर पेपर लीक होना माना और इस परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश पुलिस मुख्यालय को भेजी थी। पुलिस मुख्यालय और मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने भी परीक्षा को रद्द करने की सिफारिश की, लेकिन सरकार ने इस भर्ती परीक्षा को अभी तक रद्द नहीं किया।   

राज्य सरकार ने एसआई भर्ती 2021 में चयनित सभी ट्रेनी सब इंस्पेक्टरों के आगामी प्रशिक्षण पर रोक लगा दी। सरकार ने यह निर्णय राजस्थान हाई कोर्ट के निर्देश के बाद लिया। एक साल की लंबी एक्सरसाइज में अभी तक 50 सब इंस्पेक्टर पकड़े गए हैं। आरपीएससी के सदस्य पकड़े गए। आश्चर्य की बात यह है कि राजस्थान में भाजपा सरकार केही एक केबीनेट मंत्री अपनी ही सरकार के फैसलों पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठा रहे हैं। कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जबकि सत्तारुढ़ भाजपा अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं कर सकी। अनुशासित माने जानी वाली भाजपा की मजबूरी है कि मीणा के खिलाफ पार्टी और सरकार की लाइन से अलग हट कर चलने को लेकर कार्रवाई नहीं कर सकी। इसमें भाजपा को मीणा के साथ जुड़े मीणा वोट बैंक के खिसकने का डर है।   सत्ता के लिए राजनीतिक दल किस हद तक उसूलों को ताक पर रख देते हैं, मीणा के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना इसका उदाहरण है। 

मीणा मंत्री पद से इस्तीफा तक दे चुकें हैं, हालांकि उन्होंने इस्तीफा लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन पर अपनी जिम्मेदारी मानते हुए दिया था। पार्टी ने अनुसूचित जाति में कोई गलत संदेश नहीं जाए, इसलिए मीणा का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। वोट बैंक के लिए समझौते की ऐसी अनोखी मिसाल देश में शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां एक नेता के मंत्रीपद से इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया गया, बल्कि उसकी पार्टी विरोधी कार्रवाई झेलने को भी पार्टी मजबूर है। दरअसल ऐसे सार्वजनिक विवादित मुद्दों पर किसी भी सरकार के लिए फैसला लेना आसान नहीं होता। सरकारें एक तरफ जहां रोजगार देने के लिए अपनी छवि सुधारने में लगी होती हैं, वहीं दूसरी तरफ फिर से परीक्षा करवाने की कवायद खर्चीली और देरी करने वाली होती है। राज्यों में सत्तारुढ़ पार्टी के सामने समस्या यह भी होती है कि पेपर लीक होने से चुनिंदा लोगों को हुए फायदे के कारण परीक्षा रद्द करवाने से हजारों-लाखों अभ्यर्थियों के हितों का नुकसान नहीं किया जा सकता। ऐसे में सत्तारुढ़ दलों को दोनों तरफ से युवाओं की नाराजगी का खतरा होता है। यदि पेपर निरस्त करा दिया तो योग्यता सूची में आए अभ्यर्थियों की नाराजगी और नहीं कराया तो प्रदर्शनाकारियों की।   

ऐसे हालात का विपक्षी दल फायदा उठाने से नहीं चूकते, जैसा कि बिहार के मामले में निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने किया। सांसद यादव को बिहार प्रशासनिक सेवा आयोग से नाराज प्रदर्शनकारी युवाओं की सहानुभूति का फायदा मिल गया। ठीक यही स्थिति राजस्थान में मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के साथ है। यहां सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा के ही वरिष्ठ नेता और काबीना मंत्री मीणा अपनी ही सरकार और पार्टी को आईना दिखाने में लगे हुए हैं। इसके पीछे भी वोट बैंक की राजनीति है। मीणा ने पेपर लीक मामलों में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार की नाक में दम कर दिया था। कांग्रेस के राजस्थान से सत्ता गंवाने का एक बड़ा कारण पेपर लीक मामले भी रहे हैं।   

यह निश्चित है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के राज्यों में होने वाले संचालन को सौ प्रतिशत चाक-चौबंद करना आसान नहीं है। कोई भी चूक और मिलीभगत पेपर लीक करवा सकती है। राजनीतिक दलों को रोटी सेकने के लिए ऐसे ही मौकों का इंतजार रहता है। यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा, जब तक राजनीतिक दल मिल बैठकर किसी नीति पर कायम नहीं होते। तब तक न सिर्फ युवाओं के हितों पर कुठाराघात होता रहेगा, बल्कि सरकारी संसाधन और धन का भी नुकसान होता रहेगा।





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