अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम‘ अभियान पर अमल शुरू कर दिया है। ट्रंप ने चुनाव से पहले गैर कानूनी रूप से अमेरिका में रह रहे भारत समेत अन्य देशों के नागरिकों को वापस भेजने का सिलसिला तेज कर दिया है। इस क्रम में अमेरिकी शहर टेक्सास से 205 ऐसे भारतीयों को सैन्य विमान में लादकर अमृतसर में लाया गया है, जो गैर-कानूनी ढंग से अमेरिका में रह रहे थे। हालांकि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले ही कह चुके हैं कि अवैध अप्रवासियों का भारत स्वागत करेगा।
इस पहली खेप में भेजे गए 205 प्रवासियों का भारत में रिहाईश का पूरा डाटा जांच करने के बाद लिया गया है। जयशंकर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो से इस मुद्दे पर सहमति 23 जनवरी 2025 को ही बन गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रंप से फोन पर हुई बातचीत में भरोसा दिया था कि जो सही होगा उसे स्वीकार करेंगे।
अमेरिका के इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट (आईसीई) की सूची के अनुसार ऐसे करीब 20,427 भारतीयों की सूची हैं, जो अवैध प्रवासियों की श्रेणी में आते हैं। इनमें से 17,940 भारतीयों के मूल निवासी होने के पतों का दस्तावेजी सत्यापन भी हो चुका है। इन्हें भी अमेरिका से निकालने की कार्यवाही चल रही हैं। हालांकि एक निजी एजेंसी के अनुसार अमेरिका में करीब 7.25 लाख भारतीय अवैध ढंग से रह रहे हैं।
हालांकि अमेरिका से अवैध प्रवासियों को निकाले जाने की बात कोई नई नहीं है। अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 के दौरान 1100 लोगों को चार्टड विमान से भेज चुका है। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भारत समेत अन्य देशों के चार लाख से भी अधिक अप्रवासी निकाले गए थे। अमेरिका अब तक चार छोटे देशों ग्वाटेमाला, होंडूरास, इक्वाडोर और पेरू के अवैध प्रवासियों को निकाल चुका है। भारत पांचवां देश हैं, जहां के अवैध प्रवासियों को निकाला गया है। अमेरिका ने मैक्सिको और कोलंबिया के भी अवैध प्रवासियों को सैन्य विमान में लादकर भेजा था। परंतु इन देषों की सरकारों ने विमान को अपने देशों की सीमा के भीतर उतरने की मंजूरी नहीं दी थी। बाद में इन्हें सीमा पर उतारने की सहमति बन गई थी। अमेरिका में वैध एवं अवैध तरीकों से बसने की इच्छा रखने वालों में भारत के बाद दूसरे पायदान पर चीनी नागरिक हैं। इसके बाद अल-साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास, फिलीपींस, मैक्सिको और वियतनाम के प्रवासी हैं। दरअसल अमेरिका अवसरों और उपलब्धियों से भरा देश माना जाता है। इसलिए लोग बेहतर और सुविधाजनक जीवन जीने की दृष्टि से अमेरिका में स्थाई तौर से बसने की लालसा रखते हैं। किंतु अब लगता है अमेरिका में विदेशी प्रवासियों के रास्ते बंद हो रहे हैं। क्योंकि अमेरिका ने जन्मजात नागरिकता पर भी रोक लगाने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
ट्रंप द्वारा जन्मजात नागरिकता खत्म करने के आदेश के पहले तक अमेरिका में किसी भी देष के प्रवासी दंपत्ति के जन्मे शिशु को जन्मजात नागरिकता स्वतः मिल जाती थी। यह प्रावधान तब भी था, जब उनकी माता अवैध रूप से देश में रह रही हो और पिता भी वैध स्थायी निवासी न हो। ट्रंप द्वारा जन्मजात नागरिकता पर प्रतिबंध के बाद सबसे अधिक परेशानी उन महिलाओं को हो रही है, जो अमेरिका में शरणार्थी या अवैध प्रवासी के रूप में रह रही हैं। वे सवाल उठा रही हैं कि उनकी कोख में पल रहे मासूम शिशु का क्या दोष है ? ट्रंप के प्रतिबंधित आदेश के अनुसार वही जन्मजात बच्चे अमेरिकी नागरिकता के पात्र होंगे जिनके माता या पिता अमेरिकी नागरिक हैं। कुछ राज्यों में अदालत के आदेश के चलते जन्मजात नागरिकता पर प्रतिबंध जरूर लग गया है, लेकिन ट्रंप ने इस आदेश के विरुद्ध ऊपरी अदालत में अपील करेंगे। ट्रंप ने कड़ा रुख व्यक्त करते हुए कहा है, ‘हम पीछे नहीं हटेंगे।‘ अमेरिकी न्याय विभाग दावा कर रहा है कि जन्मजात नागरिकता खत्म करना अमेरिकी हितों के अनुरूप है। इससे लगता है, देर-सबेर जन्मजात नागरिकता खत्म करने का कानून संपूर्ण अमेरिका में लागू हो जाएगा। वैसे भी अमेरिका में भारतीयों तथा अन्य वैध-अवैध प्रवासियों के विरुद्ध धुर दक्षिण पंथियों का आंदोलन ‘अमेरिका प्रथम‘ एक अभियान के रूप में सक्रिय है। यही नहीं यह आंदोलन उग्र रूप में बदलकर ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन‘ अर्थात ‘अमेरिका को फिर से महान बनाएं‘ जाने की मानसिकता के चलते नस्लीय तनाव के रूप में भी देखने में आ रहा है।
अवैध प्रवासियों के संदर्भ में अमेरिका को अपने गिरेवान में भी झांकने की जरूरत है। क्योंकि चिड़िया भी पंख नहीं मार सकती, का दावा करने वाला देष अवैध तरीके से आने वाले प्रवासियों पर लगाम लगाने में अब तक नाकाम रहा है। इसीलिए अमेरिका को मूलतः अप्रवासियों का देष माना जाता है। भारत के साथ अन्य देशों के लोग भी फर्जी दस्तावेजों और गैर-कानूनी तरीकों के आधार पर अमेरिकी सीमाओं के पार चले जाते हैं ? आखिर डंकी रूट के जरिए अमेरिका में ही क्यों सबसे ज्यादा लोग प्रवेश करने में सफलता पा लेते हैं ? इसके पीछे मुख्य कारण अमेरिका में कुशल एवं अकुशल कामगारों की हमेशा जरूरत रहती है। इसलिए कंपनियां अवैध तरीकों के जरिए विदेषियों को लाकर उसी तरह बसाती हैं, जिस तरह भारत में बांग्लादेषी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को बसाने का प्रबंध किया जाता है। अमेरिका सरकार का दावा है कि बीते पांच साल में दो लाख से ज्यादा भारतीय चोरी-छिपे अमेरिका में घुसने के प्रयास में पकड़े गए हैं। इनमें से कुछ वापस हो गए तो कुछ हिरासत में रहकर रिहाई के प्रयास में हैं। जबकि डंकी रुट का पर्याय बनी घुसपैठ की कोषिषें अत्यंत जोखिमभरी होने के साथ जानलेवा भी हैं। अनेक भारतीय युवा नौकरी व कारोबार करने की ललक में अपनी पैतृक जमीन बेचकर डंकी रुट से अमेरिका जाने का जोखिम उठाकर बर्बाद हो रहे हैं। दरअसल अमेरिका में चालक (ड्राइवर) जैसी छोटी नौकरी में भी करीब साढ़े तीन लाख रुपए का वेतन प्रतिमाह मिलता है। इसीलिए हरियाणा और पंजाब के सैंकड़ों युवा डंकी रुट के मोहजाल में आकर स्वंय के साथ समूचे परिवार की आर्थिक बद्हाली की कहानी लिख चुके हैं। अतएव युवाओं को ही नहीं उन अभिभावकों को अमेरिकी दीवानगी से बचने की जरूरत है, जो अपनी संतान का उज्जवल भविश्य अमेरिकी चकाचैंध में देख रहे हैं।
बाॅक्स-
प्रवासियों का देश अमेरिका
अमेरिका की कुल जनसंख्या करीब 33 करोड़ है। इस आबादी की तुलना में उसका भू-क्षेत्र बहुत बड़ा, यानी 98,33,520 वर्ग किमी है। इतने बड़े भू-लोक के मालिक अमेरिका के साथ विडंबना है कि 15वीं षताब्दी तक अमेरिका की कोई स्वतंत्र राश्ट्र के रूप में पहचान नहीं थी। दुनिया केवल एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों से ही परिचित थी। 1492 में नई दुनिया की खोज में निकले क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। हालांकि कोलंबस अमेरिका की बजाय भारत की खोज में निकला था। लेकिन रास्ता भटक कर वह अमेरिका पहुंच गया। वहां के लोगों को उसने ‘रेड इंडियन‘ कहकर पुकारा। क्योंकि ये तांबई रंग के थे और प्राचीन भारतीयों से इनकी नस्ल मेल खाती थी। हालांकि इस क्षेत्र में आने के बाद कोलंबस जान गया था कि वह भारत की बजाय कहीं और पहुंच गया है। बावजूद उसका इस दुर्लभ क्षेत्र में आगमन इतिहास व भूगोल के लिए एक क्रांतिकारी पहल थी। कालांतर में यहां अनेक औपनिवेशिक शक्तियों ने अतिक्रमण किया। 17वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया और अन्य प्रषांत महासागरीय द्वीप समूहों की खोज कप्तान जेम्स कुक ने की। जेम्स ने यहां अनेक प्रवासियों की बस्तियों को आबाद किया।
इसी क्रम में 1607 में अंग्रेजों ने वर्जीनिया में अपनी बस्तियाँ बसाईं। इसके बाद फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड ने उपनिवेश बनाए। 1733 तक यहां 13 बस्तियां अस्तित्व में आ गईं। इन सब पर ब्रिटेन का प्रभुत्व कायम हो गया। 1775 में ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध छिड़ गया। 4 जुलाई 1776 में जाॅर्ज वाष्गिटंन के नेतृत्व में अमेरिकी जनता ने विजय प्राप्त कर ली और संयुक्त राज्य अमेरिका का गठन कर स्वतंत्र और षक्तिषाली राश्ट्र के रूप में वह अस्तित्व में आ गया। इसीलिए कहा जाता है कि अमेरिका के इतिहास व अस्त्तिव में दुनिया के प्रवासियों का बड़ा योगदान रहा है। साथ ही यहां एक बड़ा प्रष्न खड़ा हुआ कि अमेरिका महाद्वीप के जो रेड इंडियन नस्ल के मूल निवासी थे, वे हाषिये पर चले गए। गोया, मूल अमेरिकी तो वंचित रह गए, अलबत्ता विदेषी-प्रवासी प्रतिभावान किंतु चालाक अमेरिका के मालिक बन बैठे। इस विरोधाभास का मूल्यांकन करके ही ट्रंप चिंतित हैं कि आईटी टेक्नोक्रेट के बहाने जो आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिकी संस्थाओं व कंपनियों पर प्रभावी होते जा रहे हैं, वे मूल-अमेरिकियों के लिए अमेरिकी संस्थाओं में बेदखली और बेरोजगारी का कारण भी बन रहे हैं। इसी लिहाज में ट्रंप अमेरिका-फर्स्ट की नीति को महत्व दे रहे हैं।
इस दृष्टिकोण से यदि वर्तमान संयुक्त राज्य अमेरिका का नृजातीय रूप में मूल्यांकन करें तो पता चलता है कि यहां मूल अमेरिकियों, मसलन रेड इंडियनों की आबादी महज 2.7 प्रतिशत ही रह गई है, शेष 97.7 फीसदी भूमि पर यूरोप, अफ्रीका और एशिया से आ बसे लोगों का कब्जा है। इसमें रेड इंडियन के साथ नवाजो और चरूकी जनजातीय लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें अधिकांश लोग अब अपनी संस्कृति से कट गए हैं। ज्यादातर ने आधुनिक अमेरिकी संस्कृति को अपना लिया है। लेकिन नस्लीय भेदभाव के चलते अमेरीकी समाज इन्हें दोयम दृश्टि से देखता है। इस कारण ये आधुनिक सुविधाओं से लगभग वंचित व उपेक्षित हैं। अभावग्रस्त यही लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वालों के लिए अमेरिका में अलग मंत्रालय खोलकर इनके कल्याण के लिए पहल की जा रही है। अमेरिका में कुल आबादी में से 13.66 फीसदी लोग गरीबी-रेखा के नीचे रहने को विवश हैं। इन्हीं लोगों में सर्वाधिक बेरोजगारी है। राष्ट्रपति ट्रंप शायद ऐसे ही लोगों की बेरोजगारी दूर करने के लिए जन्मजात नागरिकता और वीजा संबंधी नियमों को कठोर बना रहे हैं, जिससे गैर-अमेरिकियों के लिए रोजगार के रास्ते बंद हो जाएं और स्थानीय लोगों के लिए खुल जाएं। लेकिन आज अमेरिका जिस विकास और समृद्धि को प्राप्त कर पूंजीपति व शक्ति-संपन्न राष्ट्र बना दुनिया पर अपना प्रभुत्व जमाए बैठा है, उसकी पृष्ठभूमि में दुनिया के प्रवासियों का ही प्रमुख योगदान है। लिहाजा ट्रंप के प्रवासी भारतीयों समेत अन्य प्रवासियों को अमेरिका में ही बसाए रखने के नीति और उपाय बदस्तूर रखने चाहिए।
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही घबराहट होने लगती है। कैंसर से पीड़ित व्यक्ति बीमारी से अधिक तो कैंसर के नाम से डर जाता है। जिस व्यक्ति को ...
भारत में मध्यमवर्गीय परिवार देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता आया हैं। हाल ही के समय में प्रत्यक्ष कर संग्रहण ...
विनिर्माण के क्षेत्र में जरूर कुछ चुनौतियां बनी हुई है एवं कई प्रयास करने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी बढ़ नहीं प...
केन्द्रीय बजट में कृषि और महिलाओं पर भी फोकस किया गया है। पीएम धन-धान्य योजना का प्रस्ताव किया गया है। किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा तीन ल...
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में आने पर आरोप लगाए थे कि पूर्ववर्ती सिद्दारमैया सरकार ने महज अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण और क...