सारंगढ़-बिलाईगढ़ (वीएनएस)। जिला शिक्षाधिकारी (डीईओ) एल. पी. पटेल द्वारा शिक्षकों को उनके मूल शाला में वापस भेजने के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कई शिक्षक अब तक अपनी संलग्न शालाओं में जमे हुए हैं। यह आदेश शैक्षणिक सत्र 2025-26 के सुचारु संचालन और वेतन भुगतान की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जारी किया गया था।
जारी निर्देशों के अनुसार, 30 अप्रैल तक सभी शिक्षक, जो विभिन्न स्कूलों, कार्यालयों, छात्रावासों अथवा लिपिक कार्यों में संलग्न हैं, उन्हें अपने मूल विद्यालयों में पदभार ग्रहण करना अनिवार्य किया गया था। ऐसा नहीं करने की स्थिति में मई माह का वेतन रोकने का भी स्पष्ट निर्देश जारी किया गया है।
परसाडीह हाई स्कूल का मामला बना चर्चा का विषय
हाल ही में सामने आए एक मामले ने इस अवहेलना की गंभीरता को उजागर कर दिया है। शासकीय हाई स्कूल परसाडीह में पदस्थ व्याख्याता गिरजा शंकर धीवर का व्यवस्था आदेश क्रमांक 2846, दिनांक 28 जून 2024 को जारी हुआ था, जिसके अनुसार उन्हें अपने मूल शाला परसाडीह लौटना था। लेकिन वे आज तक वापस नहीं लौटे हैं। इसके विपरीत, वे अब तक स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी-हिंदी माध्यम विद्यालय, प्रेम भुवन प्रताप सिंह में न केवल जमे हुए हैं, बल्कि वहां प्राचार्य के पद पर भी कार्यरत हैं—जो कि डीपीआई नियमों के प्रतिकूल है।
नियमों की अनदेखी और राजनीतिक संरक्षण का आरोप
शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार, व्यवस्था पर आए शिक्षक को प्राचार्य का पद नहीं दिया जा सकता, बल्कि वह पद उसी शाला में पहले से कार्यरत वरिष्ठतम शिक्षक को दिया जाना चाहिए। ऐसे में गिरजा शंकर धीवर को प्राचार्य पद और आहरण-संवितरण का अधिकार मिलना कई सवाल खड़े करता है। आरोप है कि यह सब कुछ राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिलीभगत से हो रहा है।
कई शिक्षक अब तक लौटे नहीं, डीईओ के आदेशों की अनदेखी
बिलाईगढ़ विकासखंड के अंतर्गत अनेक शिक्षकों द्वारा भी अब तक अपने मूल पदों पर वापसी नहीं की गई है, जिससे शैक्षणिक संचालन प्रभावित हो रहा है। हालांकि कुछ शिक्षक, जैसे कि महेश कुमार लहरे, निर्धारित तिथि से पहले ही अपने मूल विद्यालय परसाडीह लौट चुके हैं, लेकिन कुछ शिक्षक 'कुंडली मार' कर अब भी व्यवस्था पदों पर जमे हैं।
अब निगाहें प्रशासनिक कार्रवाई पर
यह स्पष्ट है कि डीईओ के आदेशों का व्यापक अनुपालन नहीं हुआ है। सवाल उठता है कि क्या जिला शिक्षा अधिकारी सभी संबंधित शिक्षकों की स्थिति का संज्ञान लेंगे और अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगे? विशेषकर गिरजा शंकर धीवर जैसे मामलों में वेतन रोकने, स्थानांतरण की पुनर्समीक्षा, या जांच समिति गठन जैसे कदम कितनी तेजी से उठाए जाएंगे, यह देखना अब बाकी है।
यह घटना न केवल एक शिक्षक की प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करती है, बल्कि पूरे तंत्र में पारदर्शिता और अनुशासन के सवाल खड़े करती है।
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