ट्रंप को नहीं मारिया को मिला को नोबल शांंति पुरस्कार

Posted On:- 2025-10-10




विश्व के लोग इंतजार कर रहे थे कि इस बार नोबल शांति पुरस्कार किसको मिलेगा। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पुरजोर कई बार दावा किया है, इजराइल व पाकिस्तान ने उनके नाम का प्रस्ताव किया था, शुक्रवार को रूस ने भी ट्रंप को नोबल शांति पुरस्कार देने का समर्थन किया था,सब सोच रहे थे कि इस बार ट्रंप को नोबल को शांति पुरस्कार मिलेगा या नहीं मिलेगा। आखिर शुक्रवार को नार्वेजियन नोबल समिति ने इस बात की घोषणा कर दी कि इस बार नोबल शांति पुरस्कार ट्रंप को नहीं वेनेजुएला जैसे छोटे से  देश की विपक्ष की नेता आयरन लेड़ी कही जाने वाली, मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली मारिया कोरिना मचाड़ो को मिला है।

७ अक्टूबर १९६७ को जन्मी मारिया कोरिया मचाडो को नोबल शांति पुरस्कार के योग्य इसलिए समझा गया है कि उन्होंने वेनेजुएला सरकार द्वारा मानवाधिकारों का हनन की कड़ी आलोचना की। उन्होंने देश मे लोकतंत्र व शांति के लिए आवाज उठाई और डेमोक्रेटिक राइट्स को अपने देश में बढ़ावा देने, महिलाओं के हित में काम करने और डिक्टेटरशिप से डेमोक्रेसी तक के वेनेजुएला के सफर को आगे बढ़ाने और सहयोग देने का काम किया।जब तक नोबल शांति समिति ने शांति के लिए नोबल पुरस्कार की घोषणा नहीं हुई थी, ट्रंप लगातार न सिर्फ अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे बल्कि दूसरे देशों के नेताओं के द्वारा भी करवा रहे थे। वो दावा कर रहे थे कि उन्होंने 6-7 युद्ध रुकवाए हैं। 

नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा से एक दिन पहले ही गाजा में शांति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने का फैसला लिया गया। बंदियों को छोड़ने पर सहमति बनी। जिसके बाद ये माना जा रहा था कि ट्रंप नोबेल पीस प्राइज के बड़े दावेदार रहेंगे। अमरीका के कई राष्ट्रपतियों को नोबल का शांति पुरस्कार मिल चुका है और उनका अमरीका में बड़ा सम्मान है तो ट्रंप चाहते थे कि उनको भी शांति को नोबल पुरस्कार मिल जाए तो उनका नाम अमरीका के इतिहास में दर्ज हो जाएगा और उनका भी नाम नोबल पुरस्कार प्राप्त अन्य राष्ट्रपतियों थियोडोर रुजवेल्ट,वुडरो विल्सन,जिमी कार्टर,बराक ओबामा की तरह सम्मान से लिया जाएगा।ट्रंप व अमरीका के दूसरे नेताओं में यह फर्क है कि दूसरे नेता खुद को नोबल शांति पुरस्कार के दावेदार के रूप में पेश नहीं करते थे,उनके काम के आधार पर उनको नोबल का शांति पुरस्कार मिला, ट्रंप के शांति के काम को दूसरे स्वीकारते हीं है, फिर भी ट्रंप खुद को आठ युध्द समाप्त करने वाले नेता के रूप में पेश करते रहे हैं।

भारत पाकिस्तान युध्द रुकवाने को लेकर उनकी सबसे ज्यादा फजीहत हुई और पहले भारत ने उसके बाद पाकिस्तान ने दावा किया कि युध्द रुकवाने में ट्रंप को कोई भूमिका नहीं थी। ट्रंप ने हमास इजराइल युध्द रुकवाने में कुछ सफलता जरूर पाई है, वह इसके लिए बनाई २० सूत्री योजना को सदी की सबसे बड़ी शांति योजना बताते हैं। जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि युध्द रुकवाने में ट्रंप की भूमिका शांति के लिए होने की जगह संघर्ष प्रबंधन की रही है। चुनाव में उनका वादा रूस यूक्रेन युध्द व हमास इजराइल युध्द रुकवाने का था वह एक युध्द रुकवाने में सफल तो हुए हैं लेकिन रूस यूक्रेन युध्द को हर तरह की कोशिश के बाद भी नहीं रुकवा पाए हैं।यह उनकी सबसे बड़ी असफलता है और इसके कारण भी ट्रंप को शांति के नोबल पुरस्कार के योग्य नहीं माना गया है।

 विशेषज्ञों का मानना है कि गाजा में स्थायी शांति हो जाती है तो इसका श्रेय ट्रंप को जाएगा और अगले साल वह रूस यूक्रेन युध्द रुकवा देते हैं तो अगली बार फिर वह नोबल शांति पुरस्कार के लिए दावा कर सकते हैं। बताया जाता है कि इस बार तो नोबल शांति पुरस्कार के नाम तय हो गया था उसके बाद ट्रंप ने दावा किया। इस बार नोबल की रेस में यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की,रूसी कार्यकर्ता यूलिया नावलनाया को नामित किया गया था लेकिन नोबल पुरस्कार समिति ने इनमें से किसी को देने की जगह मारिया को नोबल के शांति पुरस्कार के योग्य समझा। यानी इस बार नोबल का पुरस्कार जिसका दिया गया उसकी कोई चर्चा ही नहीं थी और ट्रंप की सबसे ज्यादा चर्चा थी और उनको नहीं मिला। 



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