रायपुर (वीएनएस)। शरीर श्वांस से चलता है पर जीवन आत्मविश्वास से आगे बढ़ता है इसलिए अपने आत्मविश्वास को, मन की शक्ति को हमेशा सुरक्षित रखें। किस्मत के बंद तालों को खोलना है तो उसका पहला मंत्र है- जीवन में हमेशा सकारात्मक नजरिया रखें, दूसरा- आप क्या और कैसा बनना चाहते हैं लक्ष्य निर्धारित करें, तीसरा- लक्ष्य प्राप्ति की योजना तैयार करें, चौथा- हां मैं यह कर सकता हूं, अपने भीतर ऐसा आत्मविश्वास जगाएं और अंतिम मंत्र है- लगन के साथ लगातार पुरूषार्थ करते रहें।’’
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत युवाओें के लिए जारी व्यक्तित्व विकास सप्ताह के पांचवे दिन शुक्रवार को ‘किस्मत के बंद तालों को कैसे खोलें’ विषय पर व्यक्त किए। सफल-सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हुए संतप्रवर ने कहा कि अपने भीतर लक्ष्य प्राप्ति का जज्बा पैदा करें और अपने नजरिए को हमेशा सकारात्मक बनाए रखें।
‘‘उड़ते वही हैं जिनके जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों में जान होती है।
घड़ी जब तक चलती है तो वह कमरे में होती है, जब बंद हो जाती है तो कचरे में चली जाती है।
संतप्रवर ने आगे कहा कि बैठे-ठाले जिंदगी कभी किसी इंसान को परिणाम नहीं दिया करती। गाय का दूध निकलता नहीं है, गाय का दूध निकालना पड़ता है। अकर्मण्य-आलसी को खाली बैठना अच्छा तो बहुत लगता है पर खाली बैठने का परिणाम अच्छा नहीं होता। आदमी को जिंदगी में मुकाम पाने के लिए लगे रहना पड़ता है। लगे रहने वाला एक कछुआ भी जिंदगी में धीरे-धीरे शिखर तक पहुंच जाता है। और बिना लगन से तेज दौड़ने वाले को एक दिन पीछे रहना पड़ता है। जिंदगी में विजयी होने का पहला मंत्र है-लगन। आदमी को लगन से लगना पड़ता है। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए-प्रगति करने के लिए जज्बा चाहिए, कड़ी मेहनत, पुरूषार्थ और बड़ी सोच चाहिए। बिना पुरूषार्थ, परिश्रम के कभी भी कोई आगे बढ़ सकता नहीं। हमारे समक्ष अब्दुल कलाम, रविन्द्र जैन, धीरूभाई अंबानी, घनश्यामदास बिड़ला आदि ऐसी कई महान शख्सियतों ने मिशाल बनाई है, जिन्होंने प्रतिकूलताओं को भी अपनी लगन, मेहनत से अनुकूलताओं में बदल दिया और शिखर तक पहुंचे। गरीब किसान के घर जन्मा लाल बहादुर शास्त्री एक दिन प्रधानमंत्री बनता है, आदिवासी परम्परा का जीवन जीते हुए भी ऊंची सोच रखने वाली द्रोपदी मुर्मू राष्ट्र्पति बनती है। आगे बढ़ने के लिए किसी की कृपा होने की जरूरत नहीं है, आगे बढ़ने के लिए आदमी के भीतर हौसला-जज्बा चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो जीवन को कोसते रहते हैं। निराशाएं, हताशाएं, हीन भावनाएं हमारी जिंदगी को कमजोर करती हैं।
संतश्री ने कहा कि जब तक आदमी के भीतर उत्साह है, तब तक आदमी के भीतर सफलता की हजार संभावनाएं हैं। वैज्ञानिक थम्ब अल्वा एडीशन ने बल्व का आविष्कार करने 9,999 बार प्रयोग किए और असफल होते रहे, मगर वे लगे रहे आखिर दस हजारवीं बार उनका प्रयोग रंग लाया और वे सफल हो गए। विश्वास रखना हर असफलता में सफलता का कोई न कोई भविष्य छिपा रहता है। आदमी लगा रहे और न पहुंच पाए ऐसा हो ही नहीं सकता। क से करमफूटा होता है, कम से कर्मयोग होता है और क से ही किस्मत होती है। कर्मफूटा भी अगर कर्मयोग करेगा तो वह भी किस्मत के बंद तालों को खोलने में सफल हो जाएगा।
किस्मत सत्कर्म से बनती है और पुरूषार्थ से खुलती है
संतश्री ने कहा कि आदमी के पुण्य या शुभ का बंधन उसके सत्कर्म से होता है, लेकिन आदमी के भाग्य उसके पुरूषार्थ से खुलते हैं। आदमी की किस्मत सत्कर्म से बनती है पर बंद किस्मत के तालों को खोलने के लिए पुरूषार्थ करना पड़ता है। किस्मत सत्कर्म से बनती और पुरूषार्थ से खुलती है। पर जरूरी है पुरूषार्थ से किस्मत को खोलने के लिए कि सत्कर्म कर-करके अपने पुण्य की पूंजी बनाते रहो, बस तुम्हारे पुण्य का एकाउंट भरा हुआ हो। चंदन घिसकर खुशबू देता है, हीरा कट कर चमक देता है और आदमी की मेहनत उसे जीवन का परिणाम दिया करती है। भाग्य ने आपकी थाली में भोजन भेज दिया है पर उसे मुंह तक ले जाने के लिए आपको हाथ से काम लेना होगा। भाग्य ने आपको समुद्र पार करने नाव दे दी, पर उस पर जाने के लिए आपको पतवार तो चलानी ही पड़ेगी। पहली बात याद रखना जीवन के अंधेरे को कोसने की जरूरत नहीं है, अंधेरा दुनिया में कहीं नहीं होता, जहां-जहां प्रकाश नहीं होता उसी का नाम अंधेरा है। अंधेरे को दूर करने के लिए एक दीपक जलाने की जरूरत है। ऐसे ही जो लोग अपने जीवन में मेहनत रूपी दीपक जला लेते हैं, वे सफल अवश्य होते हैं।
लॅक, भाग्य, नसीब, किस्मत परिणाम तब देते हैं जब आदमी मेहनत करता है
संतश्री ने कहा कि दो अक्षर का लॅक है, ढाई अक्षर का भाग्य है, तीन अक्षर का नसीब है, साढ़े तीन अक्षर की किस्मत है। पर ये चारों आदमी को परिणाम तब देते हैं जब आदमी चार अक्षर की मेहनत किया करता है। बिना मेहनत, परिश्रम के आदमी को कभी परिणाम नहीं मिलते हैं। जिंदगी में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं। तुम जहां खड़े हो, ये तुम्हारी मंजिल नहीं यह तो तुम्हारा पहला पड़ाव है। नंबर-1 हर आदमी अपने किस्मत के तालों को खोल सकता है। नंबर-2 हर आदमी के जीवन में संभावनाएं शेष हैं, नंबर-3 अगर आपकी किस्मत कमजोर है तब भी मेहनत किए जाओ, आपकी मेहनत जरूर रंग लाएगी।
बेटी है सद्भाग्य हमारा
बेटियों को पढ़ाने आगे बढ़ाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए संतश्री ने कहा कि जिसके किस्मत में संतान का सुख ज्यादा होता है, ईश्वर केवल उन्हें ही बेटियां देता है। बेटी है अभिमान हमारा, बेटी है सम्मान हमारा। जिस घर बेटी जन्मे, वो है सद्भाग्य हमारा। जब उुपर वाला बेटे को नीचे भेजता है तो वो कहता है- जा अपने मां-बाप का ध्यान रखना और जब वह बेटियों को भेजता है तो कहता है- जा तेरे मां-बाप का ध्यान मैं खुद रखुंगा। अगर तुम चाहते हो, बुढ़ापा सुखी हो तो बेटियों को सम्मान के साथ आगे बढ़ाओ।
अगर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफलता का द्वार खोलना चाहता है तो वह पाप कमाई से जिंदगी में हमेशा बचे। बाप कमाई यदि है तो उसे केवल जीवन की जरूरी आवश्यकता में लगाए। क्योंकि पिता का धन बेटी की तरह होता है, वह उपभोग के लिए नहीं उपयोग के लिए होता है। आप कमाई को बढ़ाने जी-जान से लग जाना, जो परिग्रही होगा वही दान पुण्य कर अपरिग्रही बन सकता है।
आरंभ में संतश्री ने राष्ट्रीय संत श्रीचंद्रप्रभजी रचित जीवन में सफलता के प्रेरित करते गीत ‘जोश जगाएं होश बढाएं और आसमान को छू ले हम, नई सफलताओं के सपने इन आंखों में भर लें हम...’ के गायन से धर्मानुरागियों को मोटिवेट किया।
सन्मार्ग पर बढ़ाएं कदम:डॉ. मुनि शांतिप्रियजी
दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि आदमी अपने कर्मों के आधार पर स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु हुआ करता है। जब वह सन्मार्ग पर कदम बढ़ाता है तो वह स्वयं का मित्र होता है और जब दुष्मार्ग पर बढ़ने लगता है तो वह स्वयं का ही शत्रु बन जाता है। जब-जब हम निराशा, हताशा से भरे होते हैं तब-तब हम स्वयं के शत्रु बन जाते हैं और जब-जब हम आशा, विश्वास, श्रद्धा से भरे होते हैं तब-तब हम अपने मित्र बन जाते हैं। हार भले ही जाएं पर जिंदगी में कभी हार नहीं मानें। हार जाना गलत नहीं है लेकिन हार मान लेना यह बहुत गलत है। अपने जीवन में आशा का संचार रखिए, धैर्यवान बनिए। महानता गिरने में नहीं है, महानता तो गिरकर वापस उठने में है।
आज के अतिथिगण
शुक्रवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण जितेन्द्र दोशी, मुकेश ढोलकिया, सुभाष राव, संजय गंगवाल, अनिल द्विवेदी, नंदकिशोर खंडेलवाल, इंद्रकरण मारोठी, विनय बैद, गौतमचंद सखलेचा, श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली ने दीप प्रज्जवलित कर किया। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञान पुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया.
तपस्वी का बहुमान
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