रायपुर (वीएनएस)। सन्मति नगर फाफाडीह में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में शनिवार को आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि प्रक्षीण पुण्यम विनश्यते विचारणम। अर्थात पुण्य के क्षीण होते ही विचारों का भी विनाश हो जाता है,इसलिए हमें वे कार्य करना चाहिए जिनसे हमारे पुण्य में वृद्धि हो और सद्बुद्धि भी बनी रहे। वस्तु का मिल जाना महत्वपूर्ण नहीं है,वस्तु का सम्यक उपयोग कर पाना महत्वपूर्ण है। जिसका पुण्य क्षीण होता है वह उत्कृष्ट वस्तु का उत्कृष्ट उपयोग नहीं कर पाता। जिसका पुण्य प्रचंड होता है वह अल्प वस्तु में भी बहुलाभ को प्राप्त करता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जिनका पुण्य क्षीण होता है उनके विचार नष्ट हो जाते हैं। पुण्यात्मा जीव के विचार भी उत्कृष्ट होते हैं। सबसे पहले पुण्य क्षीणता बुद्धि को पकड़ती है, बुद्धि नष्ट हो जाती है। दुराचारियों का का समय अधिक नहीं होता। उन्हें जल्द नीचे ही गिरना पड़ता है। जीवन में सदैव अच्छे काम करों। जिनका पुण्य क्षीण हो गया है,उन लोगों को अच्छे भाव नहीं आएंगे। जिनवाणी सुनने का भाव, भगवान की भक्ति करने का भाव पापी जीवों के मन में नहीं आता। नय प्रमाण को जानने की क्षमता पुण्यात्मा जीव के मस्तिष्क में होती है। सदैव ऐसा कार्य करें जिससे पुण्य की वृद्धि हो।
आचार्यश्री ने कहा कि संसार में लोग भ्रम में अधिक रहते हैं, शंका बहुत है। सबसे ज्यादा ऐसे ही लोग परेशान करते हैं जो बार-बार शंका के घेरे में घिरे रहते हैं। न स्वयं सुखी होते हैं न दूसरों को सुखी रहने देते हैं।शंकाशील आदमी कभी भी सुख से नहीं रह सकता। सम्यक दृष्टि जीव के मस्तिष्क में शंका नहीं होती। सदैव जिज्ञासा होती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आत्मा का महान पुरुषार्थ जब जीव को होता है, तो वह जीव कैवल्य को प्राप्त होता है। दुनिया कभी किसी के चरणों में नहीं झुकती। गुण व्यक्ति को झुका देते हैं। जिसमें अवगुण होंगे उन्हें गुणों के सामने झुकना पड़ता है। कैवल्य की प्राप्ति उसे ही होती है जो कैवल्य का आश्रय लेता है। एकमात्र अपने ज्ञान का आश्रय लेता है वह कैवल्य ज्ञान को प्राप्त होता है।
*समता के सहारे हम कुमरण को सुमरण बना सकते हैं : मुनि संजयंत सागर*
मुनि संजयंत सागर ने कहा कि हम सभी प्रतिक्षण अपनी आयु को कम कर रहे हैं। ऐसा कोई क्षण नहीं है जब हमारी आयु कम नहीं हो रही हो। हम जो भी क्रिया कर रहे हैं हमारी आयु कम हो रही है। कोई ईष्ट के वियोग से कोई अनिष्ट के संयोग से अपनी आयु कम कर रहा है। एक विधिवत सुमरण हो जाए तो 100-100 जन्मों का नाश हो जाता है। हम राग करते हैं तो भी कुमरण होगा, द्वेष करते हैं तो भी कुमरण होगा। समता ही एक सहारा है जिसके सहारे से हम अपने प्राणों का शांतिपूर्ण विसर्जन कर अपने मरण को सुमरण बना सकते हैं।
गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को श्रीफल और अर्घ्य समर्पित कर लिया आशीर्वाद
विशुद्ध वर्षा योग समिति के उपाध्यक्ष नरेश पाटोदी,जयेश पाटनी ने बताया कि आज मंगलाचरण निर्मल कुमार जैन गोंदिया ने किया। दीप प्रज्वलन ने चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर शंकर नगर के संरक्षक विनोद बड़जात्या, सनत कुमार जैन, मनीष जैन बिलासपुर, अध्यक्ष सत्येंद्र जैन, उपाध्यक्ष प्रदीप जैन, महामंत्री विजय कस्तूरे,कोषाध्यक्ष देवेंद्र जैन,सह सचिव विनय जैन,कार्यकारिणी सदस्य अमिताभ जैन, विपुल जैन, अमित जैन राजनांदगांव,अमित गोइल, सौम्य कुमार जैन, अजय जैन, सुधांशु जैन, संदीप बंड़ी ने किया।आचार्यश्री को श्रीफल एवं अर्घ्य समर्पण कैलाश पाटनी,आयुष जिज्ञासा दुर्ग, सम्मेद शिखर, कोलकाता, इंदौर, छिंदवाड़ा, बालाघाट, दुर्ग, हजारीबाग, गिरिडीह ,गोंदिया ,राजिम, भीलवाड़ा, भिलाई ,जयपुर से आए अतिथियों एवं सभी गुरु भक्तों ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति का पाठ ब्रम्हचारी अभिषेक भैय्या ने किया।
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