रायपुर (वीएनएस)। सन्मति नगर फाफाडीह में रविवार को चातुर्मासिक प्रवचन माला में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि देव,शास्त्र और गुरु के शरण में जाने से पुण्य सुरक्षित रहता है। जैसे घरों में खाने की सामग्रियां फ्रीज में सुरक्षित रहती है वैसे ही अपने पुण्य को सुरक्षित रखना है तो देव शास्त्र और गुरु की शरण में जाएं। जैसे फ्रीज खाने की सामग्रियों को सुरक्षित रखने अनुकुल वातावरण बनाता है वैसे ही देव,शास्त्र और गुरु किसी का पुण्य नहीं बनाते सदमार्ग दिखाते हैं। पुण्य और पाप के कर्ता आप स्वयं हैं। आपके भीतर जो चल रहा है उससे पुण्य पाप की प्राप्ति होती है। पुण्य के द्रव को सुरक्षित रखने का स्थान परमात्मा का द्वार है।
आचार्यश्री ने कहा कि धनवान वही है जिनके घर में अतिथि का सत्कार है। जिनके घरों में साधु संतों का आहार है। रोटियां तो सबके घर में है लेकिन साधु-संतों का आहार जहां है वह ही धनवान है। जहां रोटियां बेटियां बनाती है और बेटे साधु के हाथ में रखते हैं ऐसा भारत देश हमारा है। यहां पहली रोटी गाय की बनती है। विश्व में किसी भी देश में चले जाना लेकिन जब मृत्यु का समय आए तो भारत लौट आना। भारत भूमि साधु संतों की भूमि है। यहां अंतिम समय में भी साधु संतों के दर्शन होंगे। शास्त्रों की वाणी,जिनवाणी सुनने को मिलती है।
आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य जितना आकांक्षा शून्य जीवन जीता है उसका मस्तिष्क उतना विशाल होता है। जिन्हें अपना बौद्धिक विकास चाहिए वे सारे विकासों को अपनी दृष्टि से हटा लें। सारे विकास स्वमेव होंगे यदि बुद्धि का विकास हो गया। बौद्धिक विकास जितना विशाल होगा उस पुण्यात्मा का चरित्र भी निर्मल होगा, वह ध्यान में तनलीन होगा और कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर लेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि दूसरे से अपने आप को निरपेक्ष करो। दूसरे के शरीर की उष्णता, तनाव आप को प्रभावित करता है। यदि कोई विकारों से भरा है तो उसके विकार आपको प्रभावित करेंगे। जैसे अग्नि की उष्णता आप को प्रभावित करती है, बर्फ की शीतलता आप को प्रभावित करती है वैसे ही दूसरे के परिणाम आपको प्रभावित करते हैं। मनुष्य देह,उत्तम कुल, उत्तम धर्म,उत्तम स्वभाव जिसको मिल जाए वह भगवान सिद्ध श्रावक बाद में बनेगा उसे भगवान का आकार दिखाई देगा।
जिसमें ललक है वह स्वयं मार्ग ढूंढ लेता है : मुनिश्री नि:संग सागर
मुनिश्री नि:संग सागर ने कहा कि प्रत्येक प्राणी सुख की चाह में इस संसार में भटक रहा है। सुख की चाह सब करते हैं लेकिन पुरुषार्थ विपरीत होता है। जिस प्रकार एक रोगी दवाई खाकर सुखी महसूस करता है उतना ही सुख हमें है। उतना ही सुख हमने आज तक प्राप्त किया है। जहां-जहां आकुलता है वहां दुख है और जहां-जहां निराकुलता है वहां वहां सुख है। मन में दृढ़ निश्चय करें कि जब तक अपने पाप कर्मों का नाश न कर लो तब तक पुरुषार्थ नहीं छोड़ना। पाप कर्मों को छोड़कर मोक्ष का मार्ग खुल सकता है।
महापौर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन जैन ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन कर लिया आशीर्वाद
विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी और महामंत्री राकेश बाकलीवाल ने बताया कि आज महापौर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन जैन पीएनसी परिवार आगरा ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन,शास्त्र भेंट और श्रीफल अर्पण कर आशीर्वाद लिया। इसी तरह शाम को आचार्यश्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्रदीप जी विश्व परिवार, नरेंद्र जी गुरुकृपा परिवार को प्राप्त हुआ। आचार्यश्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य एसके जैन सिविल इंजीनियर को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन और दिनेश काला ने किया। सकल दिगम्बर जैन समाज रायपुर और उपस्थित गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पित कर आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति का पाठ किया गया।
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