रायपुर (वीएनएस)। वीर शासन जयंती के अवसर पर आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि जिनका पुण्य क्षीण है उनके विचार भी विनाश को प्राप्त होते हैं। जब जब मस्तिष्क में अशुभ विचार आने लगे, प्रसन्नता विलीन होने लगे,दूसरे के अहित की सोच प्रारंभ हो जाए तो समझ लेना तुम्हारा पुण्य क्षीण हो चुका है। श्रेष्ठ कार्य करने का मन ना लगे। अशुभ करने 24 घंटे विचार रहे तो समझ लेना तुम्हारी दुर्गति होने वाली है। पुण्यात्मा जीव के मस्तिष्क में तो सहज भाव आते हैं। यदि ऐसा हो तो अपनी पीठ थपथपा लेना आपके अच्छे दिन आ चुके हैं।
आचार्य ने कहा कि समय तटस्थ है। अपने अपने कर्मों में दोष है, समय में दोष नहीं है। पुण्य का उदय चाहने वालों को पहले पुण्य करना होगा। श्रेय लूटने का भाव निश्रेय से दूर कर देता है। निश्रेय की प्राप्ति की प्राप्ति के लिए काम करोगे तो श्रेय अपने आप मिलेगा। जो व्यक्ति टेंशन में जीता है संसार का सबसे बड़ा पापी वही होता है। जो टेंशन देता है वह महापापी होता है। आपकी चिंता आपके पुण्य का क्षय कर रही है। इसलिए मुस्कुरा कर हर काम करो। प्रभु का भजन करो। पुण्यात्मा जीव जिनवाणी सुनकर सोता है और जागता है तो प्रभु का दर्शन करता है। संसार में जो है सो है। भाग्य में है वह होगा। समय निकल जाता है समय बदल जाता है, मुस्कुरा कर जिओ।
आचार्य ने कहा कि वीर शासन जयंती का बड़ा महत्व है। तीर्थंकर भगवान महावीर का आज के ही दिन प्रथम दिव्य उपदेश हुआ। तीर्थंकर भगवान महावीर ऐसे वक्ता जिनको कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के 65 दिन निकल चुके थे, वह मौन लिए बैठे थे। गुरु पूर्णिमा पर गुरु शिष्य का मिलन भी हो गया। आज का पावन दिन श्रावण कृष्णा एकम जो तीर्थंकर महावीर स्वामी के शासन का प्रथम दिन है। आज ही के दिन भगवान महावीर स्वामी की प्रवचन सभा में उपदेश हुआ था।
आचर्य ने कहा कि श्रेष्ठ वक्ता का होना महत्वपूर्ण नहीं है, श्रेष्ठ श्रोता का होना भी महत्वपूर्ण है। श्रोता हंस जैसा हो। जो नीर क्षीर को भिन्न करना जानता है। श्रोता सूपा जैसा होना चाहिए, जो सार को ग्रहण कर भूसे को उड़ा देता है। ऐसे बनकर आए हो तो कुछ समझ में आता है। कुछ श्रोता आटे की चलनी जैसे होते हैं। आटा पूरा नीचे ऊपर चोकर ऊपर बचा होता है। ऐसे श्रोता भी होते हैं जिन्होंने सारी गलतियों को रख लिया और 1 घंटे तक सभा में भगवान ने क्या कहा कुछ समझ नहीं आया।
दीक्षा के बाद पहली बार हुआ प्रवचन
आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के चार शिष्यों श्रमण मुनियों के दीक्षा के बाद पहली बार प्रवचन हुआ। इनमें श्रमण मुनि निर्विकल्प सागर ने अपनी पहली देशना में कहा कि अगर तुम्हें इस संसार में अनंत सुखी होना है तो निर्गन्थ बनना पड़ेगा। तीन कार्य मोह का त्याग, परिग्रह का त्याग, व्रतों का त्याग करें। निर्गन्थता ध्यान में लीन हो जाओगे उसी दिन अनंत सुख की प्राप्ति होगी। श्रमण मुनि निर्गन्थ सागर ने कहा कि वीर शासन जयंती के मंगलमय दिवस पर सभी जीव दृष्टि लगाए बैठे थे। जिस रूप का उपदेश उन्होंने अपने आंखों से देखा ,लेकिन सुनने के लिए सबके कान प्यासे थे। 65 दिन बाद योग्य पात्र का सद्भाव मिला वैसे ही ओंकारमय रूप में प्रभु की वाणी खीरी। ऐसे ही हमें निर्गन्थ मुद्रा को धारण होने के बाद आज रायपुर में योग पात्रों का सद्भाव मिला। जीव को इस संसार समुद्र से पार होना है, सर्वप्रथम उसे मित्याथ्व का त्याग करना होगा। जिनेंद्र द्वारा कहे गए नए चक्र को समझना होगा। श्रवण मुनि निर्मोह सागर ने णमोकार मंत्र की विशेषता पर प्रकाश डाला। श्रमण मुनि निसंग सागर ने कहा कि पंचम काल में आचार्य विशुद्ध सागर आपको स्वयं जलकर रोशनी प्रदान कर रहे हैं। धर्म के विपरीत जानने के कारण हम संसार में भटक रहे हैं। इस मनुष्य जीवन में बस जानने देखने में लीन रहो, इसके अलावा जितना भी प्रतिकार रूप है सब प्रभाव है। इसमें लीन रहने के लिए अनंत पुरुषार्थ की जरूरत पड़ती है। मिट्टी जब तक पैरों में आए उसकी कोई कीमत नहीं जब वही मिट्टी कलश बनकर मंदिर पर होती है तो लोग उसे हाथों हाथ लेकर डोलते हैं।
आचार्य के रचित महान नीति ग्रंथ सत्यार्थ बोध ताम्रपत्र का हुआ विमोचन
विशुद्ध वर्षा योग 2022 के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी, महामंत्री राकेश बाकलीवाल,निकेश गोधा मनोज सेठी,अक्षय जैन मुंबई ने बताया कि वीर शासन जयंती के अवसर पर 21वीं सदी के महान नीति ग्रंथ सत्यार्थ बोध ताम्रपत्र का विमोचन हुआ। कार्यक्रम दिगंबर जैन खंडेलवाल मंदिर सन्मति नगर फाफाडीह रायपुर में हुआ। इसमें चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर द्वारा रचित 21वीं शताब्दी के विश्व के सबसे महान नीति ग्रंथ सत्यार्थ बोध के 14 अध्याय का भव्य विमोचन वीर शासन पर्व पर फाफाडीह जैन मंदिर में बड़े धूमधाम से किया गया। 125000 से ऊपर यह ग्रंथ घर-घर में रखे जाएंगे। श्रुत पंचमी,घर में कोई भी मांगलिक कार्यक्रम, दीपावली पर इस ग्रंथ का पूजन अभिषेक आदि भी कर सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन,दिनेश काला ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति की गई।
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