दूसरों की आलोचना और निंदा करना छोड़ो : आचार्य विशुद्ध सागर

Posted On:- 2022-07-17




रायपुर (वीएनएस)। विशुद्ध वर्षा योग फाफाडीह में रविवार दोपहर विशेष देशना में आचार्य विशुद्ध सागर ने कहा कि आज व्यक्ति खाली दिमाग में दुनिया के कचरे भर रहा है। दूसरों की बुराइयों का कचरा अपने दिमाग में रख रहा है। जब घर के कचरे को कचरा गाड़ी में फेंकते हो तो दुनिया के कचरे को खाली दिमाग में क्यों रखना चाहते हो ? दूसरों की बुराइयों का कचरा अपने माथे में क्यों रखे हो ? दूसरों की आलोचना और निंदा करने का जिसने त्याग कर दिया उसके संस्कार पवित्र हो जाते हैं। उसके घर आने वाली संताने साधु पुरुष बन जाती है। इसलिए दूसरों की निंदा और आलोचना करना छोड़ो।

आचार्य श्री ने कहा कि एक दूसरे का चेहरा मत देखो, उसे देखो जो सबका चेहरा देख रहा है। दूसरों का चेहरा देखते देखते लोग परेशान हैं। एक मिनट खुद का चेहरा देख लेते तो दुनिया तुम्हारे दर्शन करने आती। जो दूसरे के चेहरे देखता है उसकी रावण जैसी दशा होती है। रावण ने मां सीता का चेहरा देखा उसकी दशा क्या हो गई। भगवान महावीर ने किसी स्त्री का चेहरा नहीं देखा दुनिया आज उनके दर्शन कर रही।

आचार्य श्री ने कहा कि विचित्र चित्र को देखना बंद कर दो। जिन चित्रों से चित विचित्र हो जाता है ऐसे चित्र मत देखो। जिस चित्रों से चित पवित्र हो जाता है ऐसे चित्र देखो। तीर्थंकर परमेश्वर का चित्र तुम्हारे भावों को विचित्र होने से बचा लेगा। विद्या के बल पर देवालयों के भीतर विराजे भगवान ही नहीं देह के अंदर विराजे भगवान भी दिखते हैं। उसका नाम अध्यात्म विद्या है। आत्मा को प्रभावित करने उन दृश्यों को देखते रहो जो दृष्टा का बोध करा दे। उन दृश्यों को मत देखो जो दृष्टा का नाश कर दे। वे चित्र देखने,वे प्रतिमाएं देखने योग्य है जिसके भीतर का भगवान दिख जाए। वे चित्र मत देख लेना जिससे भीतर का भगवान नष्ट हो जाए। पर्वत पर खड़े होकर एक वर्ष तक सूर्य को देखना सरल है, लेकिन किसी पुण्य आत्मा के पुण्य को एक मिनट देख लेना बहुत कठिन है। किसी पुण्य आत्मा का पुण्य चमक रहा हो उसे देख पाना कठिन साधना है।

आचार्य श्री ने कहा कि शांत होकर निर्णय करें। व्यक्ति के पास लक्ष्य होना चाहिए, यदि लक्ष्य नहीं है तो कुछ भी नहीं है। जिसके लिए हम आए हैं उस पर मेरा लक्ष्य है कि नहीं, यदि उसके लिए लक्ष्य नहीं है तो जिसमें हम जी रहे हैं,जिसे हम देख रहे वह अलग वस्तु है। जिसे हम देख रहे हैं उसे कोई भी नहीं चाहता, दिखने वाली वस्तु में आकर्षण नहीं होता। जो दिखती नहीं है उसे दुनिया चाहती है। जैसे खाने का स्वाद दिखाई नहीं देता आता है। फूलों की सुगंध दिखाई नहीं देती आती है। इसे सब चाहते हैं।

आचार्य श्री ने कहा कि जब थकान भरी नींद आती है तो सभी बिस्तर में स्थिर हो जाते हैं। ऐसे ही जो ध्यान में होता है वह स्थिर होता है। जो ध्यान शुन्य होता है वह करवटें बदलता रहता है। आत्मा का आनंद निर्गन्थ मार्ग पर है। भगवान ने कहा इसलिए सत्य है ऐसा नहीं। सत्य है इसलिए भगवान ने कहा है। सत्य को मानने वाला भगवान बन सकता है। भगवान को मात्र मानने वाला भटक सकता है। संसार में सत्य पर चलने वाला, सत्य पर जीने वाला, सत्य कहने वाला,सत्य स्वीकार शिकार करने वाला ही भगवान बनता है।

विशुद्ध वर्षा योग चातुर्मासिक समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी,महामंत्री राकेश बाकलीवाल में बताया कि सुबह और दोपहर में कार्यक्रम की शुरुआत सर्वप्रथम मंगलाचरण से हुई। सुबह बाल ब्रह्मचारी विशाल भैय्या भिंड ने व दोपहर में ऋषभ जैन जयपुर ने मंगलाचरण किया। दीप प्रज्वलन दिगंबर जैन महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री गजेंद्र पाटनी कुनकुरी,ललित सेठी गया, विसु भैय्या जबलपुर,अशोक पाटनी वैशाली नगर,पीयूष भाटापारा, फणीराज मुड़बद्री,भाटापारा से आए सभी भक्तों ने किया। मुनि प्रणव सागर का प्रवचन हुआ। श्रीफल एवं अर्घ्य समर्पण विजय कुमार नेहरू नगर, जज पंकज जैन, आशु जैन, हरीश अग्रवाल रायपुर, मनीषी विद्वान निर्मल जी, विदिशा, उज्जैन, भोपाल, छिंदवाड़ा,सोलापुर, कुनकुरी,सिवनी, राजिम, भिलाई, दुर्ग एवं उपस्थित सभी गुरु भक्तों ने किया। दोपहर के विशेष कार्यक्रम में आचर्यश्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य पदमचंद,जितेंद्र गदिया को प्राप्त हुआ। आचार्य श्री को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अशोक कुमार,प्रकाशचंद,प्रदीप कुमार सांदेलिया जबलपुर को प्राप्त हुआ। दीप प्रज्वलन सुरेंद्र पाटनी,चिरंजीलाल कासलीवाल पटना,सनत गंगवाल,पवन रारा,अभिषेक जैन उज्जैन, पूनम जैन जयपुर ने किया। मंच का संचालन अरविंद जैन व दिनेश काला ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति की गई।



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