व्यर्थ की कवायद हैं एग्जिट पोल

Posted On:- 2024-10-16




- प्रमोद भार्गव

निर्वाचन आयोग ने 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र और 81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में चुनाव की घोषणा कर दी है। महाराष्ट्र में एक चरण में 20 नवंबर को मतदान होगा। जबकि झारखंड में दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा। नतीजे 23 नवंबर को घोषित होंगे। साथ ही 15 राज्यों की 48 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर 13 एवं 20 नवंबर को उपचुनाव होंगे। इनके नतीजे भी 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। केरल की चर्चित लोकसभा सीट वायनाड से कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को उम्मीदवार घोशित कर दिया है। यह सीट यहीं से चुने गए राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद खाली हुई है। राहुल वायनाड के साथ रायबरेली से भी चुनाव लड़े थे। दोनों जगह पर उन्होंने जीत हासिल की थी। इसलिए एक जगह से इस्तीफा देना जरूरी था। इन चुनावों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने एग्जिट पोल पर देश के मीडिया को आत्मचिंतन करते हुए जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत जताई है। साथ ही उन्होंने ईवीएम को मतदान के लिए पूरी तरह सुरक्षित बताया है। 

दरअसल उन्हें यह सफाई इसलिए देनी पड़ी, क्योंकि जम्मू-कष्मीर और हरियाणा के परिणाम घोशित होने के बाद से ही एग्जिट पोल के आधार पर ईवीएम पर सवाल उठने लगे थे। इस बावत राजीव कुमार ने दो टूक कहा कि ‘एग्जिट पोल बेमतलब है। उनका कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि हाल के चुनावों में जो रुझान टीवी चैनलों पर षुरू में दिए गए वे पूरी तरह आधारहीन थे। जब आयोग की वेबसाइट पर साढ़े 9 बजे पहला रुझान दिया जाता है तो फिर टीवी चैनल मतगणना षुरू होने के 10-15 मिनट के भीतर कैसे रुझान षुरू कर सकते हैं ? इसका नतीजा यह होता है कि ये रुझान भी एग्जिट पोल की तरह गलत साबित होते है। हो सकता है कि संवादाता मतदान केंद्र के आसपास खबरें जुटाते हों, लेकिन उनकी खबरें जल्दी ही एकदम उलट कैसे जाती हैं। इसका मतलब है कि चैनल ऐसे रुझान दिखाकर सिर्फ अपने एग्जिट पोल को सही ठहराने का प्रयास करते है।‘ वाकई 2024 के लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल अनुमानों के विपरीत निकले। ज्यादातर सर्वेक्षण एजेंसियों ने राजग गठबंधन को बड़े बहुमत से आने का दावा किया था। लेकिन स्वयं भाजपा 240 सीटों पर सिमट गई है। यानी उसे स्वयं लोकसभा में बहुमत नहीं मिला। इधर हाल ही में जम्मू-कष्मीर और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल के अनुमान उल्टे पड़े हैं। हरियाणा में अनुमान कांग्रेस की भारी बहुमत से जीत दिखा रहे थे, लेकिन भाजपा ने 49 सीटें जीतकर स्पश्ट बहुमत हासिल कर लिया। अतएव विपक्ष ने एग्जिट पोल के आधार पर हरियाणा के नतीजों पर ईवीएम के जरिए सवाल खड़े कर दिए। विडंबना है कि विपक्ष वहां तो हल्ला करता है, जहां से उसे हार का सामना करना पड़ता है, लेकिन वहां षांत रहता है, जहां से उसे जीत मिलती है। एक तरह से यह दोगले पन की राजनीति है।      

ढाई माह चले लोकसभा के चुनावी यज्ञ में मतदाताओं ने सात चरणों में तेज गर्मी के बावजूद अपने मत की आहुतियां दीं थीं। हालांकि 2019 की तुलना में सभी चरणों में मतदान कम रहा था। अकसर कम मतदान को चुनावी विष्लेषक सत्तारुढ़ दल के विरोध में मतदाता का होना बताते हैं। यही अनुकरण एग्जिटपोल करते हैं। इसीलिए मतदान के बाद एग्जिट पोल सर्वेक्षणों के खुलासे ने साफ कर दिया था कि राश्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मोदी व अमित षाह की युगल जोड़ी जमीन पर रणनीतिक सफलता हासिल करने जा रही है। इस बार मोदी की आक्रामक षैली ने हिंदु वोटों को पूरे देष में जबरदस्त ढंग से धु्रवीकृत करने का काम किया है। जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल चुनाव के दौरान भी मुस्लिम तुश्टिकरण की राजनीति का खेल खेलते रहे। आंध्रप्रदेष और कर्नाटक में पिछड़े वर्ग के कोटे में मुसलमानों को आरक्षण देना महंगा पड़ा दिखाई देता है। मोदी ने इस मुद्दे को उछालकर न केवल इन प्रांतों में बल्कि पूरे देष में पिछड़े और अतिपिछडों को अपने संवैधानिक अधिकार के प्रति सचेत कर दिया है। नतीजतन इस वर्ग के मतदाताओं ने राजग को झोली भरकर वोट दिए हैं। इस मुद्दे को मोदी ने बंगाल में भी भुनाया है। इसी का परिणाम है कि 2019 में मिलीं 18 सीटों की तुलना में भाजपा को यहां 21 से 28 सीटें मिलने तक का अनुमान बताया था। राम मंदिर, धारा-370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों ने सभी वर्ग के मतदाताओं को लुभाया है। दूसरे लाडली बहना, मुफ्त राषन, मुफ्त आवास, हर घर में नल से जल, स्वास्थ्य लाभ के लिए आयुश्मान योजना और स्त्री सुरक्षा के लिए षौचालय जैसी योजनाओं से मिले लाभ के चलते ग्रामीण मतदाता राजग के पक्ष में खुला खड़ा दिखाई दिया है। स्त्री मतदाता मोदी को चुनने में आगे दिखाई दे रही हैं। परंतु परिणाम आने के बाद सच्चाई से अवगत होने पर पता चला कि मीडिया की ये मुनादियां गलत साबित हुईं।   

2019 की तुलना में मतदान कम रहने के बावजूद औसत मतदान 62 प्रतिषत से ऊपर रहा था। ये सर्वे यदि 4 जून को आने वाले वास्तविक नतीजों पर खरे उतरते तो राजग गठबंधन स्पश्ट बहुमत में आ जाता। यही नहीं ऐसा होता तो लोकसभा में बहुमत के लिए राजग को सहयोगियों की जरुरत नहीं पड़ती। ये अनुमान जता रहे थे कि दलित, वंचित और वनवासी मतदाताओं का जातिगत मतदान से मोहभंग हो रहा है और वे क्षेत्रीय संकीर्णता से मुक्त हो रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में इन्हीं वर्ग से रामनाथ कोविंद और द्रोपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाया जाना भी भाजपा के पक्ष में परिणाम का जाना बता रहे थे।


एग्लिट पोल के चुनावी विषेशज्ञ यह भी घोशित कर रहे थे कि धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों पर सनातन- सांस्कृतिक राश्ट्रवाद हावी रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के प्रमुखों ने रामलला की प्राण-प्रतिश्ठा का आमंत्रण ठुकराने का असर भी मतदाता पर पड़ा है। गोया लगता है, अब छद्म धर्मनिरपेक्षता का आवरण टूट रहा है। केवल बंगाल में ममता बनर्जी मुस्लिम मतदाताओं के तुश्टिकरण के इस छल का सहारा ले रही हैं। गौरतलब है कि इस बार बंगाल को फोकस करके भाजपा ने हमलावर रणनीति अपनाई है। नतीजतन जो वामपंथी एक समय कंधे पर लाल झंडा उठाए गौरव का अनुभव करते थे, वे भाजपा में शामिल होकर केसरिया झंडा थामे, जय-जय श्रीराम के नारे लगा रहे हैं। इन वामपंथियों ने जहां भाजपा को ताकत दी है, वहीं कम्युनिश्टों के रहे इस गढ़ को नेस्तनाबूद करने का काम भी कर दिया है। एक बार फिर यह मिथक बनता दिखाई दे रहा है कि उत्त्र प्रदेष की राजनीतिक जमीन से ही प्रधानमंत्री का पद सृजित होगा। इसी मिथक को पुनसर््थापित करने के लिए मोदी बनारस से चुनाव लड़े हैं। मोदी की यहां आमद ने पूरे पूर्वांचल को भगवा रंग में रंग दिया है। नतीजतन भाजपा यहां सर्वेक्षणों के अनुसार अच्छी स्थिति में है। स्पष्ट लग रहा है कि जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। किंतु परिणाम के बाद हमने देखा कि उप्र और बंगाल में मतदाता ने भाजपा को बड़ा झटका दिया और एग्जिट  पोल के अनुमान धराषायी हुए। इससे लगता है कि राजीव कुमार ठीक ही कह रहे हैं कि एग्जिट पोल व्यर्थ की कवायद है। 



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