आशीष तिवारी (संपादक)
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ध्वनि प्रदूषण से प्रजनन व संचार में अवरोध

Posted On:- 2022-07-19




-सुदर्शन सोलंकी

ध्वनि प्रदूषण सभी तरह के जीवों जैसे पक्षियों, मछलियों, स्तनधारियों, उभयचरों और सरीसृपों सहित सभी प्रजातियों के व्यवहार को परिवर्तित कर रहा है। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण कई जीवों के प्रजनन व संचार में बाधा उत्पन्न हो रही है। जिसके परिणाम स्वरूप कई प्रजातियों के सामने एक बार फिर अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट उत्पन्न हो गया है।

क्वींस युनिवर्सिटी बेलफास्ट ने अपने अध्ययन से पता लगाया है कि मानव द्वारा ध्वनि प्रदूषण करने से जीवों के ज़रूरी संचार संकेतों में अवरोध उत्पन्न हो रहा है, इस वजह से जीव एक-दूसरे से बेहतर तरीके से संपर्क स्थापित अथवा बातचीत नहीं कर पा रहे हैं। एक-दूसरे से संपर्क स्थापित न होने से यह उनके लिए बड़ा खतरा बन रहा है जिसमें उनकी जान तक जा सकती है।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार इंसानों की वजह से समुद्र में भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इसमें समुद्रों में तेल और गैस के लिए बढ़ती गतिविधियां और भूकंपीय सर्वेक्षण के लिए किए गए विस्फोट सम्मिलित हैं। इस शोर से प्राकृतिक ध्वनियां खो जाती हैं या परिवर्तित होती जा रही हैं। इसका असर छोटी झींगा से लेकर हज़ारों किलो वज़नी व्हेल पर भी पड़ रहा है। अधिकांश जलीय जीव अपने मार्ग के लिए ध्वनि पर निर्भर होते हैं। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण के कारण वे अपने मार्ग से भटक जाते है एवं कई बार इस तरह के शोर से जीव बहरे तक हो जाते हैं।

चमगादड़ और उल्लू अपने शिकार को उनकी आवाज से खोजते हैं। किंतु ध्वनि प्रदूषण के कारण उन्हें उनकी आवाज़ को सुनने में परेशानी होती है जिसकी वजह से वे अपना शिकार खोजने और भोजन जुटाने में अधिक समय लगा रहे हैं, जिससे समय पर भोजन न मिल पाने के कारण इनकी संख्या में कमी हो रही है।

जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के शोधार्थियों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार ध्वनि प्रदूषण से पक्षियों का जीवन अत्यधिक प्रभावित हो रहा है। उनमें प्रजनन की शक्ति घट रही है और साथ ही उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। शोधकर्ताओं ने ज़ेब्रा फिंच नाम के पक्षी पर अध्ययन किया और पाया कि ट्रैफिक के शोर से उनके रक्त में सामान्य ग्लूकोकार्टिकॉइड प्रोफाइल में परिवर्तन हुआ है और उनके बच्चों का आकार भी सामान्य चूज़ों से छोटा रहा। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि ट्रैफिक के शोर की वजह से पक्षियों के गाने-चहचहाने पर भी असर पड़ता है। यह अध्ययन कंज़र्वेशन फिजि़योलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।


कई पक्षी प्रवास के दौरान ध्वनि प्रदूषित क्षेत्रों में नहीं जाते हैं। वे अपने बच्चों को पालने के लिए कम प्रदूषित क्षेत्रों की ओर प्रवास करना पसंद करते हैं और वहां अपने बसेरे का निर्माण करते हैं। इस तरह के प्रवास के कारण प्रजातियों के वितरण में असमानता हो रही है।

स्पष्ट है कि जीवों के लिए प्राकृतिक ध्वनियां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन प्राकृतिक ध्वनियों के माध्यम से वे अपने जीवन को चलाते हैं, आगे बढ़ाते हैं व सुरक्षित बनाए रखते हैं। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से इन जीवों का अस्तित्व ही संकट में आ गया है। इसलिए ज़रूरी है कि मानव ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करें; जैसे कि जहाज़ के प्रोपेलर को कम आवाज़ करने वाला बनाएं; ड्रिलिंग के लिए ऐसी तकनीक का उपयोग करें जिससे कम से कम कंपन हो और पानी में बुलबुले न बनें; नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दें जिससे तेल और गैस के लिए ड्रिलिंग करने की ज़रूरत कम पड़े; सड़क पर होने वाले शोर को कम करने के लिए ध्वनि अवरोधक, वाहनों की तेज़ गति पर प्रतिबंध, सड़क के धरातल में परिवर्तन तथा टायरों की डिजाइन में परिवर्तन किया जाए। कम शोर करने वाले जेट इंजनों से भी कुछ हद तक वैमानिक शोर को कम किया जा सकता है। इसके अलावा औद्योगिक उपकरणों में ध्वनि अवरोधक लगाकर काफी हद तक ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित कर जीवों को सुरक्षित रहने दिया जा सकता है।
-स्रोत फीचर्स



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