देश की सबसे पुरानी व सबसे बड़ी पार्टी है कांग्रेस,स्वाभाविक है कि उसके नेताओं का अपना एक इगो होता है।माना जाता है जितनी पुरानी पार्टी होती है, उसका इगो भी उतना ही बड़ा होता है।जिसका बड़ा इगो होता है, उसके लिए हार को सहज स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए कांग्रेस हार को सहज स्वीकार नहीं करती है।वह मानती नहीं है कि उसके प्रत्याशी में कोई कमी है, उसके चुनाव प्रचार में कोई कमी है,वह नहीं मानती है जो उसका वोटबैंक था, वह दूसरी तरफ शिफ्ट हो गया है। वह हार जाए तो मानती है कि वह तो हार ही नहीं सकती थी, उसे तो गड़बड़ी करके हराया गया है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस तीसरी बार बुरी तरह हारी, लेकिन कुछ सीटें बढ़ जाने का जश्न उसने ऐसे मनाया जैसे उसकी बहुमत वाली सरकार बन गई है। यह ठीक है कि भाजपा की बहुमत वाली सरकार नहीं बनी लेकिन एनडीए की तो बहुमत वाली सरकार बन गई।पिछले एक दो दशक से विपक्ष भाजपा को हराना चाहता है लेकिन हरा नहीं पाता है क्योंकि विपक्ष तो अपनी सीटें जीत जाता है, कांग्रेस ही ज्यादा सीटें नहीं जीत पाती है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष के कारण ही सीटें बढ़ी, वर्ना कांग्रेस की सीटें देखी जाए तो वह तो पहले की तरह ४०-५० तक ही सीमित रह गई। लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें विपक्ष ने बढाई लेकिन उसको वहम था कि यह तो उसके नेता के कारण हुआ है।
राहुल गांधी के कारण हुआ है,कांग्रेस यह तो स्वीकारती है कि राहुल गांधी के कारण उसकी सीटें बढ़ी हैं लेकिन वह यह नहीं स्वीकारती है कि राहुल गांधी में चुनाव जिताने की क्षमता न होने के कारण वह लोकसभा चुनाव ही नहीं विधानसभा चुनाव भी हार जाती है। हरियाणा विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है, माना जा रहा था कि यह चुनाव तो कांग्रेस आसानी से जीत रही है, राहुल गांधी यह चुनाव जिता रहे हैं लेकिन रिजल्ट आया तो पता चला कि राहुल गांधी और कांग्रेस तो जीती हुई बाजी हारने में माहिर हैं। लोकसभा चुनाव में अपनी हार के लिए कांग्रेस ने कहा था कि चुनाव आयोग ने अगर निष्पक्ष चुनाव कराया होता तो कांग्रेस चुनाव हार ही नहीं सकती थी,यानी कांग्रेस ने कहा कि उसे चुनाव आयोग ने हराया है। हरियाणा में भी उसने यही कहा कि चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव नहीं कराया,कई तरह की शिकायते की जिसे चुनाव आयोग ने निराधार बता दिया।
तो कांग्रेस अपनी हार स्वीकारती नहीं है क्योंकि अपनी हार स्वीकार करने का मतलब होता है कि भाजपा ने उसे हराया है,उससे ज्यादा बेहतर ढंग से चुनाव लड़कर हराया है। यानी भाजपा से कांग्रेस चुनाव जीत नहीं पाती है।इसलिए वह हार को स्वीकार नहीं करती है, उसके लिए कई कारण व बहाने गिनाने लगती है। अब दो राज्यों महाराष्ट्र व झारखंड सहित कई राज्यों में विधानसभा व लोकसभा के उपचुनाव भी हो गए हैं।२० नवंबर को सभी के लिए मतदान हो गया है।अब २३ को रिजल्ट आना है।चुनाव में मतदान से लेकर मतगणना तक हर तरह की गड़बड़ी रोकना उसकी जिम्मेदारी है।
रायपुर में उपचुनाव हो रहा है तो उसमें किसी तरह की गड़बड़ी न हो इसके लिए कांग्रेस जो जो सावधानी बरत सकती है, बरत रही है। यानी मतदान उसके नेताओं के समान हुआ है, मतगणना भी उसके नेताओं के सामने होगी।जो भी गड़बड़ी होनी है, वह कांग्रेस नेताओं के सामने होनी है तो उसे रोकना भी तो उनकी ही जिम्मेदारी है, हमेशा कांग्रेस अपनी कमी खामी पर ध्यान नहीं देती है और हार जाने पर ईवीएम, चुनाव आयोग को दोषी ठहरा देती है।हमेशा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस हार के कारणों का पता लगाने के लिए समिति का गठन जरूर करती है ताकि पता चल सके कि उसकी हार के हार के क्या कारण हैं लेकिन तात्कालिक से वह हार के लिए अपने को दोषी नहीं मानती है,वह मानती है कि उसे भाजपा हरा नहीं सकती, उसे भाजपा हराती है तो गड़बड़ी करके हराती है।२०१४ के लोकसभा चुनाव में सत्ता में कांग्रेस थी,चुनाव आयोग पर उसका नियंत्रण था, फिर वह कैसे हार गई क्योंकि भाजपा उसको हरा सकती थी, इसलिए हराने में सफल रही। कांग्रेस अपनी हार न स्वीकारे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि सारा देश जानता है कि चुनाव किसने जीता है और क्यों जीता है और चुनाव कौन हारा है और क्यों हारा है।
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