- डॉ. संजय वर्मा
करीब दो साल से यूक्रेन से युद्ध में उलझे रूस से यह खबर मिलना हर किसी को विस्मित कर सकता है कि उसने कैंसर जैसे गंभीर मर्ज के खिलाफ एक टीका (वैक्सीन) विकसित कर लिया है। इसका ऐलान खुद रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर ने किया है। रूस के सरकारी मीडिया से मिली इस खबर के आरपार जाएं, तो सवाल उठ सकता है कि आखिर यह टीका कितना असरदार है। इसकी असली परीक्षा तभी होगी, जब बाकी दुनिया को इसके परीक्षण का मौका मिलेगा। लेकिन फिलहाल के दावे के मुताबिक वर्ष 2025 से यह टीका सभी रूसी नागरिकों के लिए मुफ्त में उपलब्ध हो जाएगा।
यह देखते हुए कि भारत समेत पूरी दुनिया को लंबे अरसे तक तकरीबन लाइलाज मानी जाती रही और फिर काफी जटिल चिकित्सा के सहारे कुछ हद तक इससे मुक्ति मिलने लगी है, यहां पहला सवाल टीके की विश्वसनीयता का ही उठ सकता है। एक तरफ जहां हमारे देश में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू हाल में अपनी पत्नी का भोजन बदलकर प्रभावी आयुर्वेदिक इलाज का दावा कर चुके हैं, लोग पूछ सकते हैं कि क्या रूसी टीका इतना भरोसेमंद होगा कि अगर वह यहां उपलब्ध हुआ, तो आंख मूंदकर लगवा लिया जाए।
इस संदर्भ में एक उदाहरण देना प्रासंगिक होगा। कोविड-19 महामारी के तेज वैश्विक प्रसार के दौरान रूस ने वैक्सीन-स्पुतनिक वी का निर्माण किया था, तो खुद सबसे पहले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह टीका लगवाया था। हो सकता है कि इस बार भी पुतिन कुछ ऐसा ही करिश्मा करें और तब दुनिया इस पर यकीन करने लगे कि असाध्य कहलाने की श्रेणी में आने वाली कैंसर नामक बीमारी का आसान तोड़ आखिरकार मिल ही गया है। वैसे यहां उल्लेखनीय यह है कि एक शोध समाचार वेबसाइट- ‘द साइंटिस्ट’ के मुताबिक करीब डेढ़ दशक पहले न्यूयॉर्क स्थित एक बायोटेक कंपनी ने अप्रैल, 2008 में घोषणा कर दी थी कि उसे रूस में पहली चिकित्सकीय कैंसर वैक्सीन बनाने के लिए मंजूरी मिल गई है। इसे किसी देश के कैंसर रोकथाम नियामक द्वारा दी गई पहली मंजूरी माना गया था। हालांकि, बाद के दो दशकीय अंतराल में यह नहीं पता चला कि कैंसर टीके के विकास के काम का क्या हुआ। लेकिन इसी साल फरवरी, 2024 में मॉस्को फोरम ऑन फ्यूचर टेक्नोलॉजी प्रोग्राम के दौरान रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने आश्वासन दिया था कि उनके वैज्ञानिक जल्दी ही दुनिया को कैंसर का टीका उपलब्ध करा देंगे। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि ये टीके रूस के बाहर कब से मिलेंगे और कैंसर के किन प्रकारों की रोकथाम करेंगे।
जहां तक इस टीके के निर्माण की प्रक्रिया (बनावट) की बात है, तो यह एमआरएनए (यह एक अणु है जो डीएनए से विशिष्ट निर्देश प्राप्त करता है) किस्म की वैक्सीन है। असल में, इस किस्म के पारंपरिक टीके बनाने में बीमारी की रोकथाम के लिए उसी वायरस या मर्ज के रोगाणुओं का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे खुद वह बीमारी पैदा होती है। अंतर सिर्फ यह है कि ऐसा करते वक्त कैंसर कोशिकाओं की सतह से उन हानिरहित प्रोटीन को उठाकर अलग किया जाता है, जिन्हें एंटीजन के रूप में जाना जाता है। ये एंटीजन टीके के निर्माण की प्रक्रिया में चिकित्सकीय परीक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) के दौरान इंसानी शरीर में प्रविष्ट कराए जाते हैं और तब इनके सहारे बीमारी के खिलाफ कारगर एंटीबॉडी विकसित करने हेतु शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित किया जाता है। एमआरएनए टीके में संदेशवाहक की भूमिका में आए आरएनए के एक छोटे टुकड़े का उपयोग किया जाता है, जिससे शरीर की कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं से संबंधित एक विशिष्ट प्रोटीन का उत्पादन करने का निर्देश मिलता है। याद रहे कि कोविड महामारी से लड़ने के लिए इस्तेमाल में लाई गई वैक्सीन कोविशील्ड इसी किस्म का टीका था।
वैसे, कैंसर से बचाव और रोकथाम की दिशा में टीका बनाने की कोशिश करने वाले देश के रूप में रूस अकेला नहीं है। ब्रिटेन और जर्मनी समेत कई अन्य देशों में बायोटेक कंपनियां कैंसर के खिलाफ कारगर दवाएं और टीके विकसित करने में जी-जान से लगी हुई हैं। जैसे ब्रिटिश सरकार जर्मनी की मशहूर फार्मा कंपनी बायोनटेक के साथ मिलकर कैंसर के उपचार के लिए वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल कर रही है। उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक करीब 10 हजार कैंसर मरीज लाभान्वित हो सकते हैं। उधर अमेरिका की मॉडर्ना और मर्क फार्मा कंपनी त्वचा कैंसर की एक प्रायोगिक वैक्सीन पर काम कर रही हैं, जिसके शुरुआती नतीजे सकारात्मक बताए जा रहे हैं। अध्ययन से जुड़े दावों के मुताबिक इस टीके ने तीन साल के इलाज के बाद त्वचा कैंसर के एक घातक रूप – मेलेनोमा के कारण होने वाली मौतों की आशंका को घटाकर आधा कर दिया है। इन टीकों के अलावा छह अन्य कैंसर टीकों पर भी काम चल रहा है जो ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) की रोकथाम कर सकते हैं। ये टीके वायरस सर्विकल (गर्भाशय) कैंसर समेत कुछ अन्य प्रकार के कैंसर रोगों से बचाव कर सकते हैं।
एक और उदाहरण कैंसर की एओएच1996 नामक दवा के मानव परीक्षण (इंसानी ट्रायल) का है, जो पिछले साल सितंबर, 2023 से अमेरिका में शुरू किया गया है। इस दवा का नाम 1996 में जन्मी लड़की आना ओलिविया हीली से प्रेरित है, जिसे न्यूरोब्लास्टोमा नाम का बच्चों को होने वाला कैंसर था और इसी से 2005 में नौ साल की उम्र में उसकी मौत हो गई थी। पेट, छाती और गले की हड्डियों में होने वाले कैंसर से बचाव और रोकथाम में मददगार इस दवा का नाम ओलिविया को श्रद्धांजलि के रूप में रखा गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह दवा शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना ही कैंसर के ट्यूमर को जड़ से खत्म कर सकती है।
कैंसर के खिलाफ रूसी टीके को भारत में बड़ी आस से देखने की बड़ी वजह इस देश का कैंसर की राजधानी बनते जाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 10 भारतीयों में से 1 को अपने पूरे जीवनकाल में कैंसर विकसित होने की आशंका है, जो एक गंभीर बात है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद- राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम का आकलन बताता है कि वर्ष 2022 में भारत में कैंसर के मामलों की संख्या 14 लाख से अधिक थी, जिसके अब जल्द ही वर्ष 2025 में बढ़कर 15.7 लाख हो जाने की अाशंका है। वर्ष 2022 में कैंसर के जो नए मामले सामने आए थे, उनमें से 7.22 लाख महिलाओं में जबकि 6.91 लाख पुरुषों में कोई न कोई कैंसर पाया गया।
भारत में 2022 में 9.16 लाख मरीजों की कैंसर से मौत हुई। ये आंकड़े भारत में कैंसर रोग की वैश्विक राजधानी साबित करते हैं। स्वास्थ्य जर्नल– द लैंसेट के शोधकर्ताओं ने पाया है कि हर साल तंबाकू के सेवन से भारत, चीन, ब्रिटेन, ब्राजील, रूस, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में ही 13 लाख मौतें हो रही हैं। यह संख्या कुल कैंसर मौतों की आधी है। हालांकि इसका अकेला गंभीर पीड़ित भारत नहीं है। दुनिया में हर छठवीं मौत के लिए कैंसर को जिम्मेदार माना जाता है। इसमें अमीर-गरीब का फर्क भी नहीं है। इसी साल की शुरुआत में ब्रिटेन के 75 वर्षीय राजा चार्ल्स के कैंसरग्रस्त होने का पता चला है। ऐसे में, रूसी टीका भारत समेत पूरी दुनिया को अगर मिल सका तो इसके सहारे रूस की सॉफ्ट पावर में हुआ इजाफा हर किसी को उसका मुरीद बना सकता है।
(लेखक मीडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
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