जीवन की सबसे बड़ी सफलता है हर दिन को सार्थक करना : ललितप्रभ महाराज

Posted On:- 2022-07-19




रायपुर (वीएनएस)। ‘‘जरा सोचें, सालभर में सबसे अच्छा दिन कौन सा है। तो वह है आज का दिन। आज के दिन का जितना सदुपयोग कर सकें कर लें। क्योंकि आज का दिन प्रभु का दिया प्रसाद है। जो दिन बीत गया वो अतीत है, जो दिन आने वाला है, वह भविष्य का स्वप्न है। सिर्फ और सिर्फ आज का दिन ही आपका अपना है। एक बात मान कर चलना जो कर्मशील है, जिसे परमात्मा पर विश्वास है उसके लिए सप्ताह के सातों दिन अच्छे हैं। कभी कोई अच्छा काम कल पर मत छोड़ें, उसे आज ही कर लें। अपने जीवन के हर पल का सार्थक उपयोग करें। रात को जब सोएं तो यह चिंतन करें कि आज के दिन का मैंने कितना सार्थक और सकारात्मक उपयोग किया। असल में आदमी की उम्र वह नहीं होती, जितने दिन वह जीता है, आदमी की उम्र वह होती है जितने दिनों को वह सार्थक बनाकर जीता है।’’

ये उद्गार ललितप्रभ सागर महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला ’ के अंतर्गत युवाओें के लिए जारी व्यक्तित्व विकास सप्ताह के द्वितीय दिवस मंगलवार को कहीं। ‘लाइफ मैनेजमेंट: सफल जीवन की नींव’ विषय पर जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा- आदमी यदि अपने जीवन का सही मैनेजमेंट करना सीख लेता है तो वह एक ही जीवन में सौ-सौ जीवन के बराबर कार्य करने में सक्षम हो सकता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में अगर सबसे बेशकीमती यदि कोई चीज है तो वह है आदमी की अपनी जिंदगी। जिसके सामने दुनिया का कोई वैभव नहीं टिक सकता। अगर जिंदगी है तो इस पूरी दुनिया का महत्व है। इस पूरी दुनिया की कीमत कितनी-आंख बंद करो जितनी।  रात को सोते हुए देखे सपने सुबह आंख खुलते ही टूट जाया करते हैं और दिन के उजाले में देखे हुए सपने तब टूटते हैं जब आंख सदा के लिए बंद हो जाया करती है। ‘जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए। अपने आप-पर हमें विश्वास होना चाहिए।  जीवन में खुशियों की कमी नहीं है, बस उन्हें मनाने का अपना अंदाज होना चाहिए।’

यह जीवन परम पिता का दिया वरदान है:
उन्होंने आगे कहा- आदमी अगर जीवन को बेहतरीन तरीके से जीना सीख ले तो इससे बड़ा कोई स्वर्ग नहीं हो सकता। हमारा जीवन परम पिता परमेश्वर का दिया वरदान है। हम इसे अभिशाप बनाते हैं या विशाद बनाते हैं या इसे प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं, तय हमें करना है। कोई आपको बुरा कह रहा है, आप पर टिप्पणी कर रहा है तो बुरा मत मानिए। क्योंकि जिसकी जिंदगी कुछ खास होती है, उसी पर लोग टिप्पणी करते हैं। लोग फलों से लदे हुए पेड़ पर पत्थर मानते हैं, सूखे ढूंढ पेड़ पर नहीं मारते। याद रखना, टेढ़ा बोलने से आदमी के रिश्ते टूटते हैं और आदमी का दिल भी टूटता है।
 
सफलता के लिए ही नहीं सार्थकता के लिए भी जिएं
संतप्रवर ने कहा कि जीवन के हर दिन को सार्थक करना यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। रोज हम दो तरह का जीवन जीते हैं- एक सफल और दूसरा सार्थक जीवन। रोजमर्रा की उदरपूर्ति, परिवार के पालन-पोषण, रहन-सहन के लिए जीना सफल जीवन है और अपनी आत्मा के लिए, जीव के कल्याण के लिए, भव-भव के निस्तार के लिए जीना, भलाई व नैतिकता का कार्य करना यह सार्थक जीवन है। आपको क्या लगता है सफलता वाली जिंदगी ज्यादा काम की लगती है या सार्थकता वाली। चिंतन करें, अंतत: मन यही कहता है- जीव तेरी सफलता यहीं रह जाएगी, केवल सार्थकता ही साथ जाएगी। आज से अपने-आपको मोटिवेट कीजिए कि मैं अपनी जिंदगी में केवल सफलता के लिए ही नहीं जीऊंगा, सार्थकता के लिए भी जीऊंगा। जीवन में पहला मंत्र यह जोड़ लें- आज का दिन ही सबसे अच्छा दिन है। जैसे आप अपने बही-खाते में शुभ-लाभ लिखते हैं वैसे ही दूसरा मंत्र अपने जीवन के खाते में लिख लें- ‘शुभ कर्म। ’
 
जीवन की सबसे बड़ी भूल है समय का अपव्यय करना
संतश्री ने कहा कि अगर कल कोई शुभ कर्म नहीं किया तो आज जरूर शुभ कर्म करने का संकल्प ले लें। जिंदगी का यह नियम बना लें कि आज का दिन जो मिला है, उसका मैं सार्थक उपयोग करुंगा। ‘जिन घड़ियों में हंस सकते हैं, उन घड़ियों में रोएं क्यूँ, आज के दिन हम हंस सकते हैं तो कल के लिए रोएं क्यूँ।’ हताशा-निराशा में जीना यह जीवन की सबसे बड़ी हार है। आदमी का सद्ज्ञान ही उसके जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है। और जीवन की सबसे बड़ी ताकत है-पे्रम की ताकत। जीवन की सबसे बड़ी भूल है समय का अपव्यय करना। हो सके तो यह संकल्प कर लें कि मैं अपने जीवन के हरेक सेकंड का सदुपयोग करुंगा।

हमारी भारतीय संस्कृति में विद्वत मनीषियों ने जीवन को सफल-सार्थक बनाने चार भागों अर्थात् आश्रमों में विभक्त करने की शिक्षा दी। पहले भाग को शिक्षा-संस्कार के लिए रखा, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा। दूसरा भाग पत्नी-बच्चों, परिवार के लिए रखा जिसे गृहस्थ आश्रम कहा, तीसरा भाग रखा अध्यात्म साधना के लिए, जिसे वानप्रस्थ आश्रम कहा और चौथा जीवन का भाग आत्म कल्याण व मुक्ति के लिए रखा, जिसे कहा गया संन्यास आश्रम। इन चारों आश्रमों का सही ढंग से अनुकरण करना यही जीवन का प्रबंधन है, लाइफ मैनेजमेंट है। कहा गया है कि बचपन में जमकर पढ़ाई करो तो जवानी सुख से जीओगे, जवानी में जम के कमाई करो तो बुढ़ापा सुख से जीओगे और बुढ़ापे में जमकर पुण्याई करो तो अव्यावात सुख मिलेगा।
 
संत प्रवर ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने कमाए हुए धन का भी मैनेजमेंट चार भागों में विभक्त करके करना चाहिए। धन का पहला भाग बच्चों के लिए, दूसरा भाग धर्मपत्नी के लिए, तीसरा हिस्सा जीवन के आवश्यक संसाधनों के लिए और चौथा हिस्सा मानवता के कल्याण-जीव दया के लिए। जीते जी रक्तदान और मरने के बाद नेत्रदान कर दो। लाइफ मैनेजमेंट कर रहे हैं तो हम अपने जीवन का उपयोग स्वास्थ्य के लिए, समृद्धि-धनार्जन के लिए, धर्म आराधना के लिए और आत्मिक आनंद के लिए इन चार के लिए करें।
 
उन्होंने कहा- लाइफ मैनेजमेंट की पहली शर्त है- सुबह जल्दी जागने आदत बना लीजिए। दूसरा कार्य सुबह-सवेरे चेहरे पर मुस्कान लाइए, तीसरा- बड़ों को प्रणाम करें, चौथा- स्नान के बाद टहलें या योग-प्राणायाम करें या स्वाध्याय अथवा ईश आराधना करें। चौथा- दिनचर्या को व्यवस्थित करने दिनभर के कार्यों को धैर्यपूर्वक नोट कर लें। पांचवा- स्वावलम्बी बनने की आदत बनाने खाना खाने के बाद अपनी थाली अपने हाथों से धोएं, छठवा- कमाने के साथ-साथ सत्कार्यों के लिए लगाना भी सीखें।

आरंभ में संत ने प्रेरक भावगीत ‘सही सोच हो सही दृष्टि हो और सही हो कर्म हमारा, बदलें जीवन धारा. बेहतर लक्ष्य बनाएं अपना ऊंचाई को जी लें, भले न पहुंचे आसमान तक मगर शिखर को छू लें. शांति और विश्वास लिए हम दूर करें अंधियारा...’ के गायन से श्रद्धालुओं को जीवन निर्माण की प्रेरणा दी।
 
आलस्य का करें त्याग: डॉ. मुनि शांतिप्रिय
धर्मसभा के पूर्वार्ध में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अगर हम चाहते हैं कि जीवन में सुख मिले, सदा आनंद रहे तो आलस्य का त्याग करना होगा। इंसान का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य-प्रमाद है। चाहे साधना हो, धर्म-आराधना हो, विद्यार्जन हो इन सबके मार्ग का सबसे बड़ा बाधक आलस्य ही है। अक्सर व्यक्ति अपने शरीर व पांच इंद्रियों का सदुपयोग नहीं कर पाता, इसीलिए वह दुखी का दुखी रह जाता है।

आज के अतिथिगण
मंगलवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण विधायक-जगदलपुर रेखचंद जैन, वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु द्विवेदी, डॉ. संदीप जैन, डॉ. रूपल पुरोहित, श्यामसुंदर बैदमुथा, नरेंद्र पारख, प्रकाशचंद कोचर, भागचंद विमलचंद पारसचंद मुणोत परिवार, श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली ने दीप प्रज्जवलित कर किया। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, स्वागत समिति के अध्यक्ष कमल भंसाली द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संत के हस्ते ज्ञान पुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया. आरंभ में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागर द्वारा नित्य मंगल प्रार्थना- भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना। अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा लेना ... से दिव्य सत्संग की शुरुआत की गई।

बुधवार को प्रवचन ‘धनवान होने के लिए कौन सा करें दान’ विषय पर
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक, दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, अमित मुणोत ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि दिव्य सत्संग महाकुंभ के व्यक्तित्व विकास सप्ताह के अंतर्गत बुधवार 20 जुलाई को सुबह 8:45 बजे से ‘धनवान होने के लिए कौन सा करें’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।



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