- कमलेश पांडे
दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीनी दबदबे को नियंत्रित करने के लिए एक आदर्श आचार संहिता लागू करने की मांग सही है, लेकिन वहां पर इसे लागू कौन करवाएगा, इस बात का उत्तर भारत समेत विभिन्न आसियान देशों के पास नहीं है। ये तो सिर्फ वकालत कर रहे हैं कि दक्षिण चीन सागर ऐसा होना चाहिए। जबकि चीन अपनी हठधर्मिता के चलते सैन्य कार्रवाई करने पर उतारू है। इसी दृष्टि से वह लगातार अपनी तैयारी पुख्ता करता जा रहा है। लेकिन उसे रोकने में संयुक्त राष्ट्र संघ भी यहां असहाय प्रतीत हो रहा है।
देखा जाए तो चाहे चीन विरोधी अमेरिका हो या चीन समर्थक रूस या फिर इनके-इनके समर्थक विभिन्न विकसित और विकासशील देश, सबकी नीति इस मामले में अभी तक ढुलमुल ही रही है। इसलिए भारत की भूमिका इस मामले में भी अहम और निर्णायक बताई जा रही है। क्योंकि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न देशों के बहुत पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध भी हैं। वहीं, वैश्विक दुनियादारी में चीन को संतुलित रखने के लिए भी भारत और आसियान देशों को एक-दूसरे की जरूरत है। इसलिए आशियान देशों के साथ भारत की निकटता जगजाहिर है।
समझा जाता है कि भारत ही अमेरिका और रूस दोनों देशों पर दबाव डालकर आसियान देशों के दक्षिण चीन सागर सम्बन्धी दूरगामी हितों की रक्षा कर सकता है। जानकारों की मानें तो चीन की विस्तारवादी नीति से न केवल भारत बल्कि आशियान देशों के विभिन्न हित प्रभावित हो रहे हैं। उधर, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की चिंता भी किसी से छिपी हुई नहीं है। हालांकि, इन देशों में अमेरिका के बाद भारत ही एक ऐसा मुल्क है जो चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा को नियंत्रित कर सकता है। इसी नजरिए से क्वाड देशों में भी भारत की भागीदारी प्रमुख है।
इधर भारत-चीन सम्बन्धों में भी 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' वाली कहावत चरितार्थ होती है। यही वजह है कि गत 25-26 जनवरी 2025 को भारत ने चीन के खिलाफ एक और बड़ी चाल चलते हुए, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में आचार संहिता लागू करने का आह्वान किया है। वहीं, इसके दूरगामी वैश्विक मायने को समझते हुए इंडोनेशिया जैसे प्रभावशाली देश ने भी भारत का साथ दिया है। उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति भारत के 76वें गणतंत्र समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। इसी दौरान हुई विभिन्न बैठकों के क्रम में उपर्युक्त आशय की सहमति बनी है।
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच भारत और इंडोनेशिया ने प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार इस क्षेत्र में ''पूर्ण और प्रभावी'' आचार संहिता लागू करने की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो के बीच गत शनिवार को हुई व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा हुई। इस बैठक में दोनों पक्षों ने भारत के हिंद महासागर क्षेत्र स्थित सूचना संलयन केंद्र (इन्फार्मेशन फ्यूजन सेंटर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की।
बता दें कि भारतीय नौसेना ने समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोगात्मक ढांचे के तहत जहाजों की आवाजाही के साथ-साथ क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण विकास पर नजर रखने के लिए वर्ष 2018 में गुरुग्राम में इन्फार्मेशन फ्यूजन सेंटर की स्थापना की थी। चूंकि आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपने व्यापक दावों को स्थापित करने के लगातार प्रयास जारी हैं।
वहीं, इस मुद्दे पर भारत की अगुवाई में चल रहे कीप एंड बैलेंस की नीति पर चीन का बौखलाना स्वाभाविक है।बीजिंग इस प्रस्तावित आचार संहिता का कड़ा विरोध करता रहा है। वह पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है, जो हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्त्रोत है। जबकि, वियतनाम, फिलीपींस और ब्रुनेई सहित कई आसियान सदस्य देशों ने चीन के इस दावे पर आपत्ति जताई है।
गौरतलब है कि एक ओर दक्षिण चीन सागर में जहां चीन अपनी सैन्य ताकत में निरंतर इजाफा करने में जुटा हुआ है, जिससे आसपास के छोटे देश भयभीत हैं। वहीं अब भारत ने चीन के खिलाफ अपनी चाल चलते हुए दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में आचार संहिता लागू करने का आह्वान किया है। सुकून की बात यह है कि भारत को इस मुद्दे पर इंडोनेशिया जैसे महत्वपूर्ण देश का भी साथ मिल गया है। जबकि दूसरी तरफ चीन इस क्षेत्र में आचार संहिता का खुलकर विरोध करता है। इसलिए दक्षिण चीन सागर से जुड़े हुए विभिन्न प्रभावित देशों के साथ-साथ भारत और अमेरिका की चिंताएं स्वाभाविक हैं।
बता दें कि अक्टूबर 2024 में भी जब पीएम मोदी ने ईस्ट एशिया सम्मेलन में हिस्सा लिया तो उन्होंने चीन पर इस बाबत निशाना साधा था। इससे एक दिन पहले आसियान-भारत सालाना सम्मेलन में भी उन्होंने चीन की तरफ इशारा करते हुए हिंद प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाईना सी को लेकर जो सारी बातें कहीं, वह इस क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपना रहे चीन को नागवार गुजर सकती है।
तब पीएम मोदी ने आसियान-भारत सालाना सम्मेलन में दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र के देशों के भौगोलिक संप्रभुता को समर्थन देकर चीन की तरफ इशारा किया था। वहीं, ईस्ट एशिया सम्मेलन में भी उन्होंने हिंद प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाईना सी को लेकर दो टूक चिताएं जताई। मोदी ने समूचे हिंद प्रशांत क्षेत्र को कानून सम्मत बनाते हुए यहां की समुद्री गतिविधियों को संयुक्त राष्ट्र के संबंधित कानून (अनक्लोस) से तय होने की मांग की और साउथ चाईना सी के संदर्भ में एक ठोस व प्रभावी आचार संहिता बनाने की भी बात कही। बता दें कि आसियान के सभी दस सदस्य देश भी इसकी मांग कर रहे हैं।
वहीं, एक दिन पहले चीन के प्रधानमंत्री ली शियांग के साथ बैठक में आसियान नेताओं ने इन मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया था। इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री ने दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में चल रहे तनाव के संदर्भ में कहा, 'विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहे संघर्षों का सबसे नकारात्मक प्रभाव ग्लोबल साउथ के देशों पर हो रहा है। सभी चाहते हैं कि चाहे यूरेशिया हो या पश्चिम एशिया, जल्द से जल्द शांति और स्थिरता की बहाली हो।'
तब पीएम मोदी ने यहां तक कहा था, 'मैं बुद्ध की धरती से आता हूं और मैंने बार-बार कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। समस्याओं का समाधान रणभूमि से नहीं, बल्कि सकारात्मक रणनीति से निकल सकता है। संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का आदर करना आवश्यक है। वहीं, मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए, डायलॉग और कूटनीति को भी प्रमुखता देनी होगी। विश्वबंधु के दायित्व को निभाते हुए, भारत इस दिशा में हर संभव योगदान करता रहेगा।'
तब मोदी ने आतंकवाद को भी वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बताते हुए मानवता में विश्वास रखने वाली ताकतों को एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया। बता दें कि इस सालाना आसियान सम्मेलन में शामिल सभी नेताओं में सबसे ज्यादा बार (नौ बार) पीएम मोदी ने ही हिस्सा लिया है। यह आसियान के मामलों में भारत की बढ़ती भूमिका को भी बताता है।
वहीं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत रविवार की शाम इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के सम्मान में डिनर आयोजित किया। इस दौरान इंडोनेशियाई राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो ने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी गणमान्य लोग खिलखिलाकर हंस पड़े।
दरअसल, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने भारत और इंडोनेशिया के बीच प्राचीन संबंधों की बात कहते हुए कहा कि हमारी भाषा के कई अहम शब्द संस्कृत भाषा से आते हैं।
बकौल इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो, 'भारत और इंडोनेशिया के आपसी संबंधों का इतिहास बेहद पुराना है। दोनों देशों की सभ्यताओं में भी गहरा जुड़ाव रहा है, यहां तक कि हमारी भाषा के कई अहम शब्द संस्कृत भाषा के हैं। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी प्राचीन भारतीय सभ्यता का प्रभाव है। यहां तक कि हमारे जीन्स यानी डीएनए में भी समानता है।' इंडोनेशियाई राष्ट्रपति ने यहां तक कहा कि 'कुछ हफ्ते पहले ही मैंने अपनी जेनेटिक्स सीक्वेंसिंग और डीएनए टेस्ट कराया। मुझे बताया गया कि मेरा डीएनए भारतीय है। सभी जानते हैं कि जैसे ही मैं भारतीय संगीत सुनता हूं, तभी मैं थिरकना शुरू कर देता हूं।'
वहीं, मासूमियत पूर्वक सुबियांतो ने आगे कहा कि मुझे यहां (भारत) आने पर गर्व है। मैं कोई खांटी राजनेता नहीं हूं, न ही अच्छा कूटनीतिकार हूं, मैं जो भी कहता हूं, दिल से कहता हूं। मुझे यहां आए हुए कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन मैंने पीएम मोदी के नेतृत्व और उनके समर्पण से काफी कुछ सीखा है। उनका गरीबी को दूर करने और कमजोर वर्ग की मदद करने के लिए जो समर्पण है, वह हमारे लिए प्रेरणा है।' इंडोनेशिया ने भारत की समृद्धि, शांति के लिए कामना की और उम्मीद जताई कि भारत और इंडोनेशिया के संबंध आगे भी मजबूत होते रहेंगे।
यही वजह है कि मोदी और सुबियांटो ने भारत-इंडोनेशिया के आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी चर्चा की। ताकि मजबूती पूर्वक दोनों देश अपने अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे को आगे बढ़ा सकें। इस दौरान उन्होंने द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के लिए पिछले वर्ष हुए समझौता ज्ञापन के शीघ्र कार्यान्वयन के महत्व पर भी बल दिया। उनका मानना है कि द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा और दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय एकीकरण गहरा होगा।
वहीं, मोदी और सुबियांटो ने आतंकवाद के सभी रूपों की कड़ी निंदा करते हुए भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प दोहराया और बिना किसी ''दोहरे मापदंड'' के इस खतरे से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया। दोनों नेताओं ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया।
इससे स्पष्ट है कि देर सबेर भारत, चीन पर दबाव बढ़ाने की अपनी रणनीति में कामयाब रहेगा। क्योंकि इस मसले पर उसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के अलावा आसियान देशों का भी साथ मिल रहा है। चूंकि रूस भारत का मित्र देश है, इसलिए उसकी तटस्थता भी भारत के लिए मायने रखेगी।
- कमलेश पांडेय
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