देश में कांग्रेस १०० साल से ज्यादा पुरानी पार्टी है और आरएसएस भी अब १०० साल हो गया है लेकिन दोनों में यह समानता है तो एक अंतर यह है कि आरएसएस १०० साल मे निरंतर बड़ा होता गया है और कांग्रेस छोटी होती गई है। कांग्रेस आजादी के बाद से जानती थी कि आरएसएस ही उसको सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि आरएसएस की जड़ें गांव गांव तक फैली हुई थी, हर क्षेत्र में आरएसएस अच्छा काम कर रही था।
आरएसएस अच्छा काम कर रहा था इसलिए देश के कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेताओं ने भी उसकी तारीफ की थी लेकिन कांग्रेस के नेताओं का एक बड़ा वर्ग था जो आरएसएस की कटु आलोचक था, वह निरंतर इस बात का प्रचार करता रहा कि आरएसएस देश के लिए नुकसानदायक है, वह सांप्रदायिक है, वह देश में हिंदू व मुसलमान करता है, देश में नफरत फैलाता है, देश में कहीं भी दंगे होते थे तो कांग्रेस उसके लिए आरएसएस को ही दोषी बताती थी। कांग्रेस में जब तक पं. नेहरू व इंदिरा गांधी जैसे बड़े नेता थे वह आरएसएस से डरते नहीं थे, क्योंकि उस वक्त देश में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं था, जनता के सामने उनका कोई विकल्प नहीं था। जनता को चुनाव में कांग्रेस को ही चुनना था।
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी कांग्रेस के बड़े नेता तो थे लेकिन देश के बड़े नेता नहीं थे, इंदिरा गांधी की मौत के कारण उऩको एक बार बहुमत मिला, उसके बाद कांग्रेस कमजोर होती गई और राजीव गांधी की मौत के बाद कांग्रेस तेजी से कमजोर हुई,यही वजह है कि १९८४ के बाद कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला और उसे साझा सरकार चलानी पड़ी। कांग्रेस जैसे जैसे कमजोर होती गई उसका यह डर बढ़़ता गया कि उसे आरएसएस ही सत्ता से हटा सकती है।अटल बिहारी बाजपेयी के वक्त भाजपा ने हटाया भी लेकिन कांग्रेस फिर सत्ता में लौट आई, वह सत्ता में तो रही लेकिन पहले जैसे मजबूत पार्टी नहीं रही।राज्यों में विपक्षी दल उसे कमजोर करता गया।
केंद्र में कमजोर होने के कारण उसे डर बढ़ता गया कि भाजपा एक दिन आरएसएस के ही सहयोग से ही उसको लंबे समय तक सत्ता से हटा सकती है।यही वजह है कि सोनिया गांधी के समय से ही कांग्रेस आरएसएस के प्रति कटु से कटु होती गई। उसके वही नेता खांटी कांग्रेसी नेता माने जाते थे जो संघ की सबसे कटु आलोचना करते थे। आलाकमान को आरएसएस की कटु आलोचना अच्छी लगती थी, इसलिए कांग्रेस नेताओं में आरएसएस की आलोचना करने होड़ लगी रहती थी।कांग्रेस का यह डर २०१४ में सही साबित हुआ।कांग्रेस को सत्ता से हटाकर पूर्ण बहुमत की सरकार पहली बार आरएसएस के छत्रछाया में पले बढ़े एक स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी ने ही बनाई।
नरेंद्र मोदी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा थे, इस बात को कांग्रेस के नेताओं ने उनके गुजरात के सीएम रहते भांप लिया था इसलिए गुजरात के सीएम रहते कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी का पुरजोर विरोध किया। उनको जेल भेजने के लिए क्या कुछ नहीं किया लेकिन नरेंद्र मोदी के राजनीति में आने के साथ ही कांग्रेस की नियति तय हो चुकी थी,हुआ वही जिसका कांग्रेस को डर था। आरएसएस के खांटी स्वयंसेवक ने उनको सत्ता से ऐसा बाहर किया है कि उनके कई बरस सत्ता में वापसी की उम्मीद नहीं है। गांधी परिवार और कांग्रेस नेता आरएसएस व मोदी से इसलिए सबसे ज्यादा नफरत करते हैं उन्होंने कांग्रेस से वह सब छीन लिया जिसे कांग्रेस अपना जन्मजात अधिकार मानती थी। वह मानती थी कि उनको सत्ता से कोई हटा नहीं सकता, आरएसएस व भाजपा ने हटा दिया। वह मानती थी उनका रुतबा कभी खत्म नहीं हो सकता, कांग्रेस व गांधी परिवार का रुतबा आरएसएस के स्वयंसेवक ने खत्म कर दिया है। पूरे देश में राज करने वाली कांग्रेस आज तीन राज्यों तक सिमट कर रह गई है तो इसके लिए वह आरएसएस व भाजपा को दोषी मानती है। क्योंकि भाजपा के अलावा देश के किसी राजनीतिक दल के पास आरएसएस जैसा संगठन नहीं था जिसकी पहुंच देश के हर गांव हर शहर तक हो। भाजपा आज सत्ता में है तो वह
आरएसएस की मदद से है। आगे भी सत्ता में रहेगी तो वह आरएसएस की मदद से ही रहेगी। यही वजह है कि काग्रेस नेता व राहुल गांधी आरएसएस की कटु आलोचना उसके १०० वर्ष पूरे होने पर कर रहे हैं। राहुल गांधी आरएसएस को कायर कहते हैं तो इससे उनके पीड़ा को समझा जा सकता है। इससे आरएसएस को तो कोई नुकसान नहीं होना है लेकिन लोगों का यह समझ में आता है कि राहुल गांधी व कांग्रेस आरएसएस को बुरा बुरा कह रहे हैं तो यूं ही नहीं कह रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद खात्मे की ओर है। कई बड़े नक्सली नेता मारे गए हैं। बहुत सारे नक्सलियों ने पिछले एक दो माह में सरेंडर किया है।
कहावत है कि जहं जहं पांव पड़े संतन के तहं तहं बंटाधार।कुछ लोगों पर यह कहावत पूरा फिट बैठता है। ये ऐसे लोग होते हैं जिनको कहीं भेजा तो इस विश्वास के...
किसी राज्य में अप्रत्याशित चुनाव परिणाम आता है तो उसका असर कई राज्यों सहित देश की राजनीति पर भी जरूर पड़ता है। बिहार का चुनाव परिणाम राष्ट्रीय दलों...
वैसे तो आम तौर पर माना यही जाता है कि आदमी जैसा कर्म करता है,उसका फल भी वही भोगता है।यानी कर्म जिसका होता है, फल उसी को भुगतना पड़ता है।किसी ने चोर...
देश के हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक दलों के लिए यह मौका जनता का विश्वास जीतने का रहता है।बहुत सारे दल जनता का विश्वास...
सरकार हो,कोई संस्था हो सब के पास अपना काम होता है, और सबको अपना काम पूरा करना होता है।सबका काम को पूरा करने का अपना तरीका होता है।