रायपुर (वीएनएस)। पूर्ण बनने के लिए मन को स्वस्थ रखें। मन को बीमार न बनाएं, क्योंकि तन की बीमारी का इलाज हो सकता है पर मन की बीमारी का नहीं। मन की बीमारी लेकर मनोवैज्ञानी के पास जाओगे तो वो आपको बेहोश या फिर नींद में रखेगा। इससे आप बहकी-बहकी बातें नहीं कर पाओगे। यह बातें शनिवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने आगे कहा कि आपको अगर पूर्ण बनना है तो सबसे पहले आपको इधर-उधर की व्यर्थ बातें करनी बंद करनी होगी। अगर पुरानी बातें, व्यर्थ की बातें, किस्से कहानियां सुनना-सुनाना करते रहोगे तो आप कभी अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पाओगे। आप कभी पूर्ण नहीं हो पाओगे। जीवन में अगर आपको आगे बढ़ना है, तो ऐसी बातों को छोड़ना होगा। एक मनोवैज्ञानी के पास आप मन का इलाज करवाने जाते हो, तो वह आपको नींद या बेहोशी की हालत में रखता है। क्योंकि मन की इलाज भी वही है कि आप व्यर्थ की बातों से बचे। ऐसी बातों से ही आपका मन बीमार होता है। इस संसार में उद्धार करना है, पूर्णता काे प्राप्त करना है तो अशक्ति चल जाएगी पर आशक्ति नहीं चलेगी। देखने में तो अशक्ति और आशक्ति में केवल एक मात्रा ही फर्क है, लेकिन ऐसा नहीं है। आपके शरीर में अगर शक्ति कम है, किसी कार्य को करने आप शारीरिक रूप से असमर्थ है तो वह अशक्ति है। वहीं, अगर तन तंदरूस्त है और मन अस्वस्थ है, आप सोचे कि किसी काम को खड़े-खड़े करने की बजाय अगर बैठकर कर लें तो क्या फर्क पड़ता है, यह आशक्ति है।
दोष दृष्टि, दुर्गुणों की राजधानी है
साध्वीजी कहती है कि हम खड़े रहने की शक्ति रखते है फिर भी हम बैठे-बैठे काम को करना चाहते है, क्रिया नहीं करना चाहते है तो यह आशक्ति है जो हमें पूर्ण बनने से रोकेगी। मन को स्वस्थ रखें। क्योंकि तन की बीमारी का इलाज तो हो सकता है, पर मन की बीमारी का नहीं। अगर हमको पूर्ण बनना है तो सबसे पहले मन को स्वस्थ करने के लिए अपने दृष्टि से दोष देखना बंद करना पड़ेगा। आप सोचते है कि मेरे अंदर दोष हो तो चलेगा, दूसरे के अंदर नहीं होना चाहिए। हमारे अंदर दोष होगा तो हम भी दूसरों के अंदर दोष ही देखेंगे। भगवान को कभी किसी में दोष दिखाई नहीं देता। भगवान ज्ञान दृष्टि वाले होते है, उनको दोष दिखाई नहीं देता और हमको गुण दिखाई नहीं देता। दोष दृष्टि को दुर्गुणों की राजधानी कहा गया है। वह पापों का प्लेटफॉर्म है। जो दुर्गुण ही दुर्गुण देखता है, वास्तव में वह सिर्फ बाहर से ही इंसान है, अंदर से वह तो कुछ और ही है। आपने चील पक्षी को देखा होगा, वह बहुत ऊपर उड़ता है लेकिन उसकी दृष्टि हमेशा नीचे की ओर मांस को ढूंढती रहती है। उसकी दृष्टि गंदगी में रहती है, चाहे कितनी भी बदबू आ रही हो, मांस सड़ चुका हो, वह उसे उठाएगा ही।
दुर्गंध आए तो नाक बंद, वैसे ही दोष दिखने पर आंख बंद करें
साध्वीजी कहती है कि दोष दुर्गंध वाली चीज है। अगर आप किसी के अंदर दोष देखते हो, तो वह आपके अंदर भी पनपने लगता है। जब आपको दुर्गंध आए तो आप नाक बंद करते हो, वैसे ही दोष दिखाई देने पर आप आंख बंद कर लेना। जब कोई व्यक्ति दूसरे के अंदर का दोष देखना बंद कर दे, तो वह अंदर से इंसान बन जाएगा। साध्वीजी बताती है कि एक बार एक व्यक्ति चिड़ियाघर में नौकरी मांगने गया। मैनेजर ने कहा कि यहां कोई नौकरी नहीं है। उसने बहुत मिन्नतें की, तो मैनेजर ने कहा चिड़ियाघर में एक चिंपांजी था, कल रात उसकी मौत हो गई। उसका पिंजरा खाली है, तुम चिंपांजी की ड्रेस पहनकर वहां उछल-कूद कर सकते हो, तो तुम्हें यह नौकरी मिल सकती है। वह मजबूर था और यह काम करने के लिए वह तैयार हो गया। लोग आते और उसे देखते तो वह उछल-कूद करता रहता। एक दिन ज्यादा उछल-कूद करते हुए वह बाजू वाले पिंजरे में जा गिरा। वह शेर का पिंजरा था, उसे देख शेर दहाड़ने लगा। चिंपांजी के वेश वह आदमी डर गया। शेर बहुत देर से दहाड़ रहा था। आखिरकार अब उस आदमी ने शेर को चुप कराने का फैसला लिया और उसके पास जाकर शेर का मुंह दबोच लिया। शेर ने धीरे से कहा कि मैं जानता हूं तुम आदमी हो, वैसे ही मैं भी शेर के वेश में एक आदमी ही हूं। चिंपांजी ने कहा तो पहले क्याें नहीं बताया, डर से मेरी जान ही निकल जाती है। शेर ने कहा कि मैं अगर यह बात जोर से कहता तो लोग सुन लेते, इसीलिए तुम्हारे पास आने के बाद ही कहना पड़ा। साध्वीजी कहती है कि पेट के लिए आदमी, इंसान बाहर से जानवर बन सकता है पर दूसरे का दोष देखने पर हम अंदर से जानवर बन जाते है।
तपस्वियों का हुआ बहुमान
आराधना साधना के क्रम में शनिवार को कमल लालवानी का 13 उपवास था। उनका बहुमान आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा, मेघराज बेगानी धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट के शिवराज बेगानी और महासचिव निर्मल जी गोलछा, प्रवीण सिंगी आदि ने किया।
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