नई दिल्ली (वीएनएस)। पैसे का लेन-देन करने वाली डिजिटल कंपनियों (पेमेंट एग्रीगेटर्स) को राहत देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) उनके लिए लाइसेंस की अनिवार्यता हासिल करने की समय सीमा बढ़ा दी है। ये पेमेंट एग्रीगेटर्स अब 30 सितंबर, 2022 तक लाइसेंस के लिए केंद्रीय बैंक में आवेदन कर सकते हैं। केंद्रीय बैंक ने यह भी शर्त रखी है कि 31 मार्च, 2022 तक पेमेंट एग्रीगेटर्स की न्यूनतम नेटवर्थ 15 करोड़ रुपये होनी चाहिए। ये वही पेमेंट एग्रीगेटर्स हैं, जो पूर्व में न्यूनतम मूल्य मानदंडों को पूरा करने में विफल रहे थे और उनका आवेदन खारिज कर दिया गया था।
31 मार्च, 2023 तक 25 करोड़ रुपये होना चाहिए नेटवर्थ
आरबीआइ ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि कोविड -19 महामारी के कारण हुए व्यवधान को ध्यान में रखते हुए और पेमेंट इको सिस्टम के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए 17 मार्च, 2020 तक मौजूदा ऐसे सभी पीए को आरबीआइ में आवेदन करने के लिए एक और मौका देने का निर्णय लिया गया है। ऐसे पेमेंट एग्रीगेटर्स को जब तक आरबीआई से कोई सूचना नहीं मिलती, तब तक वे अपना संचालन जारी रख सकते हैं। हालांकि 25 करोड़ रुपये की शुद्ध संपत्ति हासिल करने के लिए 31 मार्च, 2023 की समय सीमा बनी रहेगी।
हाल ही में, केंद्रीय बैंक ने भुगतान एग्रीगेटर के रूप में काम करने के लिए बेंगलुरु स्थित इनोविटी पेमेंट्स को सैद्धांतिक मंजूरी दी। अन्य भुगतान प्रदाताओं जैसे रेजर-पे, पाइन लैब्स, स्ट्राइप, 1पे को भी आरबीआइ से मंजूरी मिली है। आरबीआइ के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि मार्च 2021 तक पेमेंट एग्रीगेटर्स की नेटवर्थ 15 करोड़ रुपये होनी चाहिए, जबकि मार्च 2023 तक उसकी नेटवर्थ 25 करोड़ रुपये होनी चाहिए और उसके बाद उन्हें हर समय 25 करोड़ रुपये की नेटवर्थ बनाए रखनी होगी। 2020 में आरबीआई ने दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसमें कहा गया था कि केवल नियामक द्वारा अनुमोदित फर्म ही भुगतान सेवाओं का अधिग्रहण और पेशकश कर सकती हैं। इसके बाद आरबीआइ को करीब 180 आवेदन किए गए थे।
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