..बिहार में नीतीश सरकार ने जाति गणना कराकर उसके आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसका राज्यों सहित देश की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा।जाति गणना की मांग देश में तेजे होगी तथा राज्यों पर भी दबाव पड़ेगा कि वह जाति गणना करा कर आंकडे जारी करें। जैसे ही जाति गणना स्पष्ट हो जाएगी, जातियों की आरक्षण बढ़ाने की मांग तेज होगी। यानी आजादी के बाद से जो आरक्षण चला आ रहा है, उसे बदलने की मांग जोर पकड़ेगी। सबसे पहले बिहार में इसके आंकड़े जारी कर दिए गए हैं इसलिए इसका सबसे पहले असर तो बिहार की राजनीति पर पड़ेगा।
आंकड़ो से पता चलता है कि ओबीसी को दो भागों मेें बांट दिया गया है। एक है पिछड़ा वर्ग, इसकी आबादी 27.12 प्रतिशत है। दूसरा है तो अति पिछड़ा वर्ग इसकी आबादी है 36.01 प्रतिशत।दोनों को जोड़ दिया जाए तो होता पिछड़ा वर्ग होता है 63 प्रतिशत। यानी इन आंकड़ो से पिछड़ा वर्ग को पता चल गया है कि उसकी आबादी सबसे ज्यादा है तो स्वाभाविक है कि पिछड़ा वर्ग तो चाहेगा कि उसे आरक्षण ज्यादा मिलना चाहिए। उसे विधायक,सांसद का टिकट ज्यादा मिलना चाहिए। पिछड़ा वर्ग के मंत्री भी ज्यादा बनाए जाने चाहिए।
बिहार में हकीकत आंकड़ो के विपरीत है। सबसे पहले तो पिछड़ा वर्ग सरकार से यह मांग करेगा कि उसे सत्ता में हिस्सेदारी ज्यादा दी जाए। ज्यादा मंत्री औबीसी से बनाए जाए। सत्ता पर पूरा नियंत्रण यादवों का रहा है। इसलिए यादव व पिछड़ा वर्ग के बीच सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर तनाव पैदा तो देरसबेर होगा ही। इसका परिणाम बिहार में राजनीतिक अस्थिरता के रूप में सामने आएगा। राजनीतिक दल टूट सकते हैं तथा सरकार गिर सकती है। आंकड़ो से साफ है कि मुसलमानों की आबादी यादवों से ज्यादा हो गई है। वह भी चाहेंगे कि उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी ज्यादा दी जाए। वह भी चाहेंगे कि किसी मुसलमान नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया जाए।
जहां तक पांच राज्यों में होने वाले विधासभा चुनाव पर इसका क्या असर पडे़गा तो सभी राज्यों मे औबीसी वर्ग के नेता चाहेंगे कि राजनीतिक दल ज्यादा टिकट दें। जो ज्यादा टिकट देगा व ओबीसी हितैषी माना जाएगा। उसे ओबीसी वर्ग का ज्यादा वोट मिलेगा। जो ज्यादा टिकट नहीं देगा वह ओबीसी विरोधी माान जाएगा। उसे ओबीसी समाज का वोट कम मिलेगा। पांच राज्यों में सरकार बनने परओबीसी समाज मांग करेगा कि ज्यादा ओबीसी को मंत्री बनाया जाए।
नीतीश कुमार जाति के आंकड़ो को जारी कर बहुत खुश हैं कि उन्होंने कोई ऐतिहासिक काम कर दिया है। हकीकत में उन्होंने वही गलती की है जो कभी वीपी सिंह ने की थी। वीपी सिंह का इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। नीतीश कुमार व उनकी पार्टी को भी इस गलती का खामियाजा बिहार में भुगतना पड़ेगा। वीपी सिंह की गलती से तो परिवारवादी दलों का उत्थान हुआ था लेकिन नीतीश कुमार की गलती से परिवारवादी दलों का पतन होना शुरू होगा। यूपी में तो इसकी शुरुआत हो गई है,बिहार में अगले एक दो चुनाव में इसकी शुरुआत हो जाएगी।
जातिवादी दलों की संगत मेें रहकर कांग्रेस जाति गणना की मांग कर गलती कर रही है। इससे उसका परंपरागत वोट दूसरे दलों को चला जाएगा। मंडल राजनीति के कारण उसका वोट बैंक टूटा था। अब ओबीसी राजनीति के कारण उसके वोट बैंक में सेंध लगेगी।कांग्रेस राष्ट्रवादी पार्टी होकर भी कनफ्यूज है कि उसे राष्ट्रवादी राजनीति करनी चाहिए या जातिवादी राजनीति करनी चाहिए।वह मूलतः राष्ट्रवादी पार्टी रही है। इसलिए उसे राष्ट्रवादी राजनीति ही करनाी चााहिए।
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