रायपुर (वीएनएस)। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी त्रिलोकी मां कालीबाड़ी समिति डॉ. राजेंद्र नगर द्वारा 21 नवंबर को जगद्धात्री पूजा का आयोजन मंदिर परिसर में किया जा रहा है। कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आंवला नवमी के साथ ही जगद्धात्री पूजा का महा पर्व शुरू होता हैं। हिन्दू धर्म में जगद्धात्री पूजा का नवरात्रि पूजा की तरह विशेष स्थान है। ये पूजा पश्चिम बंगाल और ओडिशा में खासकर की जाती है।
त्रिलोकी मां कालीबाड़ी समिति डॉ. राजेंद्र नगर के सचिव विवेक बर्धन ने बताया कि 21 नवंबर मंगलवार को सुबह 8.30 बजे से पूजा प्रारंभ होगी। सुबह 10 बजे पुष्पांजलि के बाद 10.30 बजे भोग आरती का आयोजन किया गया है। सुबह 11 बजे अष्टमी पूजा, 12.30 बजे पुष्पांजलि और 1 बजे भोग आरती होगी। महानवमी पूजा दोपहर 1 बजे, 2.30 बजे पुष्पांजलि, अपरान्ह 3 बजे भोग आरती के पश्चात 3.30 बजे से हवन और फिर भोग वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया है। 22 नवबंर को सुबह 8.30 बजे दशमी पूजा और 9 बजे दर्पण विसर्जन का कार्यक्रम सम्पन्न होगा। पूजा के दौरान समिति के समस्त पदाधिकरीगण, सदस्य एवं श्रद्धालुगण उपस्थित रहेंगे।
बर्धन ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि दुर्गा माता इस दिन धरती पर फिर से जगत की धात्री के तौर पर आती हैं। यह मान्यता है कि जगद्धात्री माता दुर्गा का ही एक अवतार है। यह तंत्र से उत्पन्न हुई है। यह मां काली और दुर्गा के साथ ही सत्व रूप में है। इन्हें राजस एवं तमस का प्रतीक माना जाता है। बर्धन के अनुसार यदि हम इसका इतिहास देखें तो सर्वप्रथम इस पूजा का प्रारंभ सन 1750 में पश्चिम बंगाल के चंदन नगर से हुआ था। इंद्रनारायण चौधरी ने सबसे पहले अपने घर में जगद्धात्री पूजा की थी। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरूआत रामकृष्ण मिशन के संस्थापक रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदा देवी ने की थी।
शारदा देवी पुनर्जन्म में काफी विश्वास रखती थीं और उनका कहना था कि मां इस दिन फिर से धरती पर आकर दुष्टों का नाश कर के खुशियां देने आती है। धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल सहित बिहार, उड़ीसा सहित अन्य राज्यों में भी यह पूजा की जाने लगी। छत्तीसगढ़ में भी बंगाली समुदाय द्वारा अब जगद्धात्री पूजा की जाने लगी है।
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