कबीरधाम की राजनीति अजब है पर गजब है । जनता कब किसको सर आंखों पर बैठा दे कब उतार दे कहा नही जा सकता। कबीरधाम की राजनीति में महल के कांग्रेस से अलग होने, कद्दावर नेता मो. अकबर के रायपुर मे रहकर कवर्धा की राजनीति करने हार के बाद पलटकर नही देखने व जिले के दबंग नेता धर्मजीत सिंह के अकबरी चाल के बाद कांग्रेस छोड़ने और बिलासपुर पलायन के बाद जोगी कांग्रेस से अलग हो भाजपा का दामन थामने के बाद अबकी बार तखतपुर के सहारे राजनीति में सक्रियता बनाये रखने के कारण जिले के कांग्रेसी अपने आप को लंबे समय से अनाथ महसूस कर रहे है । छोटे मोटे कार्यो व शिकवा शिकायतो के लिए जाए तो जाए किधर ।
कांग्रेसी नेता जनता से 1000 रुपये की दूरी पर है । नेताओ से मिलने 1000 खर्च कर राजधानी जा उनकी चौखट पर दस्तक देने जेब ढीली करनी पड़ती है । दबंग नेताओ के होते हुए भी नेताओ के अप डाउन संस्कृति के चलते आज कांग्रेस फिर दोराहे पर खड़ी है। हार के बाद से गायब अकबर के बाद कोई सर्वमान्य नेता जिले में नही होने के चलते अस्तित्व की जंग लड़ रही कांग्रेस के लिए ये कोई शुभ संकेत नही है। विगत चुनाव में भाजपा विरोधी मतो के कांग्रेस की झोली मे आने से भले ही कांग्रेसी वोटो के गणित मे अपने आप को मजबुत मान रहे थे किंतु अबके चुनाव ने कांग्रेस का सारा गणित गड़बड़ा दिया । हिन्तुत्व का भय अकबर को उबरने नही दे रहा । हांलाकि पूर्वमुख्यमंत्री भूपेश बघेल लोकसभा चुनावों में हार का स्वाद चखने के बावजूद कांग्रेस को जिले में जीवित रखने कबीरधाम के दौरे पर दौरे कर कांग्रेसियों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास तो कर रहे किन्तु उनको चापलूस व मतलबपरस्त लोंगो ने घेर रखा है जिसके चलते कांग्रेस की आपसी खींचतान व निपटो निपटाओ की राजनीती के चलते कांग्रेस खोखली होती जा रही है ।
विगत विधान सभा चुनाव में अकबर की राजनैतिक नैया झण्डा काण्ड , नगरपालिका अध्यक्ष की आडियो कांड , शराब कारोबारी की दादागिरी और दबंग ठेकेदार की मनमानी ले डूबी। अजेय समझे जाने वाले अकबर को विजय शर्मा ने झंडा कांड के बाद उपजी हिंदुत्व की हवा के चलते पटखनी दी । वैसे महल के क्षेत्राधिकार मे अकबर के हस्तक्षेप से जहां कांग्रेस कमजोर हुई वहीं भुपेश बघेल गुट द्वारा जोगी सर्मथको को किनारा करने की राजनीति की शुरुवात होने से जिले में कांग्रेस और कमजोर होते गई । अब जोगी कांग्रेस में भी भागमभाग मची हुई है । विगत के वर्षों में जिला कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ती के समय में भी अनुभव व वरिष्ठता को दरकिनार कर कठपुतली को जिले की बागडोर सौंपी गई जिसे कर्मठ कांग्रेस पचा नही पाये। अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे अकबर की चुनाव के बाद से अनुपस्थिति चर्चाओं का बाजार सरगर्म किये हुए है । ऐसे में कांग्रेसियों का मनोबल बचाये रखनेअकबर की अनुपस्थिति में भूपेश स्वयं जिले की कमान संभाले हुए है ।
लोहारा राजमहल में कैद आम आदमी पार्टी चुनाव के बाद से लापता है जोगी कांग्रेस के नेताओ का भाजपा व कांग्रेस में प्रवेश जोगी कांग्रेस में बिखराव के संकेत दे रहा । वहीं कवर्धा राजमहल की रानी का मायके में जा भाजपा से सांसद चुने जाने के बाद से महल के कांग्रेसी समर्थक खुश और मुगलाते में है कि अब फिर राजा साहब की अकबर के भंवर में डूब चुकी राजनीति शायद पुर्नजीवित हो जाएगी ।
इधर भाजापा भी मुख्यमंत्री के बाद अब उपमुख्यमंत्री का गृहजिले के नाम पर दम खम दिखा तो रही है परंतु विजय व भावना के बीच का शीतयुद्ध के चलते कई दिग्गज चिंतित नज़र आने लगे है । पार्टी की अंदरूनी लड़ाई चरम पर है । निर्वाचित नेताओ और संगठन की पटरी नही बैठ रही । कार्यकर्ताओ की नाराजगी कांग्रेस भाजपा दोनो में दिखाई दे रही है ।
आगामी नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों में हमेशा की तरह नए चेहरे के आजमाने की संभावनाओ के चलते कई अनजान चेहरे इन दिनों बैनर पोस्टर शोसल मीडिया वीर नेता बन सक्रियता दिखाते घूम रहे है ।
चलते चलते दो सवाल :-
(1) पीएचई में अकबर के करीबी महराज की चली दादागिरी ने जल जीवन मिशन को भ्रष्टाचार मिशन बना दिया क्या नए कलेक्टर कर पाएंगे कार्यवाही ?
(2) नाबालिकों के वीडियो वायरल करने वाले रील मास्टर एसपी पर कब करेगी सरकार कार्यवाही या आईपीएस का रुतबा बचा ले जाएगा ।
और अंत में :-
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढती ,
छोटी जीत पर बड़ी हर नहीं फबती ।
बीस का नोट पचास में नहीं चलेगा ,
कितना भी नया हो बीस का ही रहेगा ।
#जय_हो 29 सितंबर 20 कवर्धा (छत्तीसगढ़)
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