वक्त के साथ हर क्षेेत्र में तरक्की होती जाती है तो अपराध का क्षेत्र इससे अछूता कैसे रह सकता है।रायपुर में कभी दो गुटों के बीच मारपीट हो जाती थी तो उसकी चर्चा गली मोहल्ला में हुआ करती थी कि किसने किसको मारा। मार खाने वाला कौन है।दो गुटों के बीच मारपीट में जान कभी कभार ही किसी की जाती थी।इसलिए मारपीट को बड़ा अपराध नहीं माना जाता था। पुलिस भी इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेती थी। इसके बाद आया चाकूबाजी का दौर, अब दो गुटों में मारपीट हो कोई गुट किसी गुट के कुछ लोगों को मारता है तो सीधे चाकू से हमला किया जाता है।यह अब राजधानी में सामान्य बात हो गई है क्योंकि आए दिन कहीं कहीं चाकूबाजी होती रहती है, लोग एक दूसरे को घायल करते हैं, जान से मार देते है।
चाकूबाजी में मारपीट से ज्यादा जान जाने लगी है,इसलिए पुलिस इसे गंभीरता से लेती है। चाकूबाजी रोकने के लिए पुलिस ने पिछले सालों में कई प्रयोग किए है, कभी अभियान चलाकर चाकू जब्त किया है तो कभी आन लाइन चाकू मंगाने वालों को पता लगाकर उनको चाकू थाने में जमा करने को कहा है। कभी चाकूबाजों की फोटो थाने में लगाई है लेकिन चाकूबाजी पिछली सरकार में जैसी होती थी, आज भी सरकार बदलने के बाद वैसी ही होती है।इसकी वजह यह है कि चाकू सस्ते में आसानी से आनलाइन मिल जाता है,आसानी से मिल जाता है, इसलिए इसका खुलकर प्रयोग भी जब भी, जहां भी किया जाता है।
जिसके नाम जितनी चाकूबाजी की घटनाएं होती हैं, वह उतना बड़ा बदमाश माना जाता है, इसलिए कई बदमाश ब़ड़ा बदमाश बनने के लिए आए दिन छोटी-छोटी बात पर चाकू चला देते हैं ताकि मोहल्ले के लोग उनसे डरे, शहर में उनका नाम हो, शहर के लोग उनके नाम से डरें।पुलिस हर संभव प्रयास करती है कि शहर में चाकूबाजी न हो लेकिन शहर इतना बड़ा हो गया है और अपराध इतने ज्यादा होने लगे हैं कि लोगों को लगता है कि पुलिस अपराध रोक नहीं पा रही है।पुलिस का अपराधियों में खौफ हो ताे अपराध कम होते हैं, ऐसा माना जाता है, जब भी अपराध किसी भी कारण से बढ़ जाए तो माना जाता है कि पुलिस का अपराधियों पर खौफ नहीं रह गया है।
चाकूबाजी के बाद अब शहर के अपराधी खुद को और बड़ा अपराधी बताने के लिए गोली चलाने व चलवाने वाले बन रहे हैं।अब चाकूबाजी करने वाले छोटा अपराधी व गोली चलाने वाला बड़ा अपराधी माना जाता है, जो भी गोली चलाता है, उसका रुतबा अपराध के क्षेत्र में अपने आप बढ़ जाता है कहा जाता है कि उससे मत लगना नहीं तो वह गोली मरवा देगा। यह लारेंश विश्नोई जैसे गैंगस्टरों का प्रभाव है, उससे प्रभावित होकर लोग खुद भी उसके जैसा बनना चाहते हैं क्योंकि उनको लगता है कि इसमें करना क्या है, डराना है, डर गया तो पैसा आने लगता है। अपराधी से लोग जितना डरते है, उसका वसूली का धंधा उतना ही चलता है। चाहे वह जेल मेें हो लेकिन उसके नाम से लोग डरकर पैसे देते है।लारेंश विश्नोई वसूली का ऐसा माडल है, हर अपराधी इस माडल को अपनाना चाहता है, क्योंकि उसे कुछ नहीं करना है, शूटर ही सब कुछ करते हैं,धमकी भी वही देंगे,गोली भी वही चलाएंगे, नाम होगा बास का। पैसा आएगा तो बास के नाम से।
रायपुर में गोली चलना आज भी बड़ी घटना मानी जाती है,किसी भी वजह से गोली चल जाए, शहर में चर्चा का विषय रहता है।यही वजह है जेल के बाहर अपराधी ने किसी अपराधी पर गोली चला दी तो वह शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है।गोली आपसी रंजिश को लेकर चलाई गई है, गैंगों के बीच मारपीट की घटनाएं तो होती रहती है, लेकिन किसी को गोली मरवा देना यह अपने आप में गंभीर बात है।इस तरह के अपराध होते हैं तो पुलिस के दबदबे पर सवालिया निशान लग जाता है।खुल आम गोली चलने लगे तो आम लोगों को डरना स्वाभाविक है कि क्या पता कब कहां गोली चल जाए और किसी को लग जाए।ऐसी घटनाओं से लोगों में असुरक्षा का भाव बढ़ता है। पुलिस के प्रति भरोसा कम होता है।
कांग्रेस को मौका मिलता है कहने का राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है।कांग्रेस कहीं भी घटना हो तो उसे बड़ी घटना बनाने का प्रयास करती है लेकिन वह उसे बड़ा मुद्दा बना नहीं पाती है क्योंकि अपराध तो उसके समय में होते रहते थे, उसके समय राज्य में अपराध बंद नहीं हो गए थे। कांग्रेस पिछले कई दिनों में हुए अपराधों को लेकर आक्रामक बनी हुई है।भाजपा को भी उसके खिलाफ आक्रामक होना चाहिए। बहुत दिनों बाद भाजपा अध्यक्ष किरण सिंहदेव ने आक्रामक जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि राज्य में बढ़ते अपराध,तनाव व अराजकता के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है।कांग्रेस जानबूझकर राज्य को आग में झोंकना चाहती है।वह पहले खुद अपराध को अंजाम देती है,साजिश रचती है,फिर उस मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास करती है।
उन्होंने बताया है कि दामाखेड़ा आश्रम में हमला करने वाला भी कांग्रेस का सक्रिय कार्यकर्ता निकला है। इससे पहले बलौदाबाजार में योजना बनाकर कलेक्टर,एसपी कार्यालय जलाए गए,इस मामले में कई कांग्रेसी नेता गिरफ्तार किए गए हैं।सूरजपुर में हत्या करने वाला भी एऩएसयूआई का जिला महासचिव था।इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य में जो घटनाएं होती हैं,उनको आगजनी पर बड़ी घटना बना दिया जाता है, ऐसा एक जगह नहीं कई जगह किया गया है। इससे संदेह होना स्वाभाविक है कि ऐसी घटनाएं हो नहीं रही है,कराई जा रही हैं।
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