हर सरकार सोचती है कि उसे जनहित व देशहित में कुछ तो ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसका नाम भविष्य में लिया जाता रहे। इसलिए कई सरकारें पुरानी नीतियों को बदल देती हैं और सोचती हैं कि पुरानी नीति से नुकसान हो रहा था वह नुकसान अब नई नीति से नहीं होगा।पांच दस साल बाद पता चलता है कि इस नीति से पुरानी नीति से भी ज्यादा नुकसान हो रहा है तो फिर से वही पुरानी नीति पर नई सरकार लौट आती है। सरकार को भी तो दिखाना रहता है कि वह भी तो देश के जनहित में कुछ कर रही है। कोई सरकार पुरानी शिक्षा नीति को बदल देती और नई शिक्षा नीति लागू करती है तो कोई सरकार नई शिक्षा को बदल देती और पुरानी शिक्षा नीति पर लौट आती है।सरकार के हम भी कुछ कर रहे है की नीति के कारण देश के बच्चों का कितना नुकसान होता है, यह भी गंभीर विचार का विषय का है।
शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी प्रयोग करने से पहले उसके हर पहलू पर विचार करना जरूरी है। पुरानी से नई शिक्षा नीति पर जाना और नई शिक्षा नीति से पुरानी शिक्षा नीति पर लौटने से तो यह पता चलता है कि ऐसा करने से पहले इसके सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया। इसके लाभ के पहलू पर तो विचार किया गया लेकिन हानि के पहलू पर विचार नहीं किया गया।इसे सरकारी भाषा में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार कहा जाता है।अब मोदी सरकार ने प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए एक और कदम उठाया है।दूसरे शब्दों में कहें तो पहले जैसा किया जाता था,वैसा अब फिर से किया जाएगा।यह नया कदम है पांचवीं व आठवीं में फेल होने पर अब विद्यार्थी को प्रमोट नहीं किया जाएगा। यानी अगली कक्षा में नहीं भेजा जाएगा।उसे पहले की तरह फेल माना जाएगा,दो महीने के भीतर उसे फिर से परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलेगा ताकि वह परीक्षा में पास होकर अपने को अगली कक्षा के योग्य साबित कर सके।वह अगर परीक्षा में फेल हो जाता है तो उसे पुरानी कक्षा में रहने दिया जाएगा,उसे स्कूल से निकाला नहीं जाएगा।वह फिर उस कक्षा में वार्षिक परीक्षा देगा और यानी उसे पांचवी व आठवीं पास करने का मौका कई बार दिया जाएगा।
२००९ के पहले देश में ऐसी ही व्यवस्था थी कि जाे पांचवीं व आठवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाता था, वह फेल माना जाता था और उसे फिर से पांचवी व आठवीं की कक्षा में पढ़ना पड़ता था।२००९ में तब की सरकार ने राइट टू एजुकेशन को शिक्षा में सुधार के लिए जरूरी माना और नो डिटेंशन पालिसी लागू की।यानी तब बच्चों की बेहतरी के लिए माना गया कि यदि वह पांचवीं व आठवीं में फेल हो जाते हैं तो उनको अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाए।माना जाता है कि तब की सरकार ने ऐसा इसलिए करना उचित समझा क्योंकि पांचवीं आठवीं फेल होने पर छात्रों को बुरा लगता था, वह पढ़ाई छोड़ देते थे,माता पिता भी उनको फेल होने पर आगे नहीं पढ़ाते थे।बच्चे फेल होने पर आत्महत्या कर लेते थे, फेल होने पर बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस लगती थी,फेल होने पर वह पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं देते थे,इन तमाम कारणों से तब नो डिटेंशन नीति को लागू करना जरूरी समझा गया।
इससे स्कूलों में बच्चों की संख्या तो बढ़ी,पांचवीं व आठवीं पास बच्चों की संख्या भी बढ़ी लेकिन देश में शिक्षा का स्तर गिर गया क्योंकि बच्चों को फेल होने का डर नहीं था तो वह पढ़ते नहीं थे, बच्चे पास हो जाते थे और अगली कक्षा में चले जाते थे तो शिक्षक भी बच्चों की पढ़ाई की तरफ खास ध्यान नहीं देते थे।इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चा पांचवी व आठवीं पास तो हो जाता लेकिन उसको पांचवी व आठवीं पास बच्चे की तरह लिखना व पढ़ना नहीं आता था।उसकी शिक्षा का स्तर तीन चार कक्षा नीचे का रह जाता था। यानी बच्चों के सामान्य जोड़ घटाना नहीं आता हिंदी पढ़ना व लिखना नहीं आता। ऐसी शिक्षा को कोई मतलब नहीं रह जाता है कि बच्चा पांचवी व आठवी पास है लेकिन वह उतना योग्य नहीं है जितना योग्य होना चाहिए।
पांचवीं व आठवीं मेें बच्चों को पास कर देने से स्कूल में योग्य व अयोग्य बच्चों में कोई फर्क ही नहीं रह गया था।मोदी सरकार आने के बाद पता चला कि बच्चों को फेल नहीं करने से देश के बच्चों की शिक्षा का स्तर गिर गया है तो सोचा गया कि अब क्या किया जाए। तो फिर से वही पुरानी व्यवस्था लागू करने का फैसला किया गया कि अब पांचवीं व आठवीं में फेल होने पर अगली कक्षा में नहीं भेजा जाएगा, उसे परीक्षा पास करना का मौका दिया जाएगा,अपनी योग्यता साबित करने का मौका दिया जाएगा ताकि वह अगली कक्षा में उस कक्षा के योग्य होकर जा सके।शिक्षा राज्य सरकार का विषय है, केंद्र सरकार के नो डिटेंशन पालिसी को समाप्त कर दिया है, अब राज्य सरकारें अपने हिसाब से शिक्षा नीति बना सकती है,केंद्र सरकार ने तो जो बच्चों के हित में है, वैसी नीति बनाई है,उम्मीद है राज्य सरकार भी बच्चों के हित में फैसला करेंगे। इससे आने वाले दिनों में राज्य व देश में शिक्षा का स्तर जरूर सुधरेगा।
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