रायपुर (वीएनएस)। आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ससंघ सन्मति नगर फाफाडीह में विराजमान है। चातुर्मासिक मंगल देशना में मंगलवार को उन्होंने कहा कि संसार में वो जीव वंदनीय है,पूज्यनीय है जिन्होंने देह से ममत्व छोड़ दिया। घर,देश और संसार से मोह छोड़ना सरल है। जगत का राग छोड़ना सरल है, लेकिन देह का राग छोड़ना बहुत कठिन है। देह के ममत्व में जीव डूबा रहता है। इसे सजाने संवारने में व्यस्त रहता है। बालक से किशोर, युवा अधेड़ और बुजुर्ग होने तक देह के महत्व में डूबा रहता है।
आचार्य ने कहा कि देह को सजाने के पीछे लोग परिणाम मिटा बैठे। देह को बचाने के पीछे लोग अहिंसा खो बैठे। देह को बचाने कितनों से बैर बांध बैठे। बोध होना चाहिए हम बैर तो बांध बैठेंगे,लेकिन देह को नहीं बचा सकते। परिवार,संबंधी, नाते- रिश्तेदार,जानकार सभी दृष्टिगोचर होते हैं। इस शरीर से विरक्ति नहीं आएगी तब तक जगत से विरक्ति नहीं आएगी।
आचार्य ने कहा कि आप बैल को खूंटे से बंधा देखते हो, लेकिन यह क्यों नहीं देखते रस्सी से न बंधा होता तो खूंटे से नहीं बंध पाता। रस्सी खोल दो खूंटा अपने आप छूट जाएगा। ऐसे ही देह के राग से छूट जाओ तो इस दुनिया से छूट जाओगे। जगहों से विरक्त होना संवेग है शरीर से विरक्त होना वैराग्य है। जितने वैरागी जीव हैं, उन्हें जगत के वैराग्य का चिंतन करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि जिसने शरीर को परवस्तु जान लिया तो फिर दूसरे के शरीर में ममत्व नहीं करेगा। यही ब्रह्मचर्य,अचौर्य, सत्य,अहिंसा और अपरिग्रह है। देह के भोग के लिए जीव हिंसा करता है। असत्य बोलता है,चोरी करता है। देह के रक्षण के लिए परिग्रह जोड़ता है। जिनालयों में जाने के साथ-साथ श्मशान में भी जाना चाहिए। सुबह मंदिर जाते हो तो शाम को श्मशान में भी जाना चाहिए। श्मशान में जीते-जी जाने लग गए तो जिस देह में तुम्हारा राग था वह समाप्त हो जाएगा।
आचर्य ने कहा कि जीव सदैव भोग देखते रहता है। आंख खोल कर देखता तो योग दिखाई देता। राग के साथ जीते हैं उनके सिर की कपाल क्रिया होती है। जो वैराग्य के साथ जीते हैं वे केवली भगवान कपूर की भांति उड़ जाते हैं। आत्मा को बड़े दुख से जाना जा सकता है। आगम में लिखा है संसार के सुखों का विसर्जन नहीं होगा तब तक भगवान आत्मा को नहीं जाना जा सकता। मंदिर जाना इसलिए चाहिए ,भले हम आत्मभूति न ले पाएं लेकिन आत्मभूति लेने वाले को भी देखकर आनंद आता है। दिगंबर मुद्रा को देखकर आत्मा में आनंद की लहर उठती है। जैसे मां अपने पुत्र को मुस्कान दे पाती है,वैसे ही महात्मा सारे विश्व को मुस्कान देते हैं। महात्मा को देखते ही चित प्रसन्न हो जाता है, गदगद भाव आता है। शरीर में राग नहीं होता तो संसार में जीव रागी बनता ही नहीं। संसार का सुख चासनी है, आत्मा का सुख मिश्री की डली है।
विशुद्ध वर्षा योग समिति के उपाध्यक्ष अनिल बाकलीवाल,सह सचिव अमित बोहरा,कोषाध्यक्ष निकेश गोधा ने बताया कि आज मंगलाचरण ऋषभ पंडित राजिम ने किया। दीप प्रज्वलन पुष्पा गंगवाल, नीलम काला, आशा पापड़ीवाल,रीना सेठी,नीलम चौधरी, अरुणा जैन गुरुकृपा, आशा सेठी गया, भावना नासिक, कुसुम पाटनी कुनकुरी ने किया। आज मुनि साम्य सागर का भी प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि भावना से ही भव बदलते हैं। आपकी जैसी भावना होगी वैसा फल मिलेगा। अशुभ भाव आएंगे तो फल अशुभ मिलेगा। यदि शुभ भाव आएंगे तो फल शुभ मिलेगा। आचार्य को अर्घ्य समर्पण मुनि प्रणय सागर के गृहस्थ जीवन के परिवारजन विजय कुमार सपरिवार, मुनि यतीन्द्र सागर के गृहस्थ जीवन के परिजन योगेंद्र काला सहपरिवार,मुनि निसंग सागर के गृहस्थ जीवन के परिवारजन ऋषभ जैन दिल्ली सपरिवार, रौनक निकुंज गया, सचिन नासिक और दिल्ली भिंड, राजिम, दुर्ग, भिलाई, जबलपुर सहित सकल दिगंबर जैन समाज रायपुर के सभी गुरु भक्तों ने किया। कार्यक्रम के अंत में जिनवाणी मां की स्तुति की गई। मंच का संचालन अरविंद जैन और रविंद्र काला ने किया।
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