खाकी वर्दी का गढ़ है दुर्ग जिले का आलबरस गांव

Posted On:- 2025-01-26




गणतंत्र दिवस पर विशेष लेख (पंडित यशवर्धन पुरोहित)

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से लगभग 36 किलोमीटर दूर स्थित छोटा सा गांव आलबरस, लेकुला और शिवनाथ नदी के मंगल तट पर बसा हुआ, आज अपने गौरवशाली इतिहास और समर्पण की वजह से पूरे देश में ख्याति प्राप्त कर चुका है। लगभग तीन हजार की जनसंख्या वाले इस गांव को विशेष रूप से 'खाकी वर्दी का गढ़' कहा जाता है।

यहां के जवानों ने देश और प्रदेश के हर कोने में सेवा देकर यह साबित किया है कि प्रतिभा और राष्ट्रभक्ति किसी बड़े शहर या संसाधन से नहीं, बल्कि पवित्र माटी की तालीम से उपजती है। आलबरस गांव से 46 जवान भारतीय सेना, पुलिस बल और अर्धसैनिक बलों में देश की सेवा में लगे हुए हैं। इनमें से कई जवान नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर, और सुकमा जैसे कठिन क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, तो कुछ लद्दाख, असम, नागालैंड और मणिपुर जैसे दुर्गम इलाकों में देश की सरहद की रक्षा कर रहे हैं।

46 जवानों का अद्वितीय योगदान
आलबरस के प्रत्येक परिवार के लिए खाकी वर्दी पहनने का एक सपना नहीं बल्कि एक परंपरा बन चुकी है। यहां से अब तक 46 जवान भारतीय सेना, पुलिस, और अन्य सुरक्षा बलों में सेवा दे रहे हैं। इनमें से कुछ जवान छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा में तैनात हैं, जबकि अन्य जवान लद्दाख, असम, नागालैंड और मणिपुर जैसे दूर-दराज और कठिन क्षेत्रों में अपनी सेवा दे रहे हैं। यह जवान अपनी वीरता और कठिन परिश्रम से गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।

इनमें से प्रमुख नामों में भारतीय सेना के भुवन देशमुख, देवलाल ठाकुर, खेमनलाल, दामन नेताम, चंद्रप्रकाश देशमुख, योगेश देशमुख, थिपू देशमुख शामिल हैं, जो भारतीय सेना की विभिन्न शाखाओं में सेवा दे रहे हैं। इसके अलावा, असम राइफल्स में उमेश यादव और सीआरपीएफ में तोमन नेताम जैसी महत्वपूर्ण नियुक्तियां हैं। आलबरस का हर एक युवक इस गांव के मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए खाकी वर्दी में अपनी भूमिका निभा रहा है।

गांव की फौजी परंपरा: तालीम और प्रेरणा का केंद्र
इस गांव के जवानों की उपलब्धियां केवल सेना और पुलिस विभाग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनकी प्रेरणा ने गांव के अन्य युवाओं को भी अपनी माटी के प्रति समर्पण की भावना सिखाई है। एकलौते बच्चे से लेकर भाईयों की फौज तक, हर घर से देशसेवा का सपना देखा और पूरा किया जाता है।

यहां के जवान न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के कोने-कोने में कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं। यह आलबरस गांव की परंपरा और संस्कृति का नतीजा है कि यहां के युवा वर्दी पहनने को अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं।

गांव का गर्व और गौरव
आलबरस गांव के प्रत्येक व्यक्ति को अपने सपूतों पर गर्व है। जब भी इन जवानों का नाम लिया जाता है, तो यह गांव सम्मान और गर्व से भर उठता है। यहां के लोग न केवल अपने जवानों के योगदान को सराहते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि आलबरस गांव अपनी संस्कृति और परंपराओं के माध्यम से पूरे देश को यह संदेश देता है कि यदि माटी में समर्पण, प्रेरणा और मेहनत का बीज बोया जाए, तो कोई भी गांव या व्यक्ति देश का नाम ऊंचा कर सकता है।

गणतंत्र दिवस के इस खास अवसर पर आलबरस गांव के वीर सपूतों को शत-शत नमन।



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