विपक्ष का काम तो सरकार के हर काम में मीनमेख निकालना ही है।वह ऐसा नहीं करेगी तो उसे विपक्ष कौन कहेगा।कोई भी सरकार को वह तो अपने हर काम को ठीक बताती है, वह कभी नहीं कहती है कि उससे यह गलती हो गई।वह तो कहती है कि हमने जो कुछ किया है वह सही है और वह साबित भी कर देती है कि उसने जो कुछ किया है,वही सही है,विपक्ष जो कुछ कह रहा है वह झूठ है।जो कुछ कर रहा है राजनीति है।उसका काम है हर बात पर सरकार की आलोचना करना। जनता को बताना कि सरकार गलत कर रही है भले ही विपक्षी दल जब खुद सत्ता में रहा हो और उसने भी वही किया हो।राजनीतिक दलों के बयान उसकी स्थिति पर निर्भर करता है, वह विपक्ष में रहता है और वह एक बयान देता है और जब सत्ता में रहता है तो एक बयान देता है।
राज्य सरकार ने किसानों से समर्थन मूल्य पर ३५ लाख टन धान ज्यादा खरीदा है।इस धान की नीलामी २३ अप्रैल तक होनी है।सीधी सी बात है कि धान किसानों से ३१०० रुपए प्रति क्विंटल खरीदा गया है और इस रेट पर खुले बाजार में धान बेचा नहीं जा सकता। यानी धान जितने में खरीदा गया है नीलामी मे उसके कम में बेचा जाना है।बताया जाता है कि सरकार ने इसकी बेस प्राइज भी तय नहीं की है कि कम के कम कितने में प्रति क्विंटल धान बेचा जाएगा। जो धान की सबसे बड़ी बोली लगाएगा उसे धान बेचा जाएगा।
नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का कहना है कि इससे राज्य के कोष पर १० हजार करोड़ का नुकसान होगा।नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत को इस बात की चिंता नहीं है कि सरकार को ज्यादा धान समर्थन मूल्य पर खरीद कर कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है। उनका मकसद तो यह बताना है कि राज्य सरकार व केंद्र सरकार की गलती के कारण ऐसा हो रहा है यानी राज्य में डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी ऐसा हो रहा है। राज्य सरकार व केंद्र सरकार की नाकामी के कारण ऐसा हो रहा है।उनका कहना है कि राज्य सरकार ने 149.25लाख टन की धान की खरीदी की है।कस्टम मिलिंग के बाद ३५ लाख टन धान बच गया है। राज्य सरकार की ओर से केद्र सरकार से धान खरीदी होने के पहले चावल का कोटा बढ़ाने को कहा गया था।केंद्र सरकार यह कोटा बढ़ा देती तो राज्य सरकार के जरूरत से ज्यादा धान की खपत हो जाती।धान कम मात्रा में नीलाम करना पड़ता और राज्य सरकार को कम नुकसान होता।केंद्र सरकार से अनुमति नहीं मिलने के कारण ही राज्य सरकार को दस हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ेगा।केंद्र सरकार जब पंजाब से 172 लाख टन धान ले सकती है तो उसके लिए राज्य सरकार से पूरा धान लेना कोई बड़ी बात नहीं थी।
नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत 35 लाख टन धान ज्यादा खरीदी को इस तरह बता रहे हैं जैसे कि राज्य में पहली बार जितनी जरूरत थी उससे ज्यादा धान की खरीदी गई है। भाजपा ने ही ऐसी गलती है,हकीकत यह है कि ऐसी ही गलती भूपेश सरकार के समय भी हुई थी, तब भी भूपेश सरकार ने खुद को किसान हितैषी सरकार साबित करने के लिए जितनी जरूरत थी उससे ज्यादा धान खरीदा था और भूपेश सरकार को ज्यादा धान की नीलामी करनी पड़ी थी,तब भूपेश सरकार ने जितने में धान खरीदा था उससे कम कीमत पर खुले बाजार में धान बेचा था और उसे भी प्रति क्विंटल एक हजार रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ था।
जो भी विपक्ष में रहता है उसकी नीति तो यही रहती है कि चित भी मेरी और पट भी मेरी। यानी सिक्का चित आएगा तो भी वह जीतेगा और सिक्का पट आएगा तो भी वही जीतेगा। साय सरकार ने जब धान खरीदी शुरू की थी कि इसी कांग्रेस ने क्या कहा था, कांग्रेस ने कहा था साय सरकार किसानों का पूरा धान नहीं खरीदना चाहती है। सरकार ने धान खरीदी का लक्ष्य 160 लाख टन तय किया था तो कहा था कि इतना धान तो सरकार खरीद नहीं सकती। सरकार ने पिछली बार से ज्यादा यानी 149 लाख टन धान खरीद लिया तो चरणदास महंत कह रहे हैं कि यह तो ज्यादा हो गया। ज्यादा खरीदने के कारण ही तो सरकार को नुकसान हो रहा है।सरकार ने लक्ष्य से कम धान खरीदा है तो भी सरकार की आलोचना हो रही है, कोई सरकार की इस बात के लिए तारीफ नहीं कर रहा है कि उसने ज्यादा धान खरीदा है तो इससे राज्य के लाखों किसानों को फायदा हुआ है। साय सरकार किसान हितैषी सरकार है।
राज्य के लोगों को याद है जब भूपेश सरकार को राज्य का किसानों के हित में कर्ज लेना पड़ा था उन्होंने कहा था कि राज्य व किसानों के हित सरकार को जो कुछ भी करना पड़ेगा तो वह पीछे नहीं हटेंगे। आज साय सरकार ने भी तो किसानों के हित में ज्यादा धान खरीदा है तो कांग्रेस नेता डा.चरणदास महंत आलोचना कर रहे हैं कि ऐसा करने के कारण राज्य को दस हजार करोड़ को नुकसान होगा। भूपेश सरकार के समय 2500 में धान खरीदा गया इसलिए कुछ कम नुकसान हुआ थाऔर साय के समय ३१०० में धान खरीदा गया है,इससे कुछ ज्यादा नुकसान होगा।
कोई भी सरकार को वह जब भी उसके सामने ऐसी स्थिति आती है कि उसे राज्य के आर्थिक हित को देखना चाहिए या राजनीतिक हित को देखना चाहिए तो सभी राज्य सरकारे आर्थिक हित की जगह राजनीतिक हित को ही देखती है।किसी भी राजनीतिक दल के लिए राजनीतिक हित को देखना इसलिए जरूरी होता है कि ऐसा करने पर चुनाव में राजनीतिक फायदा होता है। किसानों को यह बताने पर ही तो उनका वोट मिलता है कि हमारी सरकार किसानों का सबसे ज्यादा हित देखती है। सरकार किसानों के हित के लिए ज्यादा धान खरीद रही है, ज्यादा पैसा दे रही है।
भूपेश सरकार ने भी यही किया था और साय सरकार ने भी यही किया है।इसमें कोई शक नहीं है कि इससे राज्य सरकार को आर्थिक रूप से नुकसान होगा लेकिन यह भी सच है कि इससे सरकार को राजनीतिक रूप से फायदा भी होगा। विपक्ष यह तो कह सकता है कि राज्य सरकार ने ज्यादा धान खरीद कर गलती की इससे राज्य को नुकसान हुआ है, इससे राज्य सरकार को कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होना है। विपक्ष यह नहीं कह सकता सरकार किसानों से कम धान खरीदा। किसानों को नुकसान हुआ है। सरकार ने किसानों से ज्यादा धान खरीदा है तो यह तो विपक्ष भी मानता है। इससे साफ हो जाता है कि साय सरकार ने ऐसा किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए किया है।
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