हर राजनीतिक दल का अपना संगठन होता है, संगठन में कई पद होते हैं, हर पदाधिकारी की अपनी जिम्मेदारी होती है।राजनीतिक दल सत्ता में रहे तो संगठन के पद पर रहने का अपना ही मजा होता है। राजनीतिक दल सत्ता में न रहे तो संगठन के पद भी महज दिखाने को होते हैं।कोई भाव नहीं देता है।कोई काम नहीं होता है, पार्टी के लिए भी़ड़ जुटाना भी मुश्किल हो जाता है। पार्टी सत्ता में रहती है तो संगठन को मजबूत करने की जरूरत नहीं होती है।पार्टी सत्ता में तब ही रहती है जब संगठन मजबूत रहता है।आम तौर पर माना जाता है कि पार्टी सत्ता में है तो पार्टी का संगठन मजबूत है।
ऐसे में पार्टी संगठन के पदाधिकारी को कोई भी काम करने को कहा जाता है तो उसके लिए कोई मुश्किल नहीं होती है। क्योंकि सुविधा व संसाधन की कमी नहीं होती है। कहने की देर रहती है,सब सुविधा साधन लोग खुशी खुशी जुटाते हैं। जितने बड़े नेता की सभा होती है, उसके लिए उतनी ही ज्यादा भीड़ जुटाना कोई बड़ा काम नहीं होता है।जितनी ज्यादा भीड़ होती है, बड़े नेता की सभा को उतना ही सफल माना जाता है, बड़े नेता को भी लगता है कि हां अब लगा मैं बड़ा नेता हूं। नेता के राजनीतिक कद के हिसाब से भीड़ जुटानी पड़ती है।
सत्ता में नहीं रहने पर भी नेताजी चाहते हैं उनके कद के बराबर भीड़ हर हाल में जुटनी चाहिए तो जिला अध्यक्ष हो, प्रदेश अध्यक्ष हो या क्षेत्र के विधायक तो भीड़ जुटाना मुश्किल होता है। यह मुश्किल काम संगठन के पदाधिकारी को करना पड़ता है क्योंकि पद उनको यही काम करने के लिए दिया गया है। मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष। बड़ा कद होता है राष्ट्रीय अध्यक्ष का।उनकी सभा में तो भीड़ होनी ही चाहिए नहीं तो उनको कैसे लगेगा कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।बिहार के बक्सर जिले में मल्लिकार्जुन का कार्यक्रम था, पहुंचे कार्यक्रम स्थल तो जितनी भीड़ होनी थी, उतनी भीड़ तो नहीं थी।राष्ट्रीय अध्यक्ष को बुरा लगना ही था,बुरा लगा तो कोई तो कार्रवाई किसी पदाधिकारी पर होनी थी। कायदे से तो कार्रवाई को प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ होनी थी लेकिन कार्रवाई हुई जिला अध्यक्ष के खिलाफ।
जिला अध्यक्ष मनोज कुमार पांडेय को तत्काल प्रभाव से पद से निलंबित कर दिया गया.क्षेत्र के दो विधायक भी कार्यक्रम में भीड़ न होने कारण काम के नहीं माने गए यानी अगले चुनाव में उनको टिकट शायद ही मिले।बिहार में हाल ही में राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष को बदला है,बताया जाता है कि पहले जो भी जाति का अध्यक्ष रहा हो राहुल गांधी चाहते हैं कि अब बिहार में दलित ही अध्यक्ष होना चाहिए। हो सकता है पांडेय जी को हटाया गया है तो इस वजह से भी हटाया गया हो कि संगठन तो मजबूत तब ही हो सकता है जब अध्यक्ष दलित हो।
राहुल गांधी की तरह खरगे ने भी सोचा हो कि दलित पदाधिकारी ही संगठन को ज्यादा मजबूत कर सकते हों। एम खरगे को भी दलित होने के कारण अध्यक्ष बनाया गया है। उनके अध्यक्ष बनने से दलितों में संदेश गया है कि कांग्रेस दलितों का सबसे ज्यादा सम्मान करती है। दलित अध्यक्ष का कार्यक्रम और भीड़ न हो तो यह तो दलित अध्यक्ष का अपमान हो गया।दलित का अपमान करके पांडेय जी कैसे अध्यक्ष बने रह सकते थे। अब दलितो का अपमान पार्टी नहीं सहेगी यह पार्टी के पदाधिकारियों को याद रखना चाहिए।खास कर जिला अध्यक्षों को।जो भूल जाएगा उसे पांडेय जी की तरह पद से हटा दिया जाएगा।
वैसे भी कांग्रेस ने तय किया है कि जिला अध्यक्षों को ज्यादा ताकत देने से पार्टी का संगठन मजबूत होगा। यानी कांग्रेस के जिला अध्यक्षों को अब ज्यादा अधिकार तो दिया ही जाएगा साथ ही उनको पहले से ज्यादा काम करके दिखाना होगा।कांग्रेस में पहले भले ही जिला अध्यक्ष बनना आसान रहा हो,किसी बड़े नेता के कहने पर किसी को भी जिलाअध्यक्ष बना दिया जाता था। अब कांग्रेस का जिलाअध्यक्ष बनने के लिए दावेदारों का इंटरव्यू होगा।यह इंटरव्यू एआईसीसी द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक लेंगे।अध्यक्ष पद के दावेदारों का परफारमेंस देखा जाएगा उसके बाद उनकी नियुक्ति होगी।फिलहाल तो गुजरात में संगठन को मजबूत करने के लिए यह काम किया जाने वाला है।
गुजरात में संगठन मजबूत होता है तो दूसरे राज्यों में इसी तरह जिलाअध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी। जिला अध्यक्षों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें कुछ अधिकार भी दिए जाने की चर्चा है जैसे टिकट बंटवारे में जिला अध्यक्षो की राय ली जाएगी,किसे कौन सी जिम्मेदारी दी जाएगी,इसके लिए भी जिला अध्यक्षों से पूछा जाएगा,संगठन के काम में जो खर्च होगा, जिला अध्यक्षों की राय से होगा,जो भी कार्यक्रम जिले में होेंगे, उस पर अमल कराने व मानिटरिंग की जिम्मेदारी जिला अध्यक्ष की होगी।जिला अध्यक्ष सुनिश्चित करेंगे कि मतदाता सूची में समय पर सुधार हो,वोटिंग प्रतिशत घटने व बढ़ने के लिए जिला अध्यक्ष को जिम्मेदार माना जाएगा, जिले में संगठन बनाने, उसे सक्रिय रखने की रिपोर्ट जिलाध्यक्ष से ली जाएगी।
पार्टी की नीतियों का प्रचार,मुद्दों का प्रचार करना उनका काम होगा, जमीनी फीडबैक भी वही एआईसीसी व पीसीसी को वही देंगे। बिहार में तो पांडेय जी को मात्र भीड़ न जुटा पाने के कारण पद से हटा दिया गय अगर गुजरात माडल पर किसी राज्य में संगठन को मजबूत किया जाएगा तो अध्यक्ष को हटाने के कई कारण आसानी से मिल जाएंगे। ऐसे में मजबूत अध्यक्ष बनाने का क्या मतलब रह जाएगा।आनेवाले दिन में मजबूत कांग्रेस के मजबूत जिलाअध्यक्ष को हमेशा डर लगा रहेगा कि मुझे तो कोई भी काम नहीं हुआ तो हटा दिया जाएगा। जिला अध्यक्ष पांडेय हुए तो और आसानी से हटा दिए जाएंगे।
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कभी कभी कोई ऐसी घटना हो जाती है जिससे वह सच बाहर आ जाता है, जो छिपा हुआ रहता है।जिसे मानते सब हैं लेकिन जाहिर तौर पर कोई स्वीकारता नहीं है।