हम जनता के साथ हैं बताना पड़ता है

Posted On:- 2025-04-22




सुनील दास

किसी प्रदेश की राजनीति में कम से कम से कम दो प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं, ज्यादा से ज्यादा तीन,चार व पांच दल भी होते हैं। दो राजनीतिक दल होते हैं तो एक राजनीतिक दल के साथ जनता होती है,जनता जिसके साथ होती है, वह सत्ता में होता है और जनता जिसके साथ नहींं होती है वह विपक्ष की भूमिका निबाहता है। वह हर साल जब भी मौका मिलता है तो सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन करता है। जनता को बताने व जताने का प्रयास करता है कि हम जनता के साथ है, खुद को जनता के साथ दिखाने के लिए हर तीन चार महीने में किसी भी मुद्दे को बड़ा मुद्दा बनाकर प्रदेश स्तरीय प्रदर्शन किया जाता है।

सबसे आसान होता है कोई अपराध हो जाए तो उस उठाकर मीडिया सोशल मीडिया के जरिए शोर मचाना कि राज्य में कानून व्यवस्था का बुरा हाल हो गया है। राज्य में अपराध बढ़ रहे हैं, राज्य को अपराधगढ़ बना दिया गया है। अपराध तो किसी भी राजनीतिक दल का शासन हो होते रहते हैं लेकिन जो विपक्ष में होता है, उसके लिए वह हमेशा उठाने लायक मुद्दा होता है, वह हमेशा बड़ा मुद्दा होता है। नहीं हो तो बड़ा मुद्दा बना दिया जाता है। दुर्ग में बच्ची की रेप के बाद हत्या कर दी गई। बच्ची होने के मामला भावनात्मक हो गया, कांग्रेस ने इस मुद्दे को महिलाओं व बच्चियों के साथ हो रहे अपराध का मुद्दा बना दिया।

सरकार की आलोचना की लेकिन इसके लिए कहीं से भी सरकार दोषी नहीं है, क्योंकि घर के भीतर होने वाले अपराध कोई भी सरकार हो रोक नहीं सकती। घर के लोग भी कहां रोक पाते हैं क्योंकि यह सब गुस्से में, बदला लेने,इगो के कारण, नशे मे किए जाते हैं। यह पूरे परिवार के साथ ही समाज की भी समस्या है, इसका समाज ही कोई हल सोच सकता है,लेकिन कहीं भी अपराध हो तो उसके लिए पुलिस व सरकार को कोसने का आदत विपक्ष की रहती है। कांग्रेस ने कुछ महीनों बाद छत्तीसगढ़ में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध व बिगड़ती कानून व्यवस्था के खिलाफ सोमवार को आमसभा का आयोजन किया उसके बाद सीएम हाउस घेरने का प्रयास भी किया।

बड़े आयोजन किए ही इसलिए जाते हैं ताकि सरकार व जनता को अपनी ताकत दिखाई जा सके। यह राजनीतिक दल का शक्ति प्रदर्शन होता है इसलिए शक्ति का प्रदर्शन भी किया जाना जरूरी होता है। शक्ति प्रदर्शन का पता तब ही चलता है जब राजनीतिक दल के नेता पुलिस से झूमाझटकी करें, उसको धमकाने, डराने का प्रयास करें। लगाए गए बैरीकेड को तोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करें।आमसभा का आयोजन इसलिए जरूरी होता है कि विपक्ष के नेताओं को सरकार के खिलाफ बहुत कुछ बोलना होता है तो कई नेताओं को बोलने का मौका मिल जाता है, सरकार के खिलाफ जितना गुस्सा होता है, सब नेता लोग बोलकर निकाल देते हैं।

वहीं जो लोग ज्यादा बोलना नहीं जानते हैं वह सरकार के खिलाफ नारेबाजी  करते है, पुलिस से झूमाझटकी करते हैं,बैरीकेड़ तोड़कर खुश हो जाते हैं कि हमारा कार्यक्रम सफल रहा। पुलिस भी जानती है कि कोई आयोजन सफल तब ही माना जाता है जब झुमाझटकी हो, आगे बढ़ने से रोकने पर आगे बढ़ने का प्रयास हो,बैरीकेड़ को तोड़ने का प्रयास हो, इसलिए पुलिस यह सब  करने से नहीं रोकती है, वह यह सब करने देती है ताकि आयोजन सफल माना जाए और राजनीतिक दल के लोग जीत का भाव लेकर घरों को लौटें।

जब कोई राजनीतिक दल हर माह छोटे आयोजन, हर दो तीन माह मे एक बड़ा आयोजन करता है तो माना जाता है कि वह सक्रिय है, राजनीतिक रूप से जिंदा है। जनता को भी पता चलता है कि जिसे उसने सत्ता के लायक न समझ कर विपक्ष की भूमिका सौंपी है,वह विपक्ष का भूमिका ठीक से निबाह रहा है। राजनीति में जनता नकार दे तो राजनीतिक दल को जनता का निरंतर एहसास दिलाना पड़ता है कि उसने उसे नकार दिया है तो क्या हुआ, वह तो जनता के साथ है और जनता के हित में काम कर रहा है।

जनता को भी एक राजनीतिक दल के रूप में दूसरा राजनीतिक दल की जरूरत विकल्प के रूप में होती है।दो ही दल होते हैं तो एक विकल्प माना जाता है।जनता सरकार का काम भी देखती है और विपक्ष का काम भी देखती रहती है। पांच साल बाद वह तय करती है कि किसका काम अच्छा है। सरकार का काम अच्छा होता है तो वह उसे  दोबारा सत्ता सौंपती है और सरकार का काम अच्छा न होने पर विकल्प के रूप में मौजूद राजनीतिक दल को सत्ता सौंपती है। 

पिछली बार उसने यही किया है। भूपेश बघेल सरकार को पांच साल जनता ने मौका दिया लेकिन सेवा के साथ और भी बहुत कुछ किया उसने इसलिए चुनाव में जनता ने कांग्रेस को नकारा और हर चुनाव में नकार दिया। जिस राजनीतिक दल को हर चुनाव में जनता नकार देती है, उसे राजनीतिक रूप से मरणासन्न मान लिया जाता है।कांग्रेस का यही हाल है, इसलिए वह आए दिन प्रदर्शन के जरिए खुद को सक्रिय व जिंदा दिखाने का प्रयास कर रही है। अभी चार साल और उसको यही करना है। उसके बाद जनता फैसला करेगी कि उसने कांग्रेस को किसी योग्य माना है या नहीं।



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