कोई पार्टी निरंतर हारती चली जाती है तो उसको देरसबेर सोचना तो प़ड़ता है कि हार के सिलसिले को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। हार के लिए जिम्मेदार लोगों को पद से हटाया जा सकता है।नए लोगों को जिम्मेदारी दी जा सकती है, जो लोग बरसों से संगठन में और अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, उनको बदला जा सकता है।नए लोगों को जिम्मेदारी दी जा सकती है। यानी हार के बाद कुछ नहीं करने से जो संदेश जाता है कि हार के बाद पार्टी कुछ नहीं कर रही है। उसका पार्टी में ही अच्छा संदेश नहीं जाता है क्योंकि पार्टी के लोग भी चाहते हैं कि जो पार्टी की हार के लिए दोषी है, उनको सजा मिलनी चाहिए। अगर पार्टी को जिताने के लिए किसी पोस्ट पर नियुक्त किए गए हो और आप जिता नहीं पाते हो तो हार के लिए आप दोषी हो, आपको तो पार्टी की हार के बाद ही पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
कई लोगों के लिए हैरानी की बात होगी कि पिछले दो साल कांग्रेस को १७ राज्यों के विधानसभा चुनावों में से १३ में करारी हार का सामना किया है।उसमें हरियाणा व महाराष्ट्र की हार ने कांग्रेस को झकझोर दिया है। इन दोनों राज्यों के चुनाव के पहले राजस्थान,मप्र,छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार की अब तक कोई समीक्षा नहीं की गई है। हरियाणा व महाराष्ट मेें हार के लिए किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस के निरंतर हार के सिलसिले को रोकने के लिए खरगे को कड़े कदम उठाने चाहिए। यानी अब कांग्रेस संगठन से लेकर शीर्ष पदों पर बदलाव जरूरी समझा जा रहा है।
कांग्रेस एक राज्य के बाद दूसरा राज्य हार रही है और कहीं कोई बदलाव होता ही नहीं है। ऐसे में कांग्रेस जीत की पटरी पर कैसे आ सकती है कांग्रेस को जीत की पटरी पर लाने के लिए संगठन में बदलाव जरूरी समझा जा रहा है।ऐसे में छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की भूपेश बघेल के नेतृत्व में शर्मनाक हार हुई थी। कहांं भूपेश बघेल महीनों से दावा कर रहे थे कि कांग्रेस को कोई हरा नहीं सकता। हमने ऐसा काम किया है कि हम हार ही नहीं सकते। लेकिन जब रिजल्ट आया तो भूपेश बघेल हार गए। कांग्रेस को पहली जीत के बाद दूसरी जीत नहीं दिला सके। यानी भूपेश बघेल भी कांग्रेस के दूसरी बार में हार के रिकार्ड बनाए रखा। कहां वह रमन सिंह की बराबरी करने को सोचा करते थे, खुद को रमन सिंह से बेहतर नेता बताया करते थे लेकिन दूसरी बार हारने से अब रमन सिंह की बराबरी का सपना देख सकते हैं, कर नहीं सकते।
हार से कांग्रेस में भी उनका राजनीतिक कद कम हुआ है। हार के बाद वह पहले वाले भूपेश बघेेल नहीं रह गए हैं वह एक चुनाव हारने वाले भूपेश बघेल हो गए हैं। इसलिए माना जाता है कि पहले जिस तरह वह संगठन के पदों पर अपने लोगों को नियुक्त करा लेते थे अब नहीं करा पाएंगे। निरंतर हार से आलाकमान नाराज है,आलाकमान का नाराज होना स्वाभाविक है क्योंकि पार्टी हारती है तो वह भी हारने वाला नेता माना जाता है। वह पार्टी की मजबूती के लिए, पार्टी को जीत की पटरी पर लाने के लिए वह तो बड़े पैमाने पर बदलाव करने को कहेगा ही। इसका पता भूपेश बघेल को लगा होगा कि अब संगठन में बदलाव होनेवाले हैं।
छत्तीसगढ़ में भी बदलाव किया जाएगा। वह उनकी मर्जी के खिलाफ भी हो सकता है। इसलिए वह दिल्ली को संदेश दे रहे हैं कि वह राज्य में अलग अपना संगठन भी बना सकते हैं।यह एक तरह का दवाब हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में यदि उनकी मर्जी से संगठन में बदलाव नहीं किया गया तो वह अपना अलग संगठन बना सकते हैं। भूपेश ने अपना अलग संगठन बना लिया और अपने आदमी को उसका अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।इसका मतलब क्या है। इसका मतलब तो यहां लोगों ने यही निकाला है कि भूपेश बघेल ने अपना एक संगठन बनाया है। इसकी जानकारी यहां के कांग्रेस नेताओ को भी नहीं थी, जब संगठन की बैठक हुई और भूपेश बघेल बैठक में गए तब पता चला कि यह तो भूपेश बघेल का बनाया हुआ नया संगठन है जिसके कमान गिरीश देवांगन को सौंपी गई है।
अब जब सबको पता चल गया है कि भूपेश बघेल ने अपना संगठन बनाया है तो वह उससे दूरी बना रहे हैं कि संगठन उनका नहीं है, उनको तो संगठन की बैठक में बुलाया गया था इसलिए वह चले गए. उनको युवा, मजदूर, महिला कोई भी संगठन बुलाएगा तो वह जाएंगे ही। भूपेश बघेल को दिल्ली जो संदेश देना था वह दे दिया है और साथ में सफाई भी दी है कि संगठन उनका नहीं है, उनको तो संगठन की बैठक में बुलाया गया था इसलिए वह गए थे और आगे भी बुलाया जाता रहेगा तो जाते रहेंगे।कांग्रेस के किसी नेता ने आज तक ऐसा काम नहीं किया था, भूपेश बघेल ने किया है तो इसकी चर्चा तो होनी है। इसका परिणाम क्या होगा, यह तो आनेवाले वक्त में चलेगा।
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