राजनीति में अपनी बात मनाने के लिए रूठना पड़ता है,दिखाना पड़ता है कि आपके फैसले से हम नाराज हैं।अपने समर्थकों,वोट देने वालों को भी बताना पड़ता है कि मैंने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की सीएम बनने की लेकिन हालात मेरे खिलाफ था, इसलिए मैं बन नहीं सका। महाराष्ट्र में जो जनता ने महायुति के प्रचंड बहुमत दिया। इसके बाद महायुति की जिम्मेदारी थी कि वह अपनी सरकार सबकी सहमति से बनाती।आपसी सहमति बनाने में दस दिन से ज्यादा लग गए।
देवेंद्र फडणवीस का सीएम बनना तो तय था। अजीत पवार का डिप्टी सीएम बनना भी तय था, यह भी तय था कि किस दल के कितने मंत्री बनेंगे। विभागों को लेकर कुछ विवाद हो सकता है लेकिन जिस तरह सीएम का मामला सुलझा लिया गया, उसी तरह विभागों का मामला भी सुलझा लिया जाएगा।प्रचंड बहुमत मिलने के बाद तो सब चाह रहे थे कि महायुति मे जश्न का माहौल होना चाहिए। सरकार बनाने की खुशी सबको होनी चाहिए। लेकिन इस खुशी के मौके में एकनाथ शिंदे ने मुंह फुलाकर रंग में भंग डाल दिया। वह खुश नहीं दिख रहे थे, बाकी नेता जितने खुश दिख रहे थे, वह खुश ही नहीं लग रहे थे।
दिल्ली से लौटने के बाद वह अपने गांव सतारा चले गए। इस दौरान उन्होंने बयान दिया कि जो पीएम मोदी व शाह चाहेंगे वही होगा, वह उसका समर्थन करेंगे। इसके बाद मुंबई लौटे तो फिर उनकी तबियत खराब हो गई और एक बयान में उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट कर दी कि जनता चाहती है कि वह फिर से सीएम बने। यानी उन्होंने अपने समर्थकों, वोटरों को बता दिया कि मैं तो सीएम बनना चाहता हूं लेकिन हालात मेरे अनुकूल नहीं है। क्योंकि ज्यादा सीटें तो भाजपा ने जीती हैं। भाजपा ने इस बार उध्दव की चालाकी से सबक लेते हुए चुनाव के पहले ही साफ कर दिया था कि सीएम का फैसला चुनाव के बाद होगा,इसका सीधा मतलब था कि जिसकी ज्यादा सीटें आएंगी, सीएम उसका बनेेगा।
जनता ने सबसे ज्यादा सीटों पर भाजपा को जिताया मतलब जनादेश तो भाजपा के पक्ष में है कि सीएम तो भाजपा का ही होना चाहिए। ऐसे मे शिंदे के जनता चाहती है कि वह सीएम बने इसका कुल मतलब यह है कि वह जानते हैं कि वह सीएम किसी तरह नहीं बन सकते। लेकिन अपनी इच्छा तो जाहिर कर सकते हैं तो उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर कर दी है।देवेंद्र उनसे मिलने गए तो वह मान गए कि वह डिप्टी सीएम बनेंगे।
इससे पांच दिसंबर को सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के शपथ लेने का रास्ता तो साफ हो गया है। देवेंद्रे फडणवीस को ही इस बार सीएम बनना था तो वह इसलिए कि वही महाराष्ट्र में भाजपा का चेहरा है, उन्होंने ही भाजपा को पहली बार १३२ सीटों पर जिताया है।यही नहीं उन्होंने सीएम रहने के बाद पार्टी हित में अपने जूनियर लोगों की सरकार में डिप्टी सीएम बनने को राजी हुआ और ढाई साल किसी तरह की शिकायत नहीं की, किसी ने उनके व्यवहार की कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने शिंदे को ढाई साल सीएम माना, उनका पूरा सम्मान किया। इस वजह से भी वह सीएम पद के ज्यादा दावेदार माने गए।
शिंदे ने अपनी तरफ से कोशिश की कि वह सीएम रहें है, अच्छा काम किए है, इसलिए उनको सीएम रहने दिया जाए। अगर ऐसी कोई बात पहले हुई होती तो यह बात अच्छी लगती, ऐसी कोई बात पहले नही हुई थी इसलिए शिंदे के सीएम बनने का तो सवाल ही नहीं उठता था। भाजपा चाहती तो उनके चेहरे पर चुनाव न लड़कर चुनाव जीत सकती थी लेकिन भाजपा ने शिंदे के चेहरे पर चुनाव लड़कर उनका पूरा सम्मान किया।
अजीत पवार को महायुति में बोझ समझा जा रहा था लेकिन वह अमित शाह की प्लान बी का हिस्सा था ताकि चुनाव के बाद कोई भाजपा को ब्लैकमेल न कर सके। चुनाव में अजीत पवार ने चालीस सीटें जीतकर शाह के प्लान बी को मजबूत ही किया। अजीत पवार के कारण ही शिंदे तो कुछ दिन की नाराजगी के बाद मानना पड़ा भाजपा जो कर रही है, ठीक कर रही है। शिंदे जानते हैं कि महायुति में भाजपा की सीटें इतनी ज्यादा हैं कि उनको कोई झुका नहीं सकता। और जो उसकाे ठीक लगे वह कर सकती है।
भाजपा चाहती तो कबसे देवेंद्र फडणवीस को सीएम घोषित कर सकती थी लेकिन उन्होंने अकेले कोई फैसला नहीं किया। महायुति का सीएम है, इसलिए भाजपा चाहती थी कि उसमें शिंदे व अजीत की बराबर की सहमति होनी चाहिए।शिंदे के आखिरी में मान जाने से सब सामान्य हो गया है।कल शपथ ग्रहण होगा। उसके बात आपस में बात कर विभागों व मंत्रियों मामला भी सुलझाया जा सकता है। शिंदे के मान जाने से सबसे ज्यादा निराशा मोदी विरोधियों को होगी जो चाहते थे कि शिंदे बगावत कर दें और भाजपा की सरकार न बनने दें।
शिंदे नाराज तो हो सकते थे लेकिन बगावत नहीं कर सकते थे क्योंकि फिर उनमें और उध्दव ठाकरे में क्या फर्क रह जाता। उन्होंने ढाई साल में खुद को उध्दव से बेहतर नेता साबित किया है. वह बेहतर नेता तब ही बने रह सकते है, जब महायुति में रहें।उऩकी भलाई महायुति में बने रहने में है। उनका बेहतर भविष्य महायुति में ही रहने में है।वह भविष्य में भी नाराज हो सकते हैं किसी कारण से लेकिन वह महायुति को छोडऩे का जोखिम शायद ही कभी उठाएं।
आम लोगों की जिंदगी में आए दिन ऐसा होता है कि महज कुछ देर के अत्यधिक गुस्से के कारण पूरा परिवार लंबे समय के लिए परेशान होता है।
किसी भी राजनीतिक दल को बोलने का मौका मिलता है तो ज्यादा नहीं बोलना चाहिए।ऐसा नहीं कहना चाहिए कि ऐसा तो उस पार्टी में हो सकता है।हमारी पार्टी के लोग...
हर सरकार सोचती है कि उसे जनहित व देशहित में कुछ तो ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसका नाम भविष्य में लिया जाता रहे। इसलिए कई सरकारें पुरानी नीतियों को ब...
कोई भी सरकार हो वह भ्रष्टाचार पर पूरी तरह रोक नहीं लगा सकती।खासकर प्रशासनिक स्तर पर जो भ्रष्टाचार होते हैं
हर आदमी की स्वाभाविक इच्छा होती है कि देश,राज्य,शहर,वार्ड,परिवार में उसे उसके किसी अच्छे काम के लिए याद किया जाए।
.देश में कहीं मुसलमान वोट बैंक के लिए दलों के बीच होड़ लगी रहती है कि देखो तुम्हारी चिंता हम करने वाले है, देखो,तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहने वाले ह...