राजनीति में राजनीतिक दलों के अपने अपने वोट बैंक होते हैं, कोई वोट बैंक जाति के आधार पर होता है तो कोई वोट बैंक योजना के लाभार्थियों का होता है। कोई वोट बैंक महिलाओं का होता है तो कोई वोट बैंक युवाओं का होता है।धर्म,भाषा व क्षेत्र के आधार पर वोट बैंक होते हैं। राजनीतिक दलों के वोट बैंक अलग अलग होते हैं तो वह अपने अपने वोट बैंक को खुश रखने का प्रयास करते है,वह जो चाहते हैं वह करने का प्रयास करते हैं।उऩकी कोशिश रहती है कि उनके वोट बैंक में कोई सेंध ने मार दे,कोई दूसरा राजनीतिक दल अपनी तरफ न कर ले,इसकी चिंता तो रहती है।
किसी राज्य में दो राजनीतिक दलों का वोट बैंक एक हो जाता है तो दोनों राजनीतिक दल उसको अपने अपने तरीके से खुश करने का प्रयास करते हैं। जैसे इन दिनों कांग्रेस व सपा के नेता कर रहे हैं। संभल से लेकर संसद तक सपा के अखिलेश यादव कांग्रेस के राहुल गांधी के बीच मुसलमानों को खुश करने की होड़ लगी हुई है। मुसलमानों को यह बताने व जताने की रोज कोशिश हो रही है कि देखों तुम्हारे साथ तो हम ही खड़े रहते हैं, हम ही आज भी खड़े हैं। तुम्हारा भला चाहने वाले हम ही तो है, हमने ही तु्म्हारे लिए क्या कुछ नहीं किया है। अखिलेश यादव व राहुल गांधी संभल में रोज यही कर रहे हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस इस मामले में संभल तक सीमित हैं तो अखिलेश यादव संभल से संसद तक राहुल गांधी और कांग्रेस से आगे हैं।
कांग्रेस के राहुल गांधी के लिए संभल कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, यूपी कांग्रेस जो कुछ कर रही है ठीक कर रही है। उसके लिए संसद में अडानी सबसे ब़ड़ा मुद्दा था। कांग्रेस रोज अडानी के मुद्दे पर काम नहीं होने दे रही थी, अडानी मुद्दे के अलावा दूसरा मुद्दा नहीं उठा रही थी, इससे टीएमसी और सपा के नेता व सांसद नाराज हो गए कि अडानी के अलावा ब़ड़े मुद्दे है, उनको भी उठाने की जरूरत है।अखिलेश यादव ने मौका मिला तो संभल के मुद्दे को उठाया और राहुल गांधी व कांग्रेस को बताया कि संभल का मुद्दा अडानी के बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इसमें जान गई है और वह हमारे वोट बैंक के लोगों की। अगर हम इसे संसद में नहीं उठाएंगे तो हमारा वोट बैंक हमसे नाराज हो जाएगा।
तब राहुल गांधी को समझ आया कि यूपी में मुसलमानों के वोट बैंक ख्याल रखना भी जरूरी है और उन्होंने सभल जाने की योजना बनाई यह जानते हुए भी बनाई कि संभल तो यूपी प्रशासन उनको जाने नहीं देगा। हुआ भी यही दोनों भाई बहनों को संभल नही जाने दिया गया लेकिन इस दौरान भाई बहन को संभल के मुसलमानों को जो संदेश देना था दे दिया कि हम तो आप लोगों से मिलने आना चाहते हैं लेकिन प्रशासन हमे आने नहीं दिया। इससे पहले संभल जाने की कोशिश सपा व यूपी कांग्रेस के नेता कर चुके थे किसी को जाने नहीं दिया गया।
इसी के साथ सपा के नेता संभल के जिन लोगों को जेल में रखा गया है, उन लोगों से मिलकर आ गए। जवाब में कांग्रेस के नेताओं ने जेल में बंद लोगों को परिजनों से फोन पर राहुल गांधी से बात करवाई। दोनों दलों के बीच मुसलमान वोट बैंक को अलग अलग खुश करने का प्रयास जारी है।इसमें अखिलेश यादव ने बाजी मारी है उन्होंने राहुल गांधी को संभल को बड़ा मुद्दा बनाकर बता दिया है कि आपको बड़े राजनीतिक मुद्दों की अभी समझ नहीं है, समझ होती तो अडानी अडानी नहीं कर रहे होते, संभल संभल कर रहे होते। राहुल गांधी ने संभल जाकर अखिलेश की बात को सही माना है कि उनको बड़े व पार्टी को फायदा पहुंचाने वाले मुद्दों की समझ नहीं है।
अडानी का मुद्दा राहुल गांधी दस साल से उठा रहे हैं लेकिन उनको पता नहीं है कि इससे पार्टी को क्या फायदा हुआ है या नुकसान हुआ है। जबकि मुसलमानों का मुद्दा उठाने से कर्नाटक में फायदा हुआ है.लोकसभा चुनाव में फायदा हुआ है, यूपी में फायदा हुआ है। यूपी में आने वाले दिनों में अखिलेश व राहुल गांधी के बीच मुसलमान वोट बैंक तो दिल्ली में बड़ा नेता कौन इस मुद्दे को लेकर जंग और तेज हो सकती है।यूपी में लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतने के बाद अखिलेश में भी राष्ट्रीय नेता बनने और पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की इच्छा बढ़ी है।वह चाहते थे कि जिस तरह यूपी में उन्होंने कांग्रेस को ज्यादा सीटों पर जिताया है, उसी तरह कांग्रेस भी उनको जम्मू कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने के लिए सीटें दें और जीतने में मदद करे लेकिन राहुल गांधी ने कहीं पर अखिलेश की मदद नहीं की। यानी राहुल गांधी और कांग्रेस नहीं चाहते हैं कि अखिलेश यूपी के बाहर नेता बने और राहुल गांधी के लिए चुनौती बने।
वह चाहते हैं अखिलेश यूपी तक सीमित रहे। तो अब अखिलेश ने भी राहुल गांधी को मौका मिलने पर बताना शुरू कर दिया है वह हर मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़ी नहीं रहेगी। संसद में वह अपने मुद्दे भी उठाएगी यानी सपा व टीएमसी न इस संसद संत्र में बता दिया कि राहुल गांधी विपक्ष के नेता के रूप में उनको पसंद नहीं है, विपक्ष का नेता तो ममता को बनाया जाना चाहिए। यूपी में भी अखिलेश ने उपचुनाव में दो सीटें देकर साफ संदेश दिया था कि कांग्रेस यूपी में छोटा भाई बनकर रहेगी तो ठीक नहीं तो उसको बता दिया जाएगा कि यूपी में वह कोई बड़ी ताकत नहीं है। यूपी में विपक्ष की ताकत सपा है।वह जो चाहेगी वही यूपी मे होगा।
कांग्रेस के मुसलमान वोट बैंक को लेकर अलग से जो कुछ किया जा रहा है,वह भी अखिलेश के लिए खतरे की घंटी है। कहने को अखिलेश की राजनीति पीडीए की है लेकिन हकीकत में वह एमवाई की है कि उसमें वह एम पर ही सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। क्योंकि उनकी राजनीतिक सफलता बहुत कुछ इसी बात पर निर्भर करती है। कांग्रेस की कोशिश की है कि यूपी में उसका जो मुसलमान वोट बैंक है, उसे वापस लाया जाए ताकि कांग्रेस यूपी में कुछ मजबूत हो। यही बात अखिलेश को पसंद नहीं आने वाली है और सपा व कांग्रेस के बीच तल्खी आने वाले दिनों बढ़ती है तो यह कोई हैरत की बात नहीं होगी।
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हर आदमी की स्वाभाविक इच्छा होती है कि देश,राज्य,शहर,वार्ड,परिवार में उसे उसके किसी अच्छे काम के लिए याद किया जाए।
.देश में कहीं मुसलमान वोट बैंक के लिए दलों के बीच होड़ लगी रहती है कि देखो तुम्हारी चिंता हम करने वाले है, देखो,तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहने वाले ह...